कोटा। गीता भवन में हो रहे प्रवचन में गुरुवार को राजेश्वरी देवी ने कहा कि दो विरोधी धर्मों के अधिष्ठाता उस अचिंत्य भगवान को हम अपनी प्राकृत बुद्धि से नहीं जान सकते। अगर यह बात हमें समझ में आ जाएगी, तो हम कभी भी भगवान के कार्यों में प्रश्न चिन्ह नहीं लगाएंगे।
उन्होंने कहा कि यह सत्य है कि भगवान को बुद्धि के बल से जाना नहीं जा सकता, लेकिन भगवान को हृदय के भावों से पाया जा सकता है। जो सरल हृदय होते हैं, भाव युक्त होकर भगवान से अपना संबंध जोड़ते हैं, उनके लिए भगवान सुलभ हैं। मीरा, तुकाराम, कबीर आदि अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने भगवान को देखा है, सुना है और बातें भी की है।
देवी ने बताया कि जो भगवान की शरण ग्रहण करता है, भगवान उस पर कृपा करते हैं, और वही भाग्यशाली मनुष्य भगवान को पा सकता है । उन्होंने कहा कि हमारी मन की आसक्ति संसार में होने के कारण भगवान की शरणागति शत-प्रतिशत नहीं हो पाती।
यह मन ही मोक्ष या बंधन का कारण है । यदि हम मन भगवान को देते हैं, तो यही मन मोक्ष का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाना ही उपासना है।