नई दिल्ली । राजस्व विभाग ई-वे बिल को एनएचएआई (NHAI) के फास्टैग (FASTag) सिस्टम से लिंक करने की योजना बना रहा है। ई-वे बिल को दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (DMICDC) के FASTag और लॉजिस्टक्स डेटा बैंक (LDB) के साथ जोड़ा जाएगा, ताकि सामानों की आवाजाही में तेजी लाई जा सके और टैक्स चोरी पर लगाम लगाई जा सके।
अधिकारियों के मुताबिक यह प्रस्ताव देशभर के भीतर लॉजिस्टिक लैंडस्केप में संचालन दक्षता में और सुधार लाने का काम करेगा। वर्तमान समय में विभिन्न एजेंसियों के बीच जानकारी साझा करने के संदर्भ में ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ तंत्र के तहत सामंजस्य की कमी देश में व्यवसाय को और आसान करने की स्थिति को प्रभावित कर रही है। इसके अलावा ये देश की लॉजिस्टिक कंपनियों की लागत को भी प्रभावित कर रही है।
जिस प्रस्ताव पर राजस्व विभाग काम कर रहा है की मदद से उन बेईमान व्यापारियों की ओर से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की चोरी को रोकने में भी मदद मिलेगी, जो कि सप्लाई चेन में लूप होल का फायदा उठाते हैं। गौरतलब है कि ई-वे बिल को देशभर में 1 अप्रैल 2018 को लागू कर दिया गया था।
क्या है ई-वे बिल: अगर किसी वस्तु का एक राज्य से दूसरे राज्य या फिर राज्य के भीतर मूवमेंट होता है तो सप्लायर को ई-वे बिल जनरेट करना होगा। अहम बात यह है कि सप्लायर के लिए यह बिल उन वस्तुओं के पारगमन (ट्रांजिट) के लिए भी बनाना जरूरी होगा जो जीएसटी के दायरे में नहीं आती हैं।
क्या होता है ई-वे बिल में: इस बिल में सप्लायर, ट्रांसपोर्ट और ग्राही (Recipients) की डिटेल दी जाती है। अगर जिस गुड्स का मूवमेंट एक राज्य से दूसरे राज्य या फिर एक ही राज्य के भीतर हो रहा है और उसकी कीमत 50,000 रुपए से ज्यादा है तो सप्लायर (आपूर्तिकर्ता) को इसकी जानकरी जीएसटीएन पोर्टल में दर्ज करानी होगी।