नई दिल्ली। खाद्य तेल का आयात महंगा होने से सरसों की खपत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इस साल सरसों की पैदावार कुछ अच्छी हुई है, पर तिलहन मिलों का बकाया स्टोक शून्य होने की वजह से सरसों की आवक 10 से 15 लाख टन कम रहेगी। सबसे बड़ी वजह पिछले साल फरवरी – मार्च में सरसों का मिश्रण (ब्लेंडींग) अन्य तेलो के साथ होता था जो इस साल फरवरी माह बाद 1 किलो का भी नही हो रहा है। क्योंकि अन्य तेलों के मुकाबले सरसों सस्ता पड़ रहा है।
मिलवालो को सरसों में काफी सालों बाद अच्छा पड़ता आ रहा है। सन 1980 के दशक में हमारी तेल की खपत प्रति व्यक्ति 4 से 4.5 किलो थी जो आज बढ़कर 18 से 18.5 किलो हो गई है और आबादी भी काफी बढ गई है। सन 1980 के दशक में सरकार ने वनस्पति में रिफाईंड सरसों के तेल पर रोक लगा दी थी। क्योंकि सरसो का तेल डायरेक्ट खाने का तेल है। आज के हालात देखते हुए सरसों का भाव जून महीने में 7000 /- अगस्त में 8000 /-व दिवाली पर 10000 /- प्रति क्विंटल होने की संभावना है।
दिवाली के बाद 12 से 14 हजार प्रति क्विंटल होने की उम्मीद है। हालिया स्थिति का संज्ञान लेते हुए सरकार को सरसों रिफाईंड पर रोक लगानी चाहिए। बाजार भाव से सरसों की खरीद करनी चाहिए। जिससे किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और सरसों व सोयाबीन की खेती पर ज्यादा ध्यान देगें। यदि सरकार MSP भाव पर ही खरीद करेगी तो कोई अपना माल नही बेचेगा। जिसकी आवक 10-15 दिनो तक ही रहेगी।
सनफ्लावर का तेल तैयार 1 किलो का भाव 205 /- हो गया है, जबकी सनफ्लावर का तेल सिर्फ 2 से 3 स्टेट में बिकता है जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक व अन्य। जबकि सरसों की खपत सारे भारतवर्ष में होती है। आज पूरा विश्व खाद्य तेल की कमी से जूझ रहा है। सनफ्लावर सब तेलो का विकल्प है। पर सरसों का कोई विकल्प नहीं है। यह सिर्फ भारत में ही हाईप्रजेंसी में मिलता है। सरकार समय रहते बाजार भाव से सरसो खरीद करें। जिससे प्रोत्साहित किसान तिलहन की खेती की ओर अग्रसर हों ।