नई दिल्ली। देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में बढ़ते मामलों के बीच स्टेरॉयड्स के यूज को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। कोरोना वायरस संक्रमण की पहली लहर के दौरान महामारी के इलाज में स्टेरॉयड्स एक प्रभावी विकल्प बन कर उभरा था। कई केसेज में यह लोगों की जान बचाने में मददगार साबित हुआ था। अब महामारी के दूसरी लहर के दौरान डॉक्टर स्टेरॉयड्स का यूज स्पेसिफिक केस में कर रहे हैं।
इसके साथ ही लोगों को कहा जा रहा है कि वह बिना लोकल फिजिशियन की सलाह के स्टेरॉयड्स का प्रयोग ना करें। इस बारे में मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड ऑफ पल्मोनोलॉजी डॉ. विवेक नांगिया और इंटरनल मेडिसिन के डायरेक्टर ने स्टेरॉयड्स को लेकर बातचीत की।
दोनों डॉक्टर ने बताया कि किस सिचुएशन में स्टेरॉयड्स का यूज करना है और यह पेशेंट्स पर किस तरह से काम करता है। स्टेरॉयड्स के प्रयोग के सवाल पर इन्होंने बताया कि कोरटिकोस्टेरॉयड्स (Corticosteroids) या स्टेरॉयड्स वो दवा है जो कोर्टिसोल के समान है। ये एक ऐसा हार्मोन है जो हमारे एडर्नल ग्लैंड से बनता है। ये पावरफुल एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स है जो कोरोना संक्रमण के गंभीर मामलों में इन्फ्लेशन को कम करता है।
ऑक्सिजन सपोर्ट वाले पेशेंट्स के लिए मददगार
यदि समय पर जांच नहीं हो तो ऐसा इन्फ्लेमेशन फेफड़े जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। कोरोना की पहली लहर में यूके में रिकवरी ट्रायल के बाद महामारी के गंभीर मामलों में स्टेरॉयड्स का यूज काफी कॉमन हो गया। ट्रायल में सामने आया कि यह ऑक्सिजन सपोर्ट या वेटिंलेटर वाले संक्रमित पेशेंट्स की मृत्यु दर को कम करता है।
स्टेरॉयड्स के यूज से गंभीर हो सकता है संक्रमण
कोविड में पहले सप्ताह के दौरान मुख्य रूप से वायरस के कारण होना वाला संक्रमण होता है। दूसरे सप्ताह में बॉडी में इम्यून रिस्पॉन्स होना शुरू होता है, यह वो समय है जब स्टेरॉयड्स अपना असर दिखाना शुरू करता है। यदि पहले सप्ताह में ही पेशेंट को स्टेरॉयड्स दिया जाएगा तो संक्रमण और गंभीर हो सकता है या फिर सेकेंडरी इन्फेक्शन हो सकता है।
हल्के लक्षण वालों के लिए स्टेरॉयड्स की जरूरत नहीं
हल्के लक्षण वाले जो पेशेंट होम आइसोलेशन में है, जिनका ऑक्सिजन सैचुरेशन 94 परसेंट हैं और उनमें न्यूमोनिया का कोई लक्षण नहीं है। ऐसे लोगों को स्टेरॉयड्स दिए जाने की कोई जरूरत नहीं है। तेज बुखार, खांसी के कारण हालत खराब होने पर स्ट्रिक्ट मेडिकल सुपरविजन में 3-5 दिन का एक छोटा कोर्स चलाया जा सकता है।
साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं?
चूंकि इसका ट्रीटमेंट पीरियड छोटा है, ऐसे में कोर्टिकोस्टेरॉयड्स का हाईडोज से भी कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स नहीं होता है। हालांकि, स्टेरॉयड्स के शॉर्ट कोर्स से हाई ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, नींद नहीं आना, साइक्लोजिकल इफेक्ट्स, भूख लगना, वजन बढ़ना और सेकेंडरी इन्फ्लेमेशन हो सकते हैं। दो सप्ताह से अधिक समय तक स्टेरॉयड्स का यूज करने पर ग्लूकोमा, कैटारैक्ट, फ्लूइड रिटेंशन, हाईपरटेंशन, याददाश्त संबंधी समस्या, इंफेक्शन का खतरा और ऑस्टियोपोरोसिस हो सकता है।
स्टेरॉयड्स का प्रेगनेंट या स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर क्या असर हो सकता है?
बीटामेथासोन और डेक्सामेथासोन जैसे स्टेरॉयड्स प्रेगनेंट महिलाओं के साथ ही स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दिया जा सकता है। संभावित फायदों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रेगनेंट महिलाओं जो वेटिंलेटर या ऑक्सिजन सपोर्ट पर हैं, के लिए डेक्सामेथासोन की सलाह दी जाती है। हालांकि, कोरोना संक्रमित बच्चों पर स्टेरॉयड्स की सेफ्टी और प्रभावी होने को लेकर अभी तक पूरी तरह से कोई बात सिद्ध नहीं हुई है। इनका यूज केस के आधार पर अलग-अलग किया जाता है।
स्टेरॉयड्स का ब्लैक फंगस से क्या संबंध है?
बिना जरूरत के स्टेरॉयड्स का हाई डोज या एंटीबायोटिक का प्रयोग घातक फंगल इन्फेक्शन का कारण हो सकता है। आज कल चर्चा में आया म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस बहुत रेयर फंगल इन्फेक्शन है। ब्लैक फंगस कैंसर की तरह मरीजों की हड्डियां तक गला रहा है। यह अपने आसपास की कोशिकाएं भी नष्ट कर सकता है। यह अब कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियाों में सामने आ रहा है।