नई दिल्ली। तीन तलाक बिल गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गया। इसमें 1400 साल पुरानी एक साथ तीन तलाक देने की प्रथा को अपराध करार देते हुए तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। साढ़े 4 घंटे की बहस के बाद विपक्ष के सभी संशोधन प्रस्ताव गिर गए।
बिल का शुरू से अंत तक विरोध करने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 3 प्रस्ताव रखे, पहले और दूसरे में उन्हें 2-2 और तीसरे प्रस्ताव में सिर्फ खुद का वोट मिला। कांग्रेस की सुष्मिता देव, बीजद के भर्तृहरी माहताब और सीपीआईएम के संपथ के भी प्रस्ताव खारिज हो गए।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक पारित होने को ऐतिहासिक पल करार देते हुए कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक महिलाओं की गरिमा और सम्मान की हिफाजत करेगा। कांग्रेस समेत कई दलों ने सजा वाले प्रावधान का सबसे ज्यादा विरोध किया। बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की मांग की, जो सरकार ने नहीं मानी।
जमानत का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास
बहस का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने कहा-अगर गरीब मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़ा रहना अपराध है तो हम इस अपराध को 10 बार करने को तैयार हैं। पति को पुलिस से बेल नहीं मिलेगी, लेकिन मजिस्ट्रेट के पास तो पावर है।
बिल में 4 अहम व्यवस्था
– पीड़िता अपने नाबालिग बच्चों के लिए भरण-पोषण और गुजारा भत्ता मांग सकेगी। नाबालिग बच्चों की कस्टडी की गुहार भी लगा सकेगी।
-तलाक देने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा। उसे 3 साल तक की सजा के साथ जुर्माना भी होगा। राशि मजिस्ट्रेट तय करेंगे।
– यह मौखिक, ई-मेल, व्हाट्स एप, फेसबुक, एसएमएस या किसी भी माध्यम से दिए जाने वाले तीन तलाक पर लागू होगा।
-कानून सिर्फ एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा। यह गैरकानूनी एवं संज्ञेय अपराध होगा।
8 राज्यों के 9 क्षेत्रीय दलों ने विरोध किया : वजह 474 मुस्लिम बहुल सीटें:, तलाक-ए-बिद्दत अपराध होगा, तीन साल की सजा के साथ जुर्माना भी, स्टैंडिंग कमेटी को बिल भेजने की विपक्ष की मांग खारिज, अब राज्यसभा में पेश होगा