नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के लिए सरकारी नौकरियों में दस फीसद आरक्षण का विधेयक लोकसभा से पारित हो गया। बुधवार को अगर राज्यसभा से भी यह संविधान संशोधन पारित हो जाता है तो बिना विलंब आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा। यानी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा।
यह लाभ केवल हिंदू धर्मावलंबी अनारक्षित जातियों के लिए ही नहीं बल्कि मुस्लिम, ईसाई व अन्य समुदायों को भी मिलेगा।मंगलवार को लोकसभा में विधेयक पेश किए जाने से लेकर इसके पारित होने तक राजनीतिक हलचल तेज रही। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए यूं तो किसी भी दल ने इसका विरोध नहीं किया लेकिन राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप और छींटाकशी तेज रही।
विपक्षी दलों की ओर से इसे राजनीतिक कदम और चुनावी जुमला करार दिया गया। तो सरकार की ओर से कांग्रेस को याद दिलाया गया कि उसने अब तक जो कुछ किया था वह जुमला था क्योंकि ईमानदार और संविधान सम्मत प्रयास नहीं किया गया था।
पहली बार राजग की ओर से अगड़ी जातियों के पिछड़े लोगों को बराबरी का अवसर देने का सार्थक प्रयास किया जा रहा है तो उस पर उंगली उठाई जा रही है। सरकार की ओर से केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष के सारे तर्कों को तार-तार कर दिया।
कांग्रेस के केवी थामस ने इसे जल्दबाजी में लाया गया विधेयक करार देते हुए आशंका जताई कि कोर्ट की ओर से 50 फीसद की सीमा तय होने के कारण यह खारिज हो जाएगा। उन्होंने इसे जेपीसी में भी भेजने की मांग की थी। लेकिन जेटली ने तथ्यों के साथ यह स्पष्ट किया कि अब तक यह इसलिए खारिज होता रहा है क्योंकि संविधान मे आर्थिक पिछड़ेपन का प्रावधान ही नहीं था।
इस बार संविधान में इसका प्रावधान किया गया है और इसलिए यह संविधान सम्मत है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट ने भी अपने फैसले में साफ कर दिया था कि 50 फीसद आरक्षण सीमा केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के संदर्भ में था।
छिटपुट सवाल उठा रहे विपक्षी दलों को राजनीतिक कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर समर्थन करना है तो दिल बड़ा कर करें। खासकर कांग्रेस को उन्होंने घेरने की कोशिश की और याद दिलाया कि वह जुमले का आरोप न लगाएं। भाजपा ने वादा किया था और उसे पूरा करने जा रही है।
कांग्रेस ने भी अपने घोषणापत्र में यही वादा किया था लेकिन सवाल उठी रही है। जनता के सामने परीक्षा की घड़ी है और विपक्षी दलों को दिखाना होगा कि वह पास होते हैं या फेल। जेटली का यह बयान शायद राज्यसभा में भी कांग्रेस की मौजूदगी और समर्थन सुनिश्चित करने के लिए दिया था।
तत्काल होगा लागू
यह संविधान संशोधन दूसरे संशोधनों से अलग है। चूंकि यह धारा 15 और 16 में किया गया है जो मूलभूत अधिकार से जुड़ा है इसीलिए संसद के दोनों सदनों से पारित होने के साथ ही यह प्रभावी हो जाएगा। इस बाबत पिछले संशोधनों में भी यही हुआ था। सामान्यतया किसी भी संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पारित कराने के बाद आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी पारित कराना होता है।
राज्यसभा में विपक्ष का रुख होगा अहम
कोई दल इस विधेयक के विरोध में नहीं दिखना चाहता था। इस लिहाज से सभी दल के नेता मौजूद तो थे, चर्चा में हिस्सा भी लिया लेकिन उत्साह की कमी थी। यही कारण था कि चर्चा की शुरूआत से लेकर वोटिंग तक विपक्षी खेमे में सदस्यों की मौजूदगी बहुत कम रही।
अगर राज्यसभा में भी यही स्थिति रहीे तो परेशानी हो सकती है। दरअसल, संविधान संशोधन के लिए सदन में पूर्ण बहुमत के साथ साथ मौजूद सदस्यों का दो तिहाई समर्थन चाहिए होता है। यानी राज्यसभा की कुल 245 सीटों में से कम से कम 123 सदस्यों की मौजूदगी जरूरी होगी।
उसका दो तिहाई वोट समर्थन में चाहिए होगा। भाजपा ने अपने सदस्यों को तो व्हिप जारी किया है और उसके 73 सदस्य मौजूद होंगे। राजग के कुल सदस्य भी सौ से कम हैं। ऐसे में विपक्षी दल के सदस्यों की संख्या कम हुई तो परेशानी खड़ी हो सकती है।