गिरते रुपये ने बिगाड़ी भारत की अर्थव्यवस्था, तेल आयात महंगा

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नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। गुरुवार को 37 पैसे की तेज गिरावट के साथ रुपया पहली बार प्रति डॉलर 72 के नीचे चला गया। इसका सीधा असर विदेश से आयात किए जाने वाले कच्चे तेल के बिल पर हो रहा है। इसकी वजह से पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी बढ़ रही हैं। भारत की मुद्रा के लिए अगस्त का महीना पिछले तीन वर्षों में सबसे निराशाजनक रहा।

वहीं, दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते ऑइल यूजर के लिए क्रूड आयात बिल जुलाई में पिछले साल की तुलना में 76 फीसदी बढ़कर 10.2 अरब डॉलर हो गया। इसका असर यह हुआ कि कारोबार घाटा 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगापुर में मिजुहो बैंक में इकनॉमिक्स ऐंड स्ट्रैटिजी हेड विष्णु वर्धन ने कहा, ‘डॉलर्स की डिमांड काफी ज्यादा है और तेल की कीमतें बढ़ने से इसमें बढ़ोतरी ही देखी जा रही है। वास्तविक मांग तेल के लिए ही है।’

आपको बता दें कि गुरुवार दोपहर बाद रुपये की विनिमय दर 72.12 रुपए प्रति डॉलर पर पहुंच गई थी, जो बुधवार को बंद की तुलना में 37 पैसे की गिरावट को दर्शाता है। इस साल एशिया में रुपया सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही है।

11 फीसदी की गिरावट के बाद भी यह सिलसिला जारी है। गिरावट की रफ्तार से जानकार इस साल के आखिर का डॉलर के मुकाबले रुपये का अनुमान भी पहले के 68.80 से बदलकर 70.50 बता रहे हैं।

उधर, ब्रेंट बेंचमार्क की कीमत भी तेजी से बढ़ी है। इस समय यह प्रति बैरल 77.09 डॉलर चल रहा है, जो मई में तीन साल में सबसे ज्यादा 80.50 डॉलर था। ऑस्ट्रेलिया ऐंड न्यू जीलैंड बैंकिंग ग्रुप लिमिटेड के अनुसार तेल की कीमतें बढ़ने से भारत का चालू खाता घाटा इस साल जीडीपी का 2.6 फीसदी हो सकता है जो एक साल पहले 1.5 साल फीसदी था।

सवाल यह है कि आखिर रुपया कितना नीचे जाएगा? रिसर्च हेड कोन गोह और स्ट्रैटिजिस्ट रीनी सेन ने लिखा है कि इस समय फेयर वैल्यू करीब 73 प्रति डॉलर है, जिससे लगता है कि यह आगे भी कमजोर होगा।

रुपये के कमजोर होने के बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि रिजर्व बैंक (RBI) 2013 की उस पॉलिसी की फिर से समीक्षा कर सकता है, जिसके तहत विदेशी मुद्रा विनिमय विंडो खोला जा सकता है, जिससे देश की तेल मार्केटिंग कंपनियों की रोजाना डॉलर की जरूरतें पूरी की जा सकें।

कोटक महिन्द्रा बैंक के एक नोट के अनुसार RBI इस रूट का इस्तेमाल कर विदेशी विनिमय मार्केट की डिमांड के अनुसार हर रोज तत्काल 600 मिलियन डॉलर निकाल देगा। बैंक के अनुसार इससे मुद्रा की अस्थिरता को कम करने में मदद मिलेगी, हालांकि इससे विदेशी मुद्रा भंडार जरूर कम होगा।

फिलहाल के लिए सरकारी कंपनियां इंडियन ऑइल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान ऑइल कॉर्पोरेशन केंद्रीय बैंक की दखलअंदाजी को लेकर चिंतित नहीं दिखती हैं। RBI ने इनसे तेल पेमेंट के लिए डॉलर खर्च कम करने के लिए कोई आदेश भी नहीं दिया है।