मुंबई। केंद्र सरकार दक्षिण कोरिया से सोने गहने व अन्य आयटम के आयात पर रोक हटानेे पर विचार कर रही है। इसके मद्देनजर वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इस मसले पर चर्चा के लिए ज्वैलरी ट्रेड बॉडी जैम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) और बुलियन फेडरेशन ऑफ इंडिया के साथ बैठक बुलाई है।
केंद्र सरकार ने आपसी वाणिज्यिक सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए 2010 में दक्षिण कोरिया के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी अनुबंध किया था। सरकार ने पिछले साल आभूषण उद्योग संगठनों की शिकायतों पर दक्षिण कोरिया से सोने के गहनों व अन्य आयटमों पर रोक लगा दी थी।
वाणिज्य मंत्रालय से संबद्ध जीजेईपीसी ने इसके पीछे यह दलील दी गई थी कि कुछ व्यापारी ज्वैलरी और सोने की दूसरी चीजों के आयात में एफटीए का दुरुपयोग कर रहे हैं। जबकि सरकार सोना आयात पर 10 फीसदी कस्टम्स ड्यूटी लगाती है।
काबिलेगौर है कि एफटीए के चलते दक्षिण कोरिया के खिलाफ एकतरफा बैन जारी नहीं रह सकता, इसलिए सरकार यह जानना चाहती है कि कैसे दक्षिण कोरिया से सोने की ज्वैलरी व अन्य आयटम के आयात की इजाजत दोबारा देने पर विचार किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को गणतंत्र दिवस के अवसर पर उन 10 आसियान देशों के नेताओं की मेजबानी की थी, जिनके साथ उसकी मुक्त व्यापार संधि है। मुक्त व्यापार संधि (एफटीए व सीईपीए) में एक दूसरे के यहां उद्योग और कारोबार को बढ़ावा देने के लिए रियायती दर या जीरो रेट पर द्विपक्षीय कारोबार की इजाजत होती है।
उधर, बुलियन फेडरेशन यह नहीं चाहता कि दक्षिण कोरिया से सोना आयात पर पूरी तरह पाबंदी हो। संगठन ने कहा है कि वह दक्षिण कोरिया या दूसरे आसियान देशों से ज्वैलरी या दूसरे आर्टिकल्स के तौर पर सोना आयात के पूरी तरह हक में नहीं हैं।
आयात की अनुमति से पहले हमें यह देखना होगा कि ऐसे आयात से घरेलू व्यापार में किसी तरह की गड़बड़ी होने से कैसे रोका जा सकता है। एक उपाय यह हो सकता है कि ऐसे आयात की बी2बी बिक्री पर पाबंदी लगा दी जाए और उसे उसी हालत में एंड कस्टमर्स को बेचना जरूरी कर दिया जाए।
किसी भी बी2बी सेल पर ट्रेडर को जीएसटी क्रेडिट नहीं दिया जाए। जीजेईपीसी के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा कि हम एफटीए या ऐसे एग्रीमेंट्स के जरिए ट्रेड और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहते हैं, लेकिन इसके चलते होने वाली कारोबारी स्थितियों में बदलाव से मैन्युफैक्चरर्स और रोजगार संभावनाओं पर कोई असर नहीं होना चाहिए।