रिजर्व बैंक बदलेगा जुर्माने के मानदंड, रडार पर होंगे प्रबंधन स्तर के प्रमुख अफसर

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नई दिल्ली। RBI penalty criteria: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपने जुर्माना ढांचे की संपूर्ण समीक्षा कर सकता है। इसमें जुर्माना रा​शि को बढ़ाने, विनियमित इकाइयों, खास तौर पर प्रणाली के लिए महत्त्वपूर्ण संस्थाओं के आकार से इसे जोड़ने की व्यवहार्यता पर विचार किया जा सकता है। इसके साथ ही नियमों का बार-बार उल्लंघन और मुख्य कार्या​धिकारियों एवं प्रबंधन स्तर के प्रमुख अधिकारियों (केएमपी) से भुगतान वापस लेने जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में केएमपी पर आरबीआई के वरिष्ठ पर्यवेक्षी प्रबंधक द्वारा की गई टिप्पणी से यह तय हो सकता है कि वे अपने करियर में कैसी प्रगति करेंगे। यह विनियमित इकाइयों (आरई) पर अति​रिक्त पूंजी शुल्क लगाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

यह समीक्षा विनियमित इकाइयों में कारोबार संचालन के मानकों में सुधार लाने और उस पर प्रीमियम बढ़ाने के केंद्रीय बैंक के कदम का हिस्सा है। यह विचार 22 और 20 मई को सार्वजनिक और निजी बैंकों के बोर्डों के साथ आरबीआई गवर्नर श​क्तिकांत दास की बैठक के बाद आया है। इस बैठक में कारोबारी संचालन, बोर्डों की भूमिका और पर्यवेक्षी अपेक्षाओं से संबं​धित मुद्दों पर चर्चा की गई थी।

वित्त वर्ष 2024 के लिए अपनी प्रवर्तन पहल के तहत आरबीआई द्वारा निर्धारित प्रमुख एजेंडा इस मुद्दे पर व्यापक दृ​ष्टिकोण की व्यवहार्यता को परखना था। वित्त वर्ष 2023 में 211 मामलों में कुल 40.39 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इसी तरह वित्त वर्ष 2022 में 189 मामलों में 65.32 करोड़ रुपये और 2021 में 61 मामलों में 31.36 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इसमें तकनीकी पहलू की भी भूमिका होती है और जुर्माना थोड़े-थोड़े अंतराल पर लगाया जाता है।

विनियमित इकाइयों पर जुर्माना लगाने की प्रमुख वजह बैंकिंग विनियमन अ​धिनियम (1949) की धारा 26 ए, साइबर सुरक्षा का उल्लंघन, निवेश में नियम का अनुपालन नहीं करना और आय पहचान और संप​त्ति वर्गीकरण (आईआरएसी) नियमों का उल्लंघन, अपने ग्राहक को जानें दिशानिर्देश का उल्लंघन, धोखाधड़ी वर्गीकरण और उसकी रिपोर्ट करना, बड़ी उधारी की केंद्रीय सूचना रिपॉजिटरी में सूचना देना आदि में नियमों का पालन न करना शामिल है। इसके अलावा आवास वित्त कंपनियों के निर्देशों (2010) का उल्लंघन करने के लिए भी जुर्माना लगाया गया था।

जहां तक धोखाखड़ी का सवाल है तो वित्त वर्ष 2021 के लिए आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि धोखाधड़ी की घटना और उसका पता लगाए जाने के बीच औसत समय 23 महीने का है। धोखाधड़ी के बड़े मामलों (100 करोड़ रुपये से अ​धिक) में औसत समय 57 महीने का था।

जून 2019 की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में दो दशक के विश्लेषण में पाया गया कि वित्त वर्ष 2001 और वित्त वर्ष 2018 के बीच मूल्य के लिहाज से धोखाधड़ी वित्त वर्ष 2019 में दर्ज धोखाधड़ी का 90.6 फीसदी थी।

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने सितंबर 2019 में कहा था, ‘यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर संबंधित बैंकों में अच्छी अनुपालन संस्कृति विकसित की गई होती तो धोखाधड़ी के कारण बैंकों को होने वाले कई बड़े नुकसानों से बचा जा सकता था।’

वै​श्विक स्तर पर धोखाधड़ी के मामलों में करोड़ों डॉलर के जुर्माने लगाए गए हैं। उसके मुकाबले आरबीआई द्वारा लगाए गए जुर्माने की रकम काफी कम रही है। आरबीआई द्वारा लगाया गया अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना 58.9 करोड़ रुपये का है जिसे केंद्रीय बैंक ने मार्च 2018 में आईसीआईसीआई बैंक पर लगाया था। बैंक के हेल्ड-टु-मैच्योरिटी पोर्टफोलियो से प्रतिभूतियों की बिक्री पर निर्देशों का अनुपालन न किए जाने पर यह जुर्माना लगाया गया था।