शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ मथुराधीश प्रभु के दर्शन 27 नवम्बर से होंगे शुरू

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कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ मथुराधीश प्रभु के पाटपोल स्थित मंदिर पर अब दर्शन खोलने की तैयारी की जा रही है। गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने बताया कि 27 नवम्बर से मथुराधीश प्रभु के दर्शन शुरू कर दिए जाएंगे। प्रथम पीठाधीश्वर विठ्ठलनाथ महाराज के निर्देशानुसार व्यवस्थापक चेतन सेठ ने बुधवार को जिला कलेक्टर से मिलकर श्रीबड़े मथुरेशजी टेंपल बोर्ड के निर्णय की जानकारी दी।

चेतन सेठ ने जिला कलेक्टर को बताया कि 27 नवम्बर से मंदिर में सायं 5 बजे होने वाले संध्या भोग के दर्शन शुरू कर दिए जाएंगे। इस दौरान श्रद्धालुओं को एक एक कर मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा। भक्त मंदिर के भीतर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बने सर्किल पर ही खड़े हो सकेंगे। जिला कलेक्टर ने भी निकाय चुनाव के बाद पाटनपोल मंदिर पहुंचकर बोर्ड द्वारा की जा रही व्यवस्थाएं देखने की बात कही। उल्लेखनीय है कि मथुराधीश प्रभु के मंदिर पर कोरोना के कारण 19 मार्च से दर्शन बंद कर दिए गए थे। इसके बाद पिछले दिनों सरकारी गाइडलाइन में मंदिरों पर दर्शन खुलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन जगह की कमी को देखते हुए मथुराधीश मंदिर पर दर्शनों को बंद रखा गया है।

ज्ञातव्य है कि प्रथम पीठाधीश्वर विठ्ठलनाथ महाराज के निर्देशानुसार 18 मार्च से दर्शनों का समय बदल दिया गया था। जिसके अनुसार केवल तीन समय मंगला, राजभोग और भोग आरती के दर्शन 15 मिनट के लिए ही करने की छूट दी गई थी। वहीं मंदिर में कीर्तन आदि भी बंद कर दिए गए थे। इसके बाद 19 मार्च से तीन समय के दर्शन भी रोक दिए गए। तब से मंदिर में केवल सेवा की जा रही है, लेकिन दर्शनार्थियों के लिए मंदिर को बंद कर दिया गया था।

350 साल के इतिहास में पहली बार बंद रहा मंदिर
श्रीमथुराधीश मंदिर के 350 सालों के इतिहास में पहली बार आपदा के कारण दर्शन बंद किए गए हैं। व्यवस्थापक चेतन सेठ ने बताया कि प्रथम पीठाधीश्वर श्रीविठ्ठलनाथ महाराज के आदेशानुसार श्रीबड़े मथुरेशजी टेंपल बोर्ड ने यह निर्णय लिया है। मंदिर में प्रतिदिन मंगला आरती, ग्वाल, राजभोग, आरती, उत्थापन, शयन के दर्शन होते हैं। हालांकि शयन के दर्शन रामनवमी से बंद रहते है तथा कार्तिक सुदी अष्टमी में खुलने लग जाते हैं।

मंदिर पर सामान्य दिनों में 2 हजार, अवकाश वाले दिनों में 3 से 4 हजार, पर्वों पर 10 से 12 हजार एवं सम्पूर्ण वर्ष में लगभग 12 से 15 लाख भक्त दर्शन करते हैं। प्रथम पीठ युवराज गोस्वामी श्रीमिलन बावा ने भक्तों से कहा कि कोरोना महामारी के कारण से विशेष परिस्थितियों में मंदिर बंद रहा। अब परिस्थितियों का आंकलन करते हुए 27 नवम्बर से दर्शनों को खोला जा रहा है। इस दौरान सामाजिक दूरी, मास्क और सेनेटाइजेशन का ध्यान रखें और प्रभु के दर्शन करें।

वर्ष 1795 में पधराया था प्रभु की प्रतिमा को

श्रीमथुराधीश प्रभु की प्रतिमा को 1795 में कोटा के महाराज दुर्जनशाल के आग्रह से कोटा के पाटनपोल में पधराया था। कोटा नगर में पाटनपोल द्वार के पास प्रभु का रथ रुक गया तो तत्कालीन आचार्य गोस्वामी गोपीनाथ महाराज ने आज्ञा दी कि प्रभु की यहीं विराजने की इच्छा है। तब कोटा राज्य के दीवान द्वारकादास ने अपनी हवेली को गोस्वामी जी के सुपुर्द कर दिया था। गोस्वामी जी ने उसी हवेली में कुछ फेरबदल कराकर प्रभु को विराजमान किया। प्रभु तब से अभी तक इसी हवेली में विराजमान हैं। इससे पहले मथुराधीश प्रभु 65 वर्ष बूंदी में विराजे थे। यहाँ वल्लभ कुल सम्प्रदाय की रीत के अनुसार सेवा होती है।