डटा रहा, आशा नहीं छोड़ी, अब गांव का पहला डॉक्टर बनेगा आशु

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कोटा। जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना, सोच पक्की और क़दमों में रफ़्तार रखना, कामयाबी मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें, बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना…यह लाइने बारां जिले में समरानियां के निकट स्थित रामपुर उप्रेती के आशु पर सटीक बैठती है। आशु ने हौसला खोए बिना एक नहीं, दो नहीं, तीन बार नीट दिया तब जाकर सफलता मिली। अब वह अपने गांव का पहला डॉक्टर बनाने वाला है।

आशु ने बताया कि उसने दसवीं कक्षा में 91.6 और बारहवीं में 92 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए थे। बारहवीं के साथ नीट दी तो 370 ही अंक आए। थोड़ा झटका लगा लेकिन अगले साल ऑनलाइन कोचिंग की। इसमें इतने नंबर नहीं आ सके कि सरकारी मेडिकल कॉलेज मिल जाए। एक बार तो हिम्मत जवाब दे गई। लेकिन उसके सामने अपना सपना था।

इसलिए जल्दी से हौसला बटोरा और अपनी कमियों को समझने और भावी रणनीति बनाने में जुट गया। उसकी समझ में आ गया कि ऑनलाइन कोचिंग में क्लास रूम वाली बात नहीं है। यह उबाऊ और थका देने वाली है। इसमें में न समझाकर रोकने-टोकने वाले शिक्षक हैं ओर न ही क्लासरूम की प्रतिस्पर्धा का चेलेंज। इसलिए अगले साल मोशन एजुकेशन से नीट की क्लासरूम कोचिंग लेना शुरू की।

मोशन में स्कॉलरशिप के रूप में उसकी 80 प्रतिशत फीस माफ़ हो गई। वह उत्साह के साथ लगातार कक्षा में जाने लगा। कोचिंग के मॉड्यूल समय पर हल करता और कोई डाउट रह जाता तो तत्काल क्लीयर करता था। उसने खूब प्रेक्टिस की, पिछले सालों में हुए नीट पेपर के सवाल हल किए। कोचिंग के सभी टेस्ट दिए।

टेस्ट में जो सवाल गलत होते, उनको दोस्तों के साथ हल करता। जो सवाल हमसे नहीं होते, फेकल्टीज से पूछता…अंततोगत्वा आशु और मोशन टीम की मेहनत रंग लाई। इस बार नीट एक्जाम में में 657 अंक आए। ऑल इंडिया रैंक 5254 और केटेगिरी रैंक 1796 रही।

आशु ने बताया कि उसके पिता राजेश किराड़ ने बीएड की थी। नौकरी नहीं मिली तो खुद को खेती में खपा दिया। मां पढ़ी लिखी नहीं हैं। घर की आर्थिक स्थति ठीक नहीं है, फिर भी वे उसको डॉक्टर बनाना चाहते थे। ऐसे में जब टेस्ट में नंबर काम आते थे तो भविष्य को लेकर चिंता होती थी, कई बार मन घबराता था, लेकिन अक्सर निराशा के इन पलों में वह 2-3 घंटे सो जाता था।

इसके बाद बाहर निकलकर दोस्तों के साथ चाय पीता। जब देखता की सभी पढाई में लगे हैं तो वह भी जुट जाता, फिर कुछ याद नहीं रहता। कभी-कभी इससे भी काम नहीं चलता तो अपने पिता से बात करता। वे कहते चिंता मत करो, बस पूरा जोर लगाकर अपनी कोशिश करो, इसके बाद हर तनाव मिट जाता और पढाई में लग जाता।

आशु के पिता राजेश बताते हैं कि मोशन के बारे में उनको नेट से पता चला था। यू-ट्यूब पर एनवी सर के वीडियो देखे थे। मोशन हमारे भरोसे पर भी खरा उतरा। आशु की सफलता में मोशन के फेकल्टीज का बड़ा योगदान है। मोशन में हर बच्चे पर पूरा ध्यान दिया जाता है। अब वे अपने दूसरे बेटे अंकेश को भी नीट की तैयारी के लिए लिए मोशन की हवाले कर रहे हैं। वे यह लाइनें गुनगुनाते हैं-

ज़िंदगी कि असली उड़ान बाकी है
जिंदगी के कई इम्तेहान अभी बाकी है
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीन हमने
अभी तो सारा आसमान बाकी है