कोटा । कोविड-19 के खिलाफ जंग में अब बड़े पैमाने पर आयुर्वेदिक औषधियों को भी आजमाने की तैयारी की जा रही है। इस संदर्भ में कुछ दिन पहले ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने अश्वगंधा सहित चार आयुर्वेदिक औषधियों एवं आयुष-64 नामक आयुर्वेदिक दवाओं को इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) और आयुष मंत्रालय की पहल पर ऐसा किया गया है। आयुर्वेद के डॉ. सुधींद्र श्रृंगी के अनुसार फिलहाल अश्वगंधा सहित जिन अन्य आयुर्वेदिक औषधियों को क्लीनिकल ट्रायल के लिए अनुमति दी गई है, उनमें मधुयष्टि, पीपली और गुरुच (गिलोय) शामिल हैं।
कोरोना संक्रमण विषाणु यानी वायरस जनित रोग है, जो व्यक्ति के श्वसन तंत्र पर आक्रमण करता है और कुछ ही दिनों में रोगी को गंभीर अवस्था में पहुंचा देता है। आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार सबसे पहले हमें ‘स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्’ अर्थात जो स्वस्थ हैं, उनको कैसे स्वस्थ रखा जाए, इसके विषय में सोचना होता है।
यही वजह है कि आयुष मंत्रालय और सीएसआइआर ने इस रोग से लड़ने हेतु चार औषधियों का एक मिश्रण तैयार किया है, जिसको सबसे पहले रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु दिया जाएगा ताकि लोगों में इस रोग से लड़ने की क्षमता विकसित की जा सके।
इन चार औषधियों में जहां अश्वगंधा तंत्रिका तंत्र को पुष्ट बनाती है, वहीं मधुयष्टि (जिसको मुलहठी या मुलैठी कहते हैं) व पीपली यानी छोटी पीपल व्यक्ति के श्वसन तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और गुरुच (गिलोय) प्रसिद्ध ज्वरनाशक औषधि है। इन सभी औषधियों का सम्मिश्रण रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा, जो इस रोग में ही नहीं अन्य रोगों से बचाव हेतु भी प्रभावशाली सिद्ध होगा।
इस मिश्रण को आयुर्वेद में वर्णित क्वाथ-विधि यानी काढ़ा बनाकर प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। क्वाथ बनाने के लिए चारों औषधियों को समान मात्रा में लेकर (प्रत्येक ढाई ग्राम, कुल दस ग्राम) थोड़ा कूटकर चार गुना पानी में उबाल लें। मात्रा एक चौथाई शेष रह जाने पर इसे छानकर कोष्ण यानी गुनगुना, सुबह-शाम कम से कम पंद्रह दिनों तक पीने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है और कोविड-19 के प्रभाव से भी बचा जा सकता है।
रोग हो जाने पर रोगी की चिकित्सा करना : आयुर्वेद का अगला सिद्धांत है ‘आतुरस्य विकार प्रशमनं’ अर्थात रोग हो जाने पर रोगी की चिकित्सा करना। चूंकि कोविड संक्रमण रोगी के श्वसन तंत्र पर आक्रमण करता है और इसकी उत्तरोत्तर गंभीरता को देखते हुए इस रोग को त्रिदोषज प्रतिश्याय, त्रिदोषज कास और त्रिदोषज श्वांस में रखा जा सकता है। इन रोगों में प्रयुक्त होने वाली विशेष औषधियां जैसे सितोपलादि चूर्ण, तालिसादि चूर्ण, चंद्रामृत रस, कडकेतु रस, श्वांसकुठार रस, वासाअवलेह, कनकासव आदि भी प्रभावशाली सिद्ध हो सकती हैं लेकिन इनका उपयोग केवल विशेषज्ञ की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।
इन नियमों का करें अनुपालन : इस समय जरूरी है कि सब लोग आहार-विहार का विशेष ध्यान रखें। साधारण सब्जी, रोटी, दाल, चावल से युक्त ताजा भोजन करें। यथाशक्ति दूध, घी और ताजा दही का सेवन करें। चाय में एक पत्ता तुलसी और थोड़ा अदरक बहुत हितकारी है। बासी भोजन, खट्टे पदार्थ, खट्टा दही, बाहर से मंगवाया गया खाद्य पदार्थ, खट्टे फलों का रस, मांस, मदिरा तथा धूमपान का सेवन कतई न करें। जहां तक हो सके, फ्रिज में रखे ठंडे पानी से परहेज करें। हल्का गुनगुना पानी ही पिएं, यह विशेष रूप से श्वसन तंत्र के लिए लाभदायक होता है। इसके अलावा, भीड़भाड़ में जाने से परहेज करें।