राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की कोचिंग संस्थानों के लिए हिदायतें
- कोचिंग इंस्टीट्यूट में साप्ताहिक छुट्टी अनिवार्य
- एक बैच में 30-40 विद्यार्थी से अधिक न हों
- 3 माह में कोचिंग छोड़ने पर लौटानी होगी फीस
कोटा। कोचिंग विद्यार्थियों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं को रोकने के लिए राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कठोर कदम उठाए हैं। आयोग ने शैक्षणिक सत्र 2017-18 के लिए कोचिंग संस्थानों, हॉस्टल व मैस संचालकों के लिए 40 बिंदुओं की गाइड लाइन जारी की। इसका विमोचन जिला न्यायाधीश केदारलाल गुप्ता ने किया।
आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने कहा कि कोटा में कोचिंग छात्रों के सुसाइड के मामले रोकने के लिए यह प्रभावी गाइड लाइन तैयार की है।
विभिन्न राज्यों के 1 लाख 70 हजार से अधिक स्टूडेंट्स कोटा में प्रतिवर्ष आईआईटी तथा मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की क्लास रूम कोचिंग लेते हैं। आयोग की यह निर्देशिका उन्हें आवेदन फॉर्म के साथ अनिवार्य रूप से देनी होगी।
आयोग ने कोचिंग संस्थानों में बढ़ती फीस पर गहरी चिंता जताते हुए फीस के मापदंड तय करने पर जोर दिया। चतुर्वेदी ने कहा कि बाहरी राज्यों के बच्चे कक्षा-6 से ही कोटा के डमी स्कूलों में एडमिशन लेकर कोचिंग लेते हैं। विद्यार्थी पूरे वर्ष कोचिंग में पढाई करते है और अंत में स्कूल में जाकर केवल परीक्षा देते हैं।
प्रमुख कोचिंग संस्थान स्वयं बच्चों के लिए डमी स्कूल की व्यवस्था तक कर देते हैं।इससे स्कूली शिक्षा में गिरावट आ रही है तथा अभिभावकों पर दोहरा आर्थिक भार पड़ रहा है। अभी कुछ कोचिंग संस्थानों में एक फैकल्टी एक बैच में 200-250 स्टूडेंट को पढ़ाते हैं, जबकि यह संख्या 30-40 से अधिक नहीं हो। ताकि प्रत्येक स्टूडेंट पर ध्यान रहे। उन्होंने कहा कि कोचिंग के साथ हॉस्टल, मैस व पेइंग गेस्ट मकान मालिकों के लिए भी दिशानिर्देश जारी करेंगे।
इन बातों की अनुपालना अनिवार्य-
- राज्य के सभी कोचिंग संस्थान अपने विज्ञापनों में बोल्ड में यह अंकित करेंगे कि ‘कोचिंग में प्रवेश लेना, कॉलेजों में प्रवेश की गारंटी नहीं है।’
- कोचिंग संस्थानों की फीस व हॉस्टल की दरें तय करने के लिए निर्धारित मापदंड व नियम बेहद जरूरी है, ताकि विद्यार्थियों का आर्थिक शोषण न हो सके।
- प्रत्येक कोचिंग संस्थान में कुल प्रवेश तथा उनमें से कितने प्रतिशत विद्यार्थी चयनित हुए, यह स्पष्ट प्रदर्शित किया जाए।
- कोचिंग के साथ कक्षा-10वीं तक डमी स्कूल की व्यवस्था पूरी तरह खत्म की जाए। ताकि विद्यार्थी स्कूल की जीवन शैली से विंचत न रहें। इस मामले में सीबीएसई उचित जांच करके नियंत्रण करे।
- कोचिंग संस्थानों में प्रशिक्षित कॅरिअर काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक की सेवाएं दी जाएं।
- कोचिंग के प्रत्येक बैच में विद्यार्थियों की संख्या 30-40 तक सीमित की जाए ताकि प्रत्येक विद्यार्थी पर ध्यान दिया जा सके।
- सप्ताह में एक दिन अवकाश अनिवार्य हो। सभी कोचिंग संस्थानों में रविवार को टेस्ट होते हैं, जिससे वे रिलेक्स नहीं हो पाते हैं।
- कोचिंग विद्यार्थी पढ़ाई के प्रेशर से कोचिंग छोड़ना चाहता है तो 3 माह के भीतर उसे फीस वापस करने का प्रावधान हो।
- पूरे वर्ष की फीस एकमुश्त न लेकर स्कूलों के अनुसार, त्रेमासिक आधार पर फीस ली लाए।
- विद्यार्थियों व अभिभावकों को प्रवेश के समय तथा पूरे सत्र में काउंसलिंग सुविधा उपलब्ध हो।
- सत्र के दौरान टेस्ट के अंकों से बैच बदलने के सिस्टम में परिवर्तन किया जाए।
- संस्थानों में मेडिटेशन, मनोरंजन आदि को मॉड्यूल में शामिल किया जाए।
- कोई विद्यार्थी लगातार अनुपस्थित है तो तुरंत उसकी जांच हो तथा परिजनों व बाल कल्याण समिति को सूचित करें।
- सरकार द्वारा विद्यार्थियों के लिए स्पेशल मेडिकल यूनिट स्थापित की जाए, जहां 24 घंटे सुविधाएं व दवाइयों मिल सके।
- विद्यार्थियों के आवासीय क्षेत्रों में प्रभावी सीसीटीवी निगरानी हो।
- बच्चों के कोचिंग आने-जाने के समय टै्रफिक पुलिस का विशेष प्रबंध हो।
- प्रत्येक कोचिंग में एक डेस्क हो, जहां विद्यार्थी अपने रहने, खानपान, स्वास्थ्य व अन्य शिकायतों को दर्ज करा सके।
- सभी संस्थानों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की सूची एक कॉमन पोर्टल पर हो।
- उंचे पैकेज के लालच में बच्चों पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव बनाने वाले कोचिंग शिक्षकों पर कडी कार्रवाई आवश्यक है।
- अधिकांश कोचिंग विद्यार्थी 18 वर्ष से कम उम्र के होते हैं, इसलिए संस्थानों में इनकी मॉनिटरिंग बाल कल्याण समिति के क्षेत्राधिकार में हो।
- रिजल्ट से दो दिन पूर्व सभी संस्थान विद्यार्थियों को सामूहिक प्रोग्राम के जरिए मानसिक रूप से मोटिवेट करें।
- प्रवेश परीक्षाओं में जो पास नहीं हो सके, उनके लिए संस्थानों के पास क्या एक्शन प्लान है, यह बताया जाए।