न्यूनतम मजदूरी 10 हजार रुपये मिलने का सपना एक वर्ष बाद भी अधूरा

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मुरझाए मजदूर : सांसदों-विधायकों के वेतन-भत्ते  सर्वसम्मति से बढ़ा लिए, लेकिन मजदूर दिवस पर भी न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की घोषणा नहीं हुई 

कोटा। केंद्र सरकार ने गत वर्ष मजदूर दिवस से पूर्व घोषणा की थी कि अगले 1-2 माह में देश के ठेका मजदूरों का प्रतिमाह न्यूनतम वेतन 10,000 रूपए कर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल,2016 में केद्र सरकार को निर्देश दिए थे कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तथा महंगाई भत्ता में परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कामगारों की न्यूनतम मजूदरी बढ़ाई जाए।

इसके पश्चात् केद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि सरकार ठेका मजदूर (नियमन एवं समापन) के नियम-25 एवं केंद्रीय नियम में जल्द ही बदलाव लाने का प्रयास करेगी तथा सर्वव्यापी मजदूरी की दिशा में आवश्यक कदम उठाएगी, जिसमें सभी ठेकेदारों को श्रम मंत्रालय में पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। देश के 44 पुराने श्रम कानूनों को खत्म कर उन्हें 4 आचार संहिता में समाहित करने का दावा किया गया था, जो अधुरा रहा।

एक वर्ष पूर्व केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री की घोषणा से देश के 15 करोड़ मजदूरों ने उम्मीद की थी कि 1 मई,2016 से उन्हें न्यूनतम मजदूरी 10 हजार रू प्रतिमाह (333 रू प्रतिदिन) मिलने लगेगी। लेकिन सरकार इसे लागू नहीं कर सकी जिससे महंगाई की मार झेल रहे मेहनतकश मजदूरों को गहरी निराशा हाथ लगी। दूसरी ओर, बढ़़ती महंगाई को देखते हुए सरकार ने सभी सांसदों एवं राजस्थान में मंत्रियों तथा विधायकां के वेतन भत्ते बढ़ाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से तत्काल पारित कर दिया।

राज्य में लाखों मजदूरों के चेहरे मुरझाए

मजदूर संगठनों का कहना है कि वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी प्रतिमाह 6330 रूपए (211 रू प्रतिदिन) से भी कम मिल रही है। कुशल, अर्द्धकुशल तथा अकुशल श्रमिकों को तीन अलग-अलग दरों से वेतन मिलता है। तीनों श्रेणियों में न्यूनतम वेतन में यह बढोतरी नहीं हो सकी। कोटा के हजारों ठेका मजदूर इस उम्मीद में थे कि केद्र सरकार इस वर्ष मजदूर दिवस पर उन्हें न्यूनतम मजदूरी 10.000 रूपए प्रतिमाह करने का तोहफा देगी लेकिन 1 वर्ष बाद भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना नहीं होने से मजदूरों के चेहरे मुरझा गए।

उनमें इस बात का आक्रोश है कि सभी राज्यों में ठेका मजदूरों को एक समान न्यूनतम मजदूरी नहीं मिल रही। महंगाई का असर सभी वर्गों पर एक समान होता है लेकिन मजदूरी कम मिलने से श्रमिकों को आर्थिक मार अधिक झेलनी पड़ रही है। मजदूरी नहीं बढ़ने से इस वर्ष भी मजूदर दिवस पर ठेका मजदूरों के चेहरे मुरझाए रहे।