मुंबई। बिजनस ग्रुप की कंपनियों को 1 अप्रैल से रिजर्व बैंक की एक कंपनी के लिए बैंक लोन की तय सीमा से तालमेल बिठाना होगा। नए रूल्स की वजह से रिलायंस, टाटा, बजाज और आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनियों को फंड जुटाने के लिए बैंकों के अलावा दूसरे जरिये तलाशने होंगे। आरबीआई ने नए नियम में कहा है कि जिन कंपनियों पर 10 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है, वे उससे ऊपर की 50 पर्सेंट रकम का इंतजाम बॉन्ड या शेयर बाजार से करें।
बैंकों का जोखिम घटाने का प्रयास
रिजर्व बैंक ने बैंकिंग सिस्टम का जोखिम घटाने के लिए यह नियम बनाया है। उसका मानना है कि एक ही ग्रुप की कंपनियों को अधिक कर्ज दिए जाने से बैंकों के लिए जोखिम काफी बढ़ गया है। रिजर्व बैंक ने इस रिस्क को घटाने की शुरुआत वित्त वर्ष 2017-18 में की थी। उस समय उसने एक एंटिटी के लिए 25 हजार करोड़ की लिमिट तय की थी। वित्त वर्ष 2018-19 में इसे घटाकर 15 हजार करोड़ रुपये किया गया और नए वित्त वर्ष से इसे 10 हजार करोड़ किया जा रहा है।
60 कंपनियों पर नए नियम का असर
क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर सोमशेखर वेमुरी ने बताया कि इस नियम का असर 60 बड़ी कंपनियों पर होगा, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ये सारी कंपनियां बाजार से फंड जुटाने में सक्षम हैं। वेमुरी ने कहा, ‘ऐसी कंपनियों की संख्या 60 है और उन्हें इन्वेस्टमेंट ग्रेड से ऊपर की रेटिंग मिली हुई है।’ इसलिए मार्केट से फंड जुटाने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। उन्होंने यह भी बताया कि सिंगल एंटिटी के लिए अधिकतम कर्ज की सीमा में पिछले दो वित्त वर्ष से कमी की जा रही थी। इसलिए उन्हें नहीं लगता कि कंपनियों पर इसका कोई असर होगा।
बैंकों पर सख्ती
रिजर्व बैंक ने कहा है कि अगर बैंकों ने किसी कंपनी को कर्ज देने के साथ उसके बॉन्ड भी खरीदे हैं तो ओवरऑल लिमिट में उसे भी जोड़ा जाएगा। अगर बॉन्ड के साथ कर्ज की रकम रिजर्व बैंक की तय सीमा से अधिक होती है तो बैंकों को उसे मार्च 2021 तक तय लिमिट के अंदर लाना होगा।
आसानी से लागू होगा नियम
बैंकों ने बताया कि रिजर्व बैंक सिलसिलेवार ढंग से इस रूल को लागू कर रहा है। इसलिए बैंकिंग सिस्टम में इससे उथलपुथल नहीं मचेगी। ऐक्सिस बैंक के चीफ फाइनैंशल ऑफिसर जयराम श्रीधरन ने कहा, ‘कई कंपनियां काफी लंबे समय से मार्केट से फंड जुटा रही हैं। इनमें स्टील, इन्फ्रास्ट्रक्चर और टेलिकॉम सेक्टर की सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। वे फंड जुटाने के तरीके को पहले ही बदल चुकी हैं और इसे जारी रखेंगी। बैंक भी इन कंपनियों से जुड़े एक्सपोजर में बदलाव करेंगे।’