मुंबई। बुआई में कमी और मांग बढऩे की संभावना से सोयाबीन की कीमतों में सुधार शुरू हो गया है। चालू खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुआई करीब 18 फीसदी कम है जबकि सोयाखली की निर्यात मांग ज्यादा है।
वैश्विक बाजार में भी सोयाबीन में तेजी है जो घरेलू बाजार में भी मजबूती ला सकती है। सोयाबीन के सबसे बड़ा उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में कम बुआई के साथ फसल खराब होने की भी आशंका है। सोयाबीन रकबे में कमी की आशंकाओं के साथ ही कीमतों में सुधार शुरू हो गया है।
देशभर में सोयाबीन की अब तक 85 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है जो पिछले साल से 18 फीसदी कम है।
वायदा बाजार में सोयाबीन ने हरे निशान पर कारोबार करना शुरू कर दिया है। एनसीडीईएक्स पर सोयाबीन के सभी अनुबंध बढ़त के साथ बंद हुए। सोयाबीन अगस्त अनुबंध बढ़त के साथ 3,042 रुपये, अक्टूबर 3,169 रुपये, नवंबर 3,207 रुपये और दिसंबर अनुबंध का वायदा 3,255 रुपये प्रति क्ंिवटल पर बंद हुआ।
हाजिर बाजार में भी सोयाबीन 3,000 रुपये प्रति क्ंिवटल की तरफ बढऩा शुरू हो गया। हाजिर बाजार में सोयाबीन की कीमतें बढ़कर 2,969 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गई। कारोबारियों की मानी जाए तो बाजार में लगातार आवक कमजोर हो रही है जबकि निर्यात मांग बेहतर होने से सोया मिलों की मांग बढ़ी है।
सोयाबीन की कीमतों में सुधार का सबसे प्रमुख कारण बुआई कम होना माना जा रहा है। देशभर में सोयाबीन की अब तक 85 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है जो पिछले साल से 18 फीसदी कम है। पिछले साल इस समय तक देश में 103 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन बोया जा चुका था।
कृषि मंत्रालय के सामान्य बुआई रकबे में भी सोयाबीन पिछड़ा है। कृषि विभाग के अनुमान के मुताबिक 21 जुलाई तक देश में सोयाबीन की बुआई करीब 95 लाख हेक्टेयर में हो जानी चाहिए थी। खरीफ सीजन में सोयाबीन का कुल सामान्य रकबा 110 लाख हेक्टेयर आंका जात है।
सोयाबीन के साथ खरीफ सीजन की कुल तिलहन फसलों की भी बुआई इस साल कम है। तिलहन फसलों की अभी तक 123.55 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 144.82 लाख हेक्टेयर में तिलहन फसलों की बुआई हुई थी।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार सोयामील और इससे बने उत्पादों का निर्यात बढ़कर 64 हजार टन पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में 56 फीसदी ज्यादा है। कमोडिटी मामलों के जानकार अनिल अग्रवाल के मुताबिक सोयाबीन की कीमतें जून महीने से चमकने लगीं। इसका कारण निर्यात मांग के बेहतर आंकड़े रहे हैं लेकिन जुलाई के दूसरे सप्ताह इसमें हल्की गिरावट शुरू हुई।
दरअसल इस साल बेहतर मॉनसून की भविष्यवाणी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि बुआई और उत्पादन दोनों बेहतर रहेंगे। लेकिन फसल बुआई के आंकड़े कमजोरी दिखा रहे हैं। मध्य प्रदेश में कम बुआई के साथ फसल खराब होने की भी आशंका है यानी देश में इस साल सोयाबीन का उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा कम हो सकता है।
दूसरी तरफ निर्यात बेहतर रहने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। तीसरी बात अंतराष्ट्रीय बाजार में तेजी बनी हुई है जिसका असर घरेलू बाजार पर भी पडऩे वाला है। सोयाबीन उत्पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश में बुआई पिछड़ चुकी है। मध्य प्रदेश में अभी तक 40.12 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई है।
राज्य में अब तक 53.23 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हो जानी चाहिए। पिछले साल यानी वर्ष 2016 के दौरान राज्य में 49.70 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी जबकि 2015 में 55.46 लाख हेक्टेयर, 2014 में 55.02 लाख हेक्टेयर, 2013 में 58.80 लाख हेक्टेयर और 2012 में 47.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हुई थी।
कृषि विभाग के मुताबिक इस बार सबसे कम सोयाबीन की बुआई हुई है। सोपा से जुड़े लोगों की मानी जाए तो किसानों के रुझान को देखते हुए कहा जा सकता है कि चालू खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुआई अपने सामान्य रकबे तक पहुंचना मुश्किल है। मध्य प्रदेश में सोयाबीन का सामान्य रकबा करीब 59 लाख हेक्टेयर है।