नई दिल्ली। चुनाव में हार-जीत किसी राजनैतिक पार्टी की होगी, लेकिन राज्य व लोकसभा चुनाव से अर्थव्यवस्था को निश्चित रूप से बूस्ट मिलने जा रहा है। औद्योगिक संगठनों के मोटे अनुमान के मुताबिक सिर्फ लोक सभा चुनाव के दौरान बाजार में 15-16 हजार करोड़ रुपए आएंगे।
इससे आर्थिक विकास की गति तेज होने में तो मदद मिलेगी, लेकिन महंगाई में भी बढ़ोतरी होगी। छोटे कारोबारियों के कारोबार में तेजी आएगी। चुनाव से फूड, एफएमसीजी सेक्टर, गारमेंट, ट्रांसपोर्ट, मीडिया जैसे सेक्टर में भारी खर्च के साथ छोटे कारोबारियों को फायदा होने जा रहा है।
चुनावी खर्च का अनुमान
देश में लोकसभी की 543 सीटें हैं। औद्योगिक संगठन एसोचैम के अनुमान के मुताबिक हर सीट के लिए कम से कम तीन उम्मीदवार गंभीर रूप से चुनाव लड़ रहे होते हैं। एसोचैम के मुताबिक चुनाव के दौरान उम्मीदवार की तरफ से किए जाने वाले खर्च का सटीक अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन ये उम्मीदवार औसतन 5-7 करोड़ रुपए खर्च करेंगे।
उनके अलावा जो छोटे-मोटे उम्मीदवार होते हैं, वे भी लाखों रुपए चुनाव में फूंक डालते हैं। उम्मीदवार की तरफ से होने वाले खर्च के अलावा सरकारी मशीनरी भी चुनाव के दौरान कई सौ करोड़ रुपए खर्च करती है। इस प्रकार आगामी लोक सभा चुनाव में कम से कम 15-16 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।
हालांकि चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक लोकसभा चुनाव लड़ने वाला एक उम्मीदवार चुनाव में अधिकतम खर्च 70 लाख रुपए कर सकता है। इस हिसाब से एक लोक सभा क्षेत्र में तीन-चार गंभीर उम्मीदवार के खर्च के साथ अन्य उम्मीदवारों के खर्च को शामिल कर लिया जाए तो यह 3-3.5 करोड़ रुपए होता है। सरकार की तरफ से होने वाले खर्च को जोड़ दिया जाए तो लोक सभा की हर सीट के लिए अधिकतम 4 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस हिसाब से 543 सीटों के लिए 2172 रुपए खर्च होंगे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
औद्योगिक संगठन पीएचडी चेंबर्स के मुख्य अर्थशास्त्री एस.पी. शर्मा ने lendennews-ee4f51.ingress-erytho.ewp.live को बताया कि निश्चित रूप से चुनाव के दौरान होने वाले हजारों करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च से विकास की गति को मजबूती मिलेगी, लेकिन इससे महंगाई में भी बढ़ोतरी होगी।
उन्होंने बताया कि चुनाव के दौरान बाजार में जो पैसे आते हैं उनके अधिकतर हिस्से गैर उत्पादक चीजों में खर्च होतें हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर वित्त आयोग के सलाहकार मंडल में शामिल पिनाकी चक्रवर्ती ने बताया कि अभी यह कहना मुश्किल है कि चुनाव में होने वाले खर्च से विकास को कितनी गति मिलेगी, लेकिन इस दौरान सरकार की तरफ से विभिन्न प्रकार की सब्सिडी देने व सरकारी खर्च से राजकोषीय घाटे बढ़ जाते है।
किन-किन सेक्टर को होगा फायदा
निजी एयरलाइंस
प्राइवेट एयरलाइंस आॅपरेटरों के अनुमान के अनुसार अकेले विमानन क्षेत्र करीब 400-450 करोड़ रुपये पंप होने की संभावना है। विमानन विशेषज्ञों के अनुसार हेलीकॉप्टर की एक घंटे की उड़ान पर करीब एक लाख से लेकर सवा लाख रुपये खर्च होते हैं। जेट विमान पर करीब 3.5—4 लाख रुपये प्रति घंटा खर्च आता है।
