नई दिल्ली। अगले साल यानी 2021 में अप्रैल महीने से नया वेज रूल (New Wage Rule) यानी वेतनमान का नियम लागू होगा। इसकी वजह से ना केवल प्रोविडेंट फंड (Provident Fund), ग्रेच्युटी (Gratuity) और हाथ में आने वाली सैलरी (In hand salary) पर असर पड़ेगा, बल्कि भारत के फॉर्मल सेक्टर (इंडिया इनकॉरपोरेशन) की बैलेंस शीट पर भी इसका असर पड़ेगा। सरकार ने पिछले ही साल संसद में वेज कोड (Wage Code) पारित किया था और कंपनसेशन (Compensation) के ये नए नियम उसी वेज कोड का हिस्सा हैं। इन नई व्यवस्था के कुछ फायदे (advantages of new wage rule) हैं तो कुछ नुकसान (disadvantages of new wage rule) भी हैं।
अगले वित्त वर्ष 2021-22 से वेज की नई परिभाषा लागू होगी, जिसमें प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले एग्जिक्युटिव्स की सैलरी भी शामिल है। नए नियम के तहत तमाम भत्ते कुल सैलरी के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकते हैं। यानी कि अप्रैल 2021 से कुल सैलरी में बेसिक सैलरी का हिस्सा 50 फीसदी या फिर उससे भी अधिक रखना होगा। ये नया वेज रूल आने के बाद सैलरी स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
नए वेज नियम से क्या होंगे फायदे?
नए वेज रूल को लेकर तमाम कंपनियों के एचआर हेड से बात की और जानना चाहा कि इससे क्या असर पड़ेगा और उससे क्या फायदे-नुकसान होंगे। बात अगर इसके फायदे की करें तो इसका असल फायदा रिटायरमेंट के बाद पता चलेगा, क्योंकि इससे ग्रेच्युटी की रकम बढ़ जाएगी। दरअसल, ग्रेच्युटी बेसिक सैलरी के हिसाब से कैल्कुलेट होती है और बेसिक सैलरी बढ़ने की वजह से ग्रेच्युटी की रकम भी बढ़ जाएगी। इस नई व्यवस्था में कर्मचारी और कंपनी दोनों का ही पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ जाएगा। यानी आपके पास सेविंग्स बढ़ेंगी। हालांकि, इसका आपकी इन हैंड सैलरी पर बड़ा असर पड़ेगा।
नए वेज नियम के ये हैं नुकसान
नए वेज नियम के फायदे कम हैं, नुकसान ज्यादा हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान तो ये है कि इसके चलते कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी कम हो जाएगी। बता दें कि अधिक सैलरी पैकेज वाले एग्जिक्युटिव्स की सैलरी में 70-80 फीसदी हिस्सा तो भत्तों का ही होता है। कर्मचारियों से अधिक इस वेज रूल का बोझ कंपनियों पर पड़ेगा। पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन और ग्रेच्युटी में बढ़ोतरी की वजह से कंपनियों की लागत बढ़ेगी और ये कहना गलत नहीं होगा कि कंपनियां अपना ये पूरा बोझ कर्मचारियों के कंधों पर डालने में जरा नहीं हिचकेंगी।