दूसरों की संपत्ति और सुख देख कर परेशान नहीं होना चाहिए: स्वामी गिरीशानंद

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कोटा। मन के दुख पर चर्चा करते हुए स्वामी गिरीशानंद सरस्वती ने कहा कि सतयुग में लोग किसी की मदद नहीं कर पाने पर दुखी होते थे, लेकिन आज के युग में दूसरों के सुख को देख परेशान होते हैं। हमें दूसरों की संपत्ति और सुख को देख कर स्वयं को परेशान नहीं करना चाहिए। शरीर को स्वस्थ और आनंदित रखना चाहिए

स्वामी गिरीशानंद सरस्वती महाराज ने यह बात मंगलवार को श्रीमद भागवत कथा यज्ञ में कही। ईश्वर भक्त की दृष्टि में कोई अभक्त नहीं होता। ईश्वर भक्त का हृदय शुद्ध होता है। वह समाज के सुधार और मानवता के कल्याण के लिए कार्य करता है।

छप्पन भोग परिसर में आयोजित भागवत कथा के दूसरे दिन कपिलोपाख्यान एवं ध्रुव चरित्र की चर्चा करते हुए स्वामी गिरीशानंद महाराज ने कहा कि कथा हमें ईश्वर के निकट ले जाती है। कथा के आयोजन से समाज में धर्म और आध्यात्म का प्रचार होता है। कथा के श्रवण से हमारे विचारों को भी दिशा मिलती है। कथा का सार यदि हम हृदय में बसाते हैं तो सर्वकल्याण की भावना सशक्त होती है।

उन्होंने कहा कि इस सम्पूर्ण सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है। हमें अपनी सम्पूर्ण आस्था के साथ ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए। लेकिन यह इतना सरल भी नहीं है। संसार में हर चीज के लिए तपस्या करनी पड़ती है। ईश्वर प्राप्ति के लिए हमें कठोर तप और त्याग करना पड़ता है। यदि हम इसमें सफल रहते हैं तो ईश्वर हर हाल में हमारी रक्षा करते हैं।

उन्होंने कहा कि ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को किसी उद्देश्य के लिए जन्म दिया है। लेकिन मनुष्य जीवन का पहला कार्य ईश्वर की तलाश करना है। हम प्रतिमा में ईश्वर को देखते हैं, हमें मनुष्य में भी ईश्वर को ढूंढना चाहिए।

ईश्वर की आराधना हर उम्र में करनी चाहिए, बुजुर्गावस्था में ईश्वर का ध्यान करने की मानवीय प्रवृति उचित नहीं है। कथा आयोजक समाजसेविका डॉ. अमिता बिरला, अर्पणा अग्रवाल व समस्त बिरला व अग्रवाल परिवार प्रभु आरती में सम्मिलित हुए। इस दौरान लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद रहे।

भक्ति पर व्यंग्य से परेशान नहीं हों
स्वामी गिरीशानंद सरस्वती ने कहा कि कथा का श्रवण करते समय कई बार श्रद्धालुओं की आंखों में करूणा के कारण पानी आ जाता है, तो कई बार वे नृत्य करने लगते हैं। ऐसे में अक्सर लोग उन पर व्यंग्य करने लगते हैं। जब कोई मजाक बनाने का प्रयास करे तो भक्त को विचलित नहीं होना चाहिए। ऐसी अवस्था मीरा के सामने भी आई थी। यदि हम मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगें या भावुक होने लगें तो समझिए कि हम भगवान की भक्ति में रम चुके हैं।

ईश्वर-वंचित की सेवा में समर्पित करें धन
स्वामी गिरीशानंद सरस्वती ने कहा धन कमाने का आनंद तब है जब उसे ईश्वर, संतों और वंचितों की सेवा में समर्पित किया गया। जीवन में कोई भी कार्य करते हुए हमें मर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए। आज की पीढ़ी अनुशासनहीनता को स्वतंत्रता में खलल बताती है। युवाओं में तेजी से बढ़ रही यह प्रवृति बेहद गलत है।

श्रीकृष्ण की झांकी लेकर आई महिलाएं
कथा में पूरे समय दिव्य माहौल की अनुभूति हुई। कथा का पुण्यलाभ लेने आई महिलाएं श्रीकृष्ण की झांकी लेकर आई थीं। कई महिलाएं अपने बच्चों को भी आयोजन स्थल लाईं ताकि वे भी धर्म और आध्यात्म से जुड़ सकें। कथा के दौरान जब भी भजन का उच्चारण होता तब श्रद्धालु श्रद्धाभाव में नृत्य करने लगते।