मुंबई। अमेरिकी शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियां भारत में रिश्वत देने के आरोपों को लेकर जांच के घेरे में आ गई हैं। कैब एग्रीगेटर ऊबर ने पिछले हफ्ते इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) प्रॉस्पेक्टस में बताया था कि यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (डीओजे) भारत में कंपनी के ‘अनुचित भुगतान’ की जांच कर रहा है।
आईटी कंपनी कॉग्निजेंट को भी भारत में रिश्वत देने के आरोप की वजह से यूएस सिक्योरिटीज ऐंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) को 2.8 करोड़ डॉलर का जुर्माना देना पड़ा था। कंपनी ने भारत में ऑफिस कैंपस बनाने के लिए कथित तौर पर रिश्वत दी थी। यह कैंपस लार्सन ऐंड टुब्रो (एलएंडटी) ने बनाया था। आरोप के मुताबिक, कथित तौर पर यह रिश्वत एलएंडटी ने कॉग्निजेंट की तरफ से दी थी, लेकिन एलएंडटी ने इससे इनकार किया था।
2016 के बाद करीब दर्जन भर कंपनियों को उनकी भारतीय यूनिट्स के कथित भ्रष्ट तौरतरीकों को लेकर एसईसी ने घेरा है। इनमें एंब्रेयर, फॉर्च्यून 500 में शामिल मेडिकल टेक्नोलॉजीज फर्म स्ट्राइकर कॉर्प और हेल्थकेयर कंपनी एलेर इंक शामिल हैं। ये कंपनियां अमेरिका के फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज ऐक्ट (एफसीपीए) के दायरे में आई हैं।
इस कानून में अमेरिकी कंपनियों के विदेश में भी रिश्वत देने पर मनाही है। एफसीपीए उन विदेशी कंपनियों पर भी लागू होता है, जिनका अमेरिका में बड़ा कारोबार है। मिसाल के लिए, कॉग्निजेंट अमेरिका में लिस्टेड है और वहां उसका बड़ा कारोबार है। अमेरिका में इस तरह की जांच के घेरे में आने वाली ज्यादातर कंपनियों ने करोड़ डॉलर का जुर्माना देकर मामले को रफा-दफा किया है।
एफसीपीए के तहत सख्ती और इसके लिए एसईसी के अलग टास्कफोर्स बनाने के बाद पिछले तीन साल में कथित तौर पर भारत संबंधित करप्शन के कई मामले सामने आए हैं। 2000 से 2015 के बीच रेगुलेटर ने इस कानून के उल्लंघन के मामलों में 10 कंपनियों की पड़ताल की है। इनमें सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज का मामला सबसे बड़ा था। वह कई साल तक अपना मुनाफा फर्जी तरीके से अधिक दिखाती आ रही थी।