-कृष्ण बलदेव हाडा-
पिछले चार साल और पांच महीनों में जनता के लिए जनकल्याणकारी और जनहितेषी सरकार होने का दावा करने वाली मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने निश्चित रूप से अपने कई फैसलों से अपने तीसरे कार्यकाल में पहली बार ऐसी कांग्रेस सरकार होने का दावे के रूप में पेश किया है जो जनता को राहत देने के लिए प्रतिबद्ध है।
लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? कम से कम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहले 50 और बाद में 100 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बजट घोषणा के मामले में तो यह दावा कतई भी खरा नहीं उतरता। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री के रूप में दूरगामी राजनीतिक लाभ की सोच की रणनीति के साथ पहली बार अशोक गहलोत ने इस साल के बजट में जनता को राहत देने के लिए कई घोषणा की और इन घोषणाओं को महज कागजी नहीं रखकर धरातल पर उतारने की अच्छी कोशिश भी की है।
साथ ही इसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए चुनावी साल में बकायदा दो माह तक के लिए महंगाई राहत शिविर लगाकर लोगों को इन शिविरों में बुला-बुला कर राहत बांटी जा रही है, ताकि लोग लंबे समय तक सरकार की ओर से दी गई राहत को याद रख सके, जिसे कांग्रेस वोटों के रूप में भुना सके।
ऎसे अपने पुराने हथकंडे ‘हाईजैक’ करने की गहलोत सरकार की कोशिश कृपण एवं संकुचित सोच रखने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को कतई रास नहीं आ रही है। क्योंकि उन्हें स्पष्ट लग रहा है कि अशोक गहलोत की यह नीति अगले विधानसभा चुनाव में शर्तिया उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है।
बहरहाल बात मुख्य मुद्दे मुफ़्त या रियायती दरों पर आम उपभोक्ता को घरेलू बिजली उपलब्ध करवाने की तो इस मामले में अशोक गहलोत सरकार पूरी तरह से नाकामयाब साबित हुई है। क्योंकि 50-100 यूनिट मुफ़्त बिजली देने की घोषणा से आत्ममुग्ध सरकार और इसकी आस लगाए 1.35 करोड़ आम उपभोक्ता की उम्मीदों पर घोषणा के तत्काल बाद उसी समय पानी फिर गया था।
राहत पर आफ़त तब आई जब बिजली कंपनियों ने मोटा फ़्यूल सरचार्ज बढ़ाने की न केवल घोषणा की, बल्कि बीते महीने के बिल में राज्य के विद्युत उपभोक्ताओं से कई सौ करोड़ रुपए से भी अधिक वसूल कर भी लिए और इन उपभोक्ताओं को अभी राहत की सांस लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह तैयार रहें। अगले महीने के बिजली के बिलों में भी उन पर इतना ही भारी भार पड़ने वाला है।
अब