ओला, उबर की तरह ही एविएशन मार्केट में नए उतरे स्टार्ट अप्स जैसे बुकमाईचार्टर, जेटसेटगो और जेटस्मार्ट राजनीतिक नेताओं के बीच पैठ बना रहे हैं और प्राइवेट विमानों की फ्लीट उन्हें आॅफर रहे हैं। इन एग्रीगेटर्स ने देश में चल रही करीब 135 एयर चार्टर सेवाओं का फायदा उठाने की तैयारी कर ली है।
सोशल मीडिया
वर्ष-2019 के लोक सभा चुनाव में आठ करोड़ नए मतदाता शामिल होंगे। 80 से 90 फीसदी युवा इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इस युवा वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल सबसे ज्यादा खर्च करने को तैयार हैं। वर्ष-2014 आम चुनाव में भाजपा ने सोशल मीडिया पर करीब 150 करोड़ और कांग्रेस ने 100 करोड़ रुपये खर्च किए। वर्ष-2019 लोक सभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया पर 500 से 600 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
इंडिपेडेंट आयरिस नॉलेज फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक 543 सीटों में 250 सीटों पर सोशल मीडिया का सीधा प्रभाव है। वर्ष-2014 में राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव प्रचार में परंपरागत और सोशल मीडिया पर 858.97 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2019 में होने वाले चुनाव में परंपरागत व सोशल मीडिया पर 30 फीसदी अधिक खर्च होने का अनुमान है।
ट्रांसपोर्ट
ट्रांसपोर्ट क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक 2019 के लोक सभा चुनाव में ट्रांसपोर्टेशन पर लगभग 1800 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।विशेषज्ञों ने बताया कि 543 सीटों के लिए औसतन 4 उम्मीदवार ऐसे होते हैं जो चुनाव प्रचार में गाड़ियों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया कि चुनाव प्रचार के अंतिम 15 दिनों में करीब 15 लाख रुपए प्रति उम्मीदवार खर्च होते हैं। इस तरह कुल वाहनों में कुल 325 करोड़ रुपए खर्च होने होगा।
इसके अलावा देशभर में सभी प्रमुख पार्टियों की करीब 500 बड़ी रैलियां होने की संभावना है। एक रैली में एक हजार बसें जाती हैं। इस तरह प्रति रैली 1 करोड़ 20 लाख खर्च होंगे। एक रैली में 5 हजार कारें शामिल होने का अनुमान है। इनमें ज्यादातर एसयूवी कारें होती हैं।
जिनका किराया 2 से 3 हजार है। औसतन 2.5 हजार रुपए का वाहन का होगा। इस तरह 500 रैलियों में शामिल होने वाली कारों में 625 करोड़ रुपए खर्च होंगे। रैली में पांच ट्रेनों से कायकर्ता पहुंचे तो ट्रेन बुक करने का औसतन खर्च 50 लाख होगा। इस तरह 500 रैलियों में 250 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
कैटरिंग, टेंट चुनावी झंडे, टोपी जैसी चीजों पर 500 करोड़ से अधिक खर्च
फेडरेशन ऑफ स्माल मीडियम इंडस्ट्रीज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने बताया कि चुनाव के दौरान छोटे उद्यमी खासकर कैटरिंग. टेंट वालों के साथ चुनावी झंडे, बैनर बनाने वालों को अच्छा खासा फायदा होता है।
लेकिन चुनाव के दौरान कोई नई घोषणाएं नहीं होती हैं, कोई नया फंड नहीं आता है, इसलिए आर्थिक उत्पादकता धीमी हो जाती है। छोटे उद्यमियों ने बताया कि सिर्फ कैटरिंग, टेंट, चुनावी झंडे, बैनर जैसी चीजों का कारोबार कम से कम 500 करोड़ रुपये का होता है।