कोटा। आर्यिका सौम्यनंदिनी माताजी ससंघ के मंगल चातुर्मास पर सौम्यानंदिनी माताजी ने कहा कि सुख और दुख आदमी की जिंदगी में धूप और छांव की तरह चलते हैं। मगर सब कर्म के अधीन है। साता वेदनीय कर्म तलवार पर लगे शहद के समान है। परोपकार करने से पुण्य का आश्रव होता है। वे श्री दिगंबर जैन मंदिर महावीर नगर विस्तार योजना में प्रवचन कर रही थीं।
अपने धन का उपयोग केवल परिवार के भरण-पोषण में ना लगाए, गौ शाला खोले, गरीब बच्चों को पढ़ने में मदद करे, निशुल्क मेडिकल शिविर लगा कर दवाइयां बांटे, मगर किसी परोपकार के काम में नाम और सम्मान की भावना ना रखे। माताजी ने आगे कहा कि आज लोग मोह रूपी शराब पीकर अपने स्वरूप को भूल चुके हैं।
केवल दिखावे कि जिन्दगी जी रहे हैं। मंदिर मूर्ति और संतों को अपनी बपौती समझते हैं। महावीर स्वामी के संदेश और उपदेश सभी के लिए हैं। उन पर सम्पूर्ण राष्ट्र का अधिकार है। जैन दर्शन की शिक्षा दीक्षा लेने का अधिकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्रों को भी होगा, ऐसा तीर्थंकर ने कहा है। जैन धर्म जो पाले उन सबके लिए है।
भारत कर्म प्रधान है, जाति और धर्म प्रधान देश नहीं है। आज सभी धर्मों में कुछ बुरे लोग पैदा हो गए हैं, जो धर्म का नाम लेकर अपने स्वार्थों की रोटी सेंक रहे हैं, ऐसे लोग आज के रावण हैं। इस अवसर पर प्रकाशचंद पाटनी, मीना जैन,अंचित कुमार पाटनी, कनकमाला, पवन कुमार ठोला, पारूल जैन, लविशा, परिधि ठोला समेत कई लोग थे।