अशोक गहलोत के लिए सबसे बड़े चुनावी मंच बने राहत शिविर

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  • राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर बढने लगी सक्रियता
  • प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री सहित मुख्य दलों के नेता करने लगे दौरे

-कृष्ण बलदेव हाडा –
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बार एक अभिनव राजनीतिक प्रयोग करते हुए सरकारी स्तर पर आयोजित हो रहे मंहगाई राहत शिविरों को अपना सबसे बड़ा चुनावी मंच बना दिया है जिससे पार पाना अन्य विपक्षी दलों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है क्योंकि वे न तो इसका समर्थन कर पा रहे हैं और न ही खुलकर विरोध।

केंद्र सरकार की ओर से आम जनता पर मंहगाई का बोझ लादने के बड़े-बड़े आरोपों के बीच राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वित्त मंत्री के रूप में पिछले विधानसभा बजट सत्र के दौरान प्रदेश की जनता को कई सारी राहत देने की न केवल घोषणा की गई बल्कि अब बकायदा प्रदेश भर में सरकारी स्तर पर विधिवत रूप से महंगाई राहत शिविर आयोजित करके जनता के बीच में राहत को बांटा जा रहा है।

जबसे महंगाई राहत शिविर लगने शुरू हुए हैं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे राजस्थान का दौरा करके महंगाई राहत शिविरों में न केवल भाग ले रहे हैं, बल्कि सीधे-सीधे जनता से संवाद स्थापित कर प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार को लाने के लिए लोगों को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

श्री गहलोत ने एक तरफ से अपनी राजनीति कौशल का परिचय देते हुए पहली बार ऐसा दूरगामी कदम उठाया है, जिसके तहत उन्होंने सरकारी राहत बांटने के लिए आयोजित हो रहे शिविरों को ही राजनीतिक मंच का दर्जा दे दे दिया है। इसमें केवल और केवल मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों सहित कांग्रेस के नेता ही भाग लेकर सीधे-सीधे जनता से संवाद स्थापित कर मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।

अभी तक तो लोगों में इन शिविरों को लेकर जिस तरह का उत्साह देखा जा रहा है, उसे देखते हुए कांग्रेस के नेता काफी उत्साहित भी नजर आ रहे हैं। रहा सवाल विपक्षी दलों का तो जिस किसी भी पार्टी के नेता ने शिविर में जाकर राजनीतिक दखलंदाजी की, उसे विरोध का सामना करना पड़ा है।

राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सहित अन्य कुछ राजनीतिक दलों के सक्रिय होने से अब धीरे-धीरे चुनावी सरगर्मी बढ़ने लगी है। इस वर्ष के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा के चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है और यह राजनीतिक पार्टियां अगले करीब छह महीने में अपनी स्थिति मजबूत कर एक-दूसरे को मात देने की अभी से रणनीति बनाने में लगी हैं।

वहीं राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं ने तो प्रदेश भर में जनसभाओं, रोड शो और विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए जनता के बीच पैठ बनाने का अभियान शुरू कर दिया है। इसमें काफी हद तक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सर्वोपरि नजर आते हैं, जो प्रदेश भर में आयोजित हो रहे महंगाई राहत शिविरों में जाकर जनता से सीधे संवाद करते हुए जुड़कर लोगों को आकर्षित करने की अपनी ओर से हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।

हालांकि अभी पार्टियों की तरफ से किन मुख्य मुद्दों को आगे रखकर चुनाव लड़ा जाएगा, स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है, लेकिन सत्तारूढ़ दल कांग्रेस राज्य सरकार की उपलब्धियां, अगले विधानसभा चुनाव में गिनाना चाहती है। जबकि इसके विपरीत प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी सरकार की नाकामियों का जिक्र करते हुए चुनाव मैदान में उतरेगी।

राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों में गुटबाजी और खींचतान के बीच अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों ही पार्टियां आपसी खींचतान को नकारते हुए अपने-अपने दलों के एकजुट और पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने के दावे कर रहे हैं। हालांकि इन दावों में ज्यादा सच्चाई नहीं है।

राज्य में मौजूदा सरकार वाली कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जन सभाओं का दौर जारी है और वे अपनी सरकार अपनी सरकार की उपलब्धियों एवं जन कल्याणकारी योजनाओं को जनता के सामने रख रहे हैं।

उन्होंने जनता के बीच जाकर सीधे संवाद बनाने के लिए महंगाई राहत शिविरों को एक प्रमुख जरिया बनाया है। वे अब तक भी प्रदेश के कई इलाकों में जाकर महंगाई राहत शिविरों में भाग ले चुके हैं और इस दौरान जनता के बीच सीधे बातचीत के जरिए आम मतदाताओं को प्रदेश सरकार और उसकी नीतियों के प्रति आकर्षित करते हुए अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले श्री गहलोत ढलती उम्र के बावजूद अपनी सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए लगाये जा रहे शिविरों का पिछले कई दिनों से लगातार निरीक्षण कर जनता से बातचीत कर रहे हैं। श्री गहलोत के शिविर में आने के इसी क्रम में वे इसी महीने के अंत में कोटा संभाग के तीन जिलों, कोटा, झालावाड़ और बूंदी में महंगाई राहत शिविरों में भाग लेंगे।

इस दौरान लोगों से सीधे संवाद करते हुए उनकी तकलीफों और समस्याओं को सुनकर उनका मौके पर ही निस्तारण करने के प्रयास करेंगे। राज्य सरकार की योजना मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा, पुरानी पेंशन योजना सहित अन्य उपलब्धियों को कांग्रेस की सरकार गिना रही है।

कांग्रेस के अलावा राज्य का दूसरा प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी चुनाव को लेकर सक्रिय है और केंद्र की मोदी सरकार के 9 वर्ष पूर्ण होने पर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अजमेर जिले में जनसभा भी हो चुकी है।

इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी अपने स्तर पर जनसंपर्क अभियान में जुटी है और इसी के तहत वे अगले माह जुलाई के पहले सप्ताह में कोटा में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करने वाली है।

इसके अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी में भी चुनाव को लेकर अपनी दौड़-धूप शुरू कर दी है और इसके संयोजक नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल राज्य में सात जिलों बीकानेर, नागौर, भीलवाड़ा, हनुमानगढ़, बाड़मेर, चुरू, श्रीगंगानगर में बजरी माफियाओं के सक्रिय होने और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर जनसभा और प्रदर्शन कर चुके हैं या करने की तैयारी में है।

श्री बेनीवाल ने दोनों दलों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी पार्टी आ पसी समझ वाले दसों से मिलकर चुनाव लड़ेगी लेकिन सहमति नहीं बनी तो सभी 200 सीटों पर लडेगी। आम आदमी पार्टी (आप) ने भी चुनाव को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी। हाल ही में 18 जून को श्रीगंगानगर में एक बड़ी रैली का भी आयोजन किया गया था जिसमें आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने जनसभा के जरिए अपनी पार्टी का राज्य में चुनाव का बिगुल बजा दिया है।

जननायक जनता पार्टी विधानसभा चुनाव को लेकर धीरे-धीरे सक्रिय होने लगी है। कुछ वर्षों से हर विधानसभा चुनाव में अपनी भागीदारी निभाने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सहित कुछ अन्य पार्टियों की आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अभी तक कोई खास सक्रियता नजर नहीं आ रही है। वैसे भी वामपंथियों का दमखम राज्य में कुछ क्षेत्रों तक सीमित है और वहां भी अभी एकजुटता जैसा कोई माहौल नहीं नजर आ रहा है।