कोटा। महावीर नगर विस्तार योजन स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्निी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के दौरान माताजी ने कहा कि जैन दर्शन में अहिंसा एवं आत्मशुद्धि को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
प्रत्येक समय हमारे द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कार्यों से कर्म बंधा होता है, जिनका फल व्यक्ति को अवश्य भोगना पड़ता है। शुभ कर्म जीवन व आत्मा को उच्च स्थान तक ले जाता है, वहीं अशुभ कर्मों से आत्मा मलिन होती जाती है।
धार्मिक क्रियाओं से आत्मशुद्धि की जाती है और मोक्षमार्ग को प्रशस्त्र करने का प्रयास किया जाता है। ताकि जनम-मरण के चक्र से मुक्ति पायी जा सकें। जब तक अशुभ कर्मों का बंधन नहीं छुटेगा, तब तक आत्मा के सच्चे स्वरूप को हम नहीं पा सकते हैं।