‘सांड की आंख’ की वजह से मशहूर है यह गांव, जानिए आप भी

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बागपत के जोहरी गांव की दो महिलाओं चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर यानी शूटर दादी की जिंदगी पर आधारित फिल्‍म ‘सांड की आंख’ दीवाली के मौके पर रिलीज होने जा रही है। दोनों ने 60 वर्ष की उम्र में स्थानीय राइफल क्लब में शूटिंग सीखनी शुरू की थी। फिल्‍म में भूमि पेडनेकर ने चंद्रो और तापसी पन्‍नू ने प्रकाशी की भूमिका निभाई है।

चंद्रो और प्रकाशी की कहानी भले ही फिल्मी लगती हो लेकिन यह सभी के लिए प्रेरणादायक है। दोनों आगे चलकर काफी लोकप्रिय हुईं और कई ट्रोफियां जीतीं। बता दें, चंद्रो ने 1999 में अचानक शूटिंग शुरू की थी और उसी वक्‍त उनकी पोती शेफाली ने भी जोहरी राइफल क्लब में शूटिंग सीखना शुरू किया था।

चूंकि क्लब लड़कों का था, इसलिए शेफाली क्‍लब में अकेले जाने में डरती थीं। इस बारे में 87 वर्षीय चंद्रो बताती हैं, ‘मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं और डरने की कोई जरूरत नहीं है।’

जब यहां शेफाली पिस्तौल में गोलियां नहीं डाल पा रही थीं, तब चंद्रो ने उनकी मदद की थी। उन्‍होंने शेफाली की जगह पोजिशन लिया, लक्ष्य पर निशाना लगाया और पूरे 10 भेदे जिसे ‘बुल्सआई’ या ‘सांड की आंख’ भी कहते हैं।

चंद्रो का निशाना देखकर क्लब के लड़के और कोच फारूक पठान आश्चर्यचकित रह गए और उन्‍होंने सुझाव दिया कि वह इसकी ट्रेनिंग लें और शूटर बन जाएं। चंद्रो ने इंटरव्‍यू में कहा, ‘मैं जानती थी कि मुझे घर से अनुमति नहीं मिलेगी लेकिन जब बच्चों ने मुझे प्रोत्साहित किया, मुझमें भी शूटिंग की रुचि जगी।’

चंद्रो ने आगे बताया, ‘मैं खेतों में एक जग पानी के साथ अभ्यास करने जाती थी और निशाना लगाती थी और डर लगता था कि कहीं पकड़ी न जाऊं। दो हफ्ते बाद मेरी रिश्तेदार प्रकाशी भी मेरे नक्शेकदम पर चल पड़ी। अब वह 82 वर्ष की हो गई है। जोहरी गांव पहले आटा चक्की के लिए मशहूर था लेकिन अब इस गांव में देशभर से शूटर आते हैं। फिल्म बन जाने के कारण यह और लोकप्रिय हो गया है।’

https://youtu.be/veJZPsd7iN0

बता दें, प्रकाशी ने वर्ष 2000 में वेटरन कैटिगरी में उत्तरप्रदेश राज्य स्वर्ण पदक पुरस्कार जीता था। उनके घर के पास ‘शूटर दादी’ के बोर्ड लगे हैं जिस पर ‘बेटी बचाओ, बेटी खिलाओ, बेटी पढ़ाओ’ लिखा हुआ है। यहां खिलाओ का मतलब ‘खेलने देने’ से है।