कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज ने चातुर्मास के अवसर पर सोमवार को नीति प्रवचन में कहा कि आपके जीवन का आधार आपका अस्तित्व है और आपका अस्तित्व आप स्वंय से हैं और किसी से नहीं। मनुष्य के कर्म ही उसके कर्ता व भरता होते हैं। हर व्यक्ति का अस्तित्व स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि भगवान ना तो वरदान देते हैं और न श्राप। मनुष्य के कर्मो जनित फल ही उसे मिलते हैं।
गुरूदेव ने कहा कि हमारे जीवन में अपने अस्तित्व को याद रखना बहुत आवश्यक है। यह हमें आत्म-ज्ञान और आत्म-विश्वास की ओर ले जाता है। जब हम अपने अस्तित्व को समझते हैं, तो हम अपने जीवन के उद्देश्य को भी पहचान पाते हैं।
संवेदनाओं का नियंत्रण: मुनि आदित्य सागर ने बताया कि हमारी संवेदनाएं और प्रतिक्रियाएं हमारे अस्तित्व को प्रभावित करती हैं। इसलिए हमें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना चाहिए और सकारात्मक सोच विकसित करनी चाहिए।
ध्यान और साधना: ध्यान और साधना का अभ्यास हमारे अस्तित्व के प्रति हमारी समझ को गहरा करता है। यह हमें मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, जो जीवन में सही निर्णय लेने में सहायक होता है।
संबंधों की समझ: अपने अस्तित्व को याद रखते हुए हमें अपने संबंधों का भी ध्यान रखना चाहिए। यह हमें दूसरों के प्रति सहानुभूति और समझ विकसित करने में मदद करता है, जिससे जीवन में सुख और संतोष की प्राप्ति होती है।
जीवन का उद्देश्य: अंततः, जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुखों में नहीं है, बल्कि अपने अस्तित्व को समझकर, अपने भीतर की गहराइयों में जाकर आत्मिक संतोष प्राप्त करना है।