नई दिल्ली/भोपाल। हारी हुई बाजी को जीत जाना कोई भाजपा से सीखे। लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी की प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में वापसी हुई। इसके बाद, पार्टी ने मिशन मोड में जाकर जिन दो बड़े राज्यों में सत्ता गंवाई थी, उन्हें फिर से हासिल कर लिया। पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव हुए।
उसके बाद जुलाई 2019 में कर्नाटक के भीतर पॉलिटिकल ड्रामा चला। जब वहां फ्लोर टेस्ट हुआ तो कांग्रेस की सरकार गिर गई। 8 महीनों के भीतर, बीजेपी ने मध्य प्रदेश में भी वैसी ही कहानी दोहराई और कमलनाथ सरकार गिर गई। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हो पाता, उससे पहले ही शुक्रवार दोपहर कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया।
कर्नाटक में कैसे BJP ने गिराई कुमारस्वामी सरकार?
मई 2018 में कर्नाटक के विधानसभा चुनाव हुई। किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला मगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस ने जनता दल (सेक्युलर) से हाथ मिला लिया और बीजेपी के सरकार बनाने के अरमानों पर पलीता लगा दिया। एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार बनी। बार-बार कुमारस्वामी गठबंधन की मजबूरी का रोना रोते रहे।
सार्वजनिक मंचों से उन्होंने कई बार कहा कि गठबंधन का अलग दर्द होता है। सरकार करीब 14 महीने चली भी मगर लोकसभा चुनाव के नतीजे जैसे ही आए, कांग्रेस-जेडीएस के 17 विधायकों ने बगावत कर दी। दो निर्दलीयों ने भी कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। बागी विधायक गोवा और मुंबई के होटल चले गए।
राजनीति गरमाई, फिर हुआ फ्लोर टेस्ट
कांग्रेस-जेडीएस का आरोप था कि बीजेपी ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत हॉर्स ट्रेडिंग कर रही है। विधायकों के इस्तीफे का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। कोर्ट ने स्पीकर ने जल्द फैसला करने को कहा। स्पीकर ने बहुमत परीक्षण के लिए 18 जुलाई 2020 की तारीख तय की मगर प्रस्ताव आया तो उसपर 4 दिन तक चर्चा होती रही। राज्यपाल ने दो बार डेडलाइन बदली मगर फ्लोर टेस्ट नहीं हो पाया। चौथे दिन जाकर जब फ्लोर टेस्ट हुआ तो कुमारस्वामी सरकार गिर गई।
मध्य प्रदेश में दोहराई वही कहानी
एमपी में भी 2018 में ही विधानसभा चुनाव हुए। 230 सीटों में से बीजेपी ने 109, कांग्रेस ने 114, बीएसपी ने 2, सपा ने एक सीट पाई। चार निर्दलीय भी चुनाव जीते। कमलनाथ ने सपा, बसपा और निर्दलीयों को साधा और राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई। लोकसभा चुनाव में जीत के बाद, बीजेपी ने कोशिशें शुरू कीं। कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में कर लिया। 10 मार्च को सिंधिया खेमे के 22 कांग्रेस विधायक बेंगलुरु चले गए और यहीं से अपना इस्तीफा भिजवा दिया। स्पीकर ने मंत्री रहे 6 विधायकों का इस्तीफा तो स्वीकार कर लिया मगर बाकी 16 पर कोई फैसला नहीं किया। ड्रामा बढ़ता गया।
सुप्रीम कोर्ट से हुआ फ्लोर टेस्ट का आदेश, फिर गिर गई कांग्रेस सरकार
बीजेपी ने गवर्नर से मांग की कि कांग्रेस सरकार अल्पमत में है और बहुमत परीक्षण कराया जाए। राज्यपाल ने तीन बार कमलनाथ सरकार को पत्र लिखा मगर वह नहीं माने। शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दो दिन बहस के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि 20 मार्च 2020 की शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराया जाए। 19 मार्च की रात तक स्पीकर ने बाकी 16 विधायकों के इस्तीफे भी स्वीकार कर लिए और ये तय हो गया कि कांग्रेस सरकार अब गिर जाएगी। 20 मार्च की दोपहर में कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि वे इस्तीफा दे रहे हैं।
अपने बोझ से गिरी कमलनाथ सरकार : शिवराज
कमलनाथ के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार माने जा रहे शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस की सरकार अपने बोझ से गिरी है। 13 साल तक प्रदेश के सीएम रह चुके चौहान ने कहा, “भाजपा कभी सत्ता गिराने बचाने के खेल में नहीं रही। अपने बोझ से यह (कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस नीत) सरकार गिरी है।” उन्होंने कहा, “यह सरकार अपने अंर्तद्वंद से गिरी है। (कांग्रेस नेताओं में) आंतरिक कलह के कारण गिरी है।”
इस्तीफा देने से ठीक पहले कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था, “मेरी सरकार को अस्थिर कर भाजपा प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के साथ विश्वासघात कर रही है। उसे यह भय सता रहा है कि यदि मैं प्रदेश की तस्वीर बदल दूंगा तो प्रदेश से भाजपा का नामोनिशान मिट जाएगा।”