काला दिवस का समर्थन नहीं करेगा भारतीय किसान संघ, जानिए क्यों

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कोटा। दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, जिसका भारतीय किसान संघ ने विरोध किया है। भारतीय किसान संघ के प्रान्तीय महामंत्री जगदीश कलमंडा तथा संभागीय प्रवक्ता आशीष मेहता ने बताया कि जहां पूरा देश कोविड महामारी से जूझ रहा है।

ऐसे समय में किसी भी प्रकार की गलती आम जन जीवन के लिए भारी पड़ सकती है। यह समय किसी भी प्रकार का जमावड़ा किए जाने के बजाय मरीजों और कोरोना से प्रभावित परिवारों का सहयोग किए जाने का है। ऐसे में, भारतीय किसान संघ किसानों के नाम पर किए जाने वाले किसी भी जमावड़े का विरोध करता है।

किसान को बदनाम करने की साजिश: उन्होंने कहा कि गत 26 जनवरी जैसा भय, आतंक एवं डर पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो परन्तु देश के किसान इस बात से आक्रोश में हैं कि किसान के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को नहीं है। किसान शार्मिंदा है कि वह राष्ट्र विरोधी कार्यों, विलासितपूर्ण रहन-सहन, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का अपमान, विदेशी फंड़िग, आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन और इतनी बड़ी कोविड़ त्रासदी के समय भी इतना स्वार्थी बन सकता है, ऐसी छवि निर्माण करने का पाप इन लोगों ने किया है।

उन्होंने कहा कि भारतीय किसान संघ ने इस आंदोलन के आरम्भ से कुछ समय बाद ही आशंका प्रकट की थी कि यह किसान का आंदोलन नही हैे, आंदोलन कुछ अराजक तत्वों के हाथों द्वारा संचालित है। अप्रैल-मई माह में ही बंगाल के किसान की 24 वर्षीय पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार और अंत में उसकी हत्या की घटना जो दिल्ली बार्डर पर घटी और 10-15 दिन तक पुलिस से छुपाया गया ताकि सबूत नष्ट किये जा सके। जिसके सबूत नष्ट करने मेे नेतागण लिप्त पाए गए हैं।

यह तो एक घटना है, जो बाहर आ गई वह भी लड़की के पिता द्वारा पुलिस केस दर्ज कराने के कारण । न जाने क्या-क्या घटनाएं, काण्ड यहां घटित हुए हैं। कईं लोगों पर आपराधिक प्रकरण भी बने हैं। इससे भी आगे बढ़कर इन आंदोलनकारियों द्वारा बीच-बीच में ऑक्सीजन गैस टेंकर्स को रोकना, एम्बूलेंस में गंभीर रोगियों से बदसलूकी करना, एक-एक सप्ताह तक अलग-अलग झुण्ड आंदोलन स्थल पर बुलाना, वापस जाना, कोरोना की गाईडलाईन को नहीं मानना, हिसार में कोविड़ अस्पताल का विरोध करना जैसी अवांछनीय हरकतों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बीमारी के विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई है।

पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा कोविड़ ग्रस्तों की सहायता के लिए रक्तदान शिविर का विरोध करके रक्तदान नहीं होने देना, इन सब कृत्यों को शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलन स्थल पर सैंकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है। जिन 12 राजनैतिक दलों ने इस काले दिवस वाले कार्यक्रम के समर्थन की घोषणा की है, उनको भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे इस आंदोलन में घटित शर्मनाक, राष्ट्रविरोधी एवं अपराधिक घटनाओ का भी समर्थन करते है? देश का आम किसान जानना चाहता है कि लाचार किसानों के नाम को बदनाम करने का ठेका इन लोगों को किसने दे दिया।

उन्होेंने कहा कि इन तथाकथित किसान किसानों की हरकतों के लिए देश के आम किसान को दोषी नहीं ठहराया जाए। देशभर के किसान संगठनों के कार्यकर्ता इस महामारी में अपने-अपने स्थलों पर ग्रामीणों में जन जागरण, भूखे-प्यासे गरीब की दैनिक आवश्यकता पूर्ति, औषधि-उपचार की व्यवस्था में लगा हुआ है। यहां भारतीय किसान संघ केन्द्र सरकार का भी आह्वान करता है कि केवल हिंसक आंदोलनकारियों के अलावा भी देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्यान्य किसान संगठन और भी हैं। जिनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी की जा रही है। इन किसान संगठनों को बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाईयों पर वार्ता की जानी चाहिए।