नई दिल्ली।भारत समेत दुनियाभर में आज महिलाएं फाइटर एयक्राफ्ट से लेकर वायुयान हर एक वाहन चलाने में आगे हैं। लेकिन आपको पता चले कि इन वाहनों को महिलाओँ के हिसाब से डिजाइन ही नहीं किया जाता है फिर? जी हा, फिलहाल यूनीवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया की रिपोर्ट तो यही कहती है।
रिपोर्ट की मानें, तो कार चलाने वाली दुनिया की आधी आबादी के शारीरिक बनावट और वजन के हिसाब वाहन में सेफ्टी फीचर्स नहीं दिए जाते हैं, जिसके चलते दुर्घटना के दौरान महिलाओं के मौत होने या फिर चोटिल होने की संभावना पुरूषों के मुकाबले 73 फीसदी ज्यादा होती है।
महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग हो सेफ्टी फीचर्स
वाहन निर्माता कंपनियां पिछले कुछ वर्षों से कार को ज्यादा से सुरक्षित बनाने पर जोर देती रही हैं। इसके लिए कार की लॉन्चिंग से पहले उसका क्रैश टेस्ट कराया जाता है। इस दौरान जिन डमी पर कार क्रैश टेस्ट कराया जाता है, वो पुरुष के साइज और बजन के हिसाब से डिजाइन होती है। इसमें महिला डमी या फिर युवाओं की डमी का इस्तेमाल काफी कम या फिर न के बराबर होता है।
इसकी वजह से कार क्रैश के दौरान महिलाओं के चोटिल होने की ज्यादा संभावना होती है। यूनीवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया ने दावा किया है कि सीट पहनने के बावजूद महिला चालक को पुरुष चालक के मुकाबले में 73 फीसदी ज्यादा गंभीर चोट लग सकती है। ऐसा सीट बेल्ट के पुरुष के शरीर के हिसाब से बनाए जाने की वजह से है।
महिलाओं के लिए आ सकते हैं अलग सेफ्टी फीचर्स
यह समस्या 1980 से चली आ रही है। उस वक्त भी कार टेस्ट के दौरान महिलाओं के शरीर वाली डमी इस्तेमाल की बात कही गई थी। लेकिन अभी तक इसमें सुधार नहीं देखा गया है।हालांकि कार निर्माता इसे लेकर काफी गंभीर नहीं है। उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि फीमेल डमी ज्यादा कारगर साबित नहीं होगी, क्योंकि मौजूदा वक्त में अमेरिका में फीमेल की हाइट और वेट लगभग पुरषों के बराबर है।
हालांकि ऑटो जानकार की मानें, तो कार कंपनियां का ऐसा बयान केवल अपने बचाव के लिए है। दअसल महिलाओं को शरीरिक बनावट के हिसाब से अलग सेफ्टी फीचर्स लाने होंगे या फिर हो सकता है कार में अन्य बदलाव करना पड़े। इससे बचने के लिए कार निर्माता कंपनियां बहाना बना रही हैं और खर्च करने से बच रही हैं। साइंस की जानकारों की मानें, तो महिला और पुरुष की शारीरिक बनावट और साइज अलग होता है। ऐसे में क्रैश टेस्ट में केवल पुरुष डमी का इस्तेमाल करना गलत है।
साल 1980 से शुरू हुआ डमी से कार क्रैश टेस्ट
यूरोपियन कार टेस्ट में क्रैश टेस्ट के दौरान डमी का इस्तेमाल साल 1980 से शुरू हुआ। इन्हें थॉर नाम दिया गया। इन डमी का क्रैश टेस्ट में साल 2020 तक इस्तेमाल किया जाना है। फीमेल डमी के इस्तेमाल को लेकर मौजूदा वक्त में कोई योजना नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि अगर इनका इस्तेमाल क्रैश टेस्ट के दौरान होता है, तो इससे ज्यादा सही डाटा मिलेगा और कार को ज्यादा सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी।