भारत डिजिटल पेमेंट के मामले में अग्रणी देश बना

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मुंबई। डिजिटल पेमेंट के मामले में भारत मजबूती से उभरा है और उसने इस मामले में भारी संभावनाएं दर्शाई हैं। डिजिटल इवोल्यूशन इंडेक्स 2017 के अनुसार भारत की गिनती उन 60 देशों की ब्रेक आउट श्रेणी में हुई है, जिसमें किसी देश का डिजिटल विकास का स्तर काफी नीचे होने के बावजूद विकास की व्यापक संभावनाएं हैं।

अमेरिका की टुफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्लेचर स्कूल ने मास्टर कार्ड के सहयोग से डिजिटल इवोल्यूशन इंडेक्स 2017 तैयार किया है। इस इंडेक्स में तमाम देशों में डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए हुई प्रगति और आम लोगों को इससे जोड़ने के प्रयासों पर व्यापक अध्ययन किया गया है।

मास्टर कार्ड के अनुसार भारत में नोटबंदी के फैसले के कारण बने माहौल ने डिजिटल पेमेंट की दिशा में खासी बढ़त के लिए आधार तैयार किया। आज भारत में ज्यादा से ज्यादा लोग दैनिक जीवन में डिजिटल पेमेंट को अपना रहे हैं। इसके कारण तेज प्रगति दर्ज की गई है।

मास्टर कार्ड के कंट्री कॉरपोरेट ऑफिसर व प्रेसीडेंट (साउथ एशिया) पौरुष सिंह ने कहा कि भारतीय बाजार में नई कंपनियां आ रही हैं और वैकल्पिक भुगतान के तमाम समाधान सामने आ रहे हैं। इससे तेज विकास के लिए माहौल बन रहा है। आज दुनिया में करीब आधी आबादी ऑनलाइन है, स्टडी में 60 देशों में अच्छी प्रगति दिखाई दी है।

इन देशों में डिजिटल आर्थिक विकास के लिए प्रतिस्पर्धा का माहौल है और काफी संभावनाएं हैं। इंडेक्स में सप्लाई, उपभोक्ता मांग, संस्थागत माहौल और इनोवेशन पर देशों का आंकलन किया गया है।

फिनटेक सॉफ्टवेयर मार्केट 91 हजार करोड़ का होगा
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि डिजिटल पेमेंट का विस्तार होने के कारण अगले तीन साल में फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी सॉफ्टवेयर सर्विस मार्केट 14 अरब डॉलर (91000 करोड़ रुपये) का हो जाएगा।

इस समय 600 से ज्यादा स्टार्टअप्स कर्ज वितरण, भुगतान, बीमा और ट्रेडिंग में लगे हैं। इस समय इस सेक्टर का कुल बाजार करीब आठ अरब डॉलर का है।

उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट का तेजी से विकास हुआ है। वर्ष 2016-17 में डिजिटल पेमेंट बीते वर्ष के मुकाबले 55 फीसद बढ़ गया। पिछले पांच वर्षों में औसत विकास दर 28 फीसद रही।

CII के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इस दौरान डेबिट कार्ड 104 फीसद, प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट 163 फीसद और पीओएस यानी स्वाइप मशीनों का इस्तेमाल 83 फीसद बढ़ गया। उन्होंने कहा कि नकदी से लेनदेन काफी महंगा पड़ता है। भारतीय रिजर्व बैंक को हर साल करेंसी प्रचलन पर करीब 21000 करोड़ रुपये का खर्च करना होता है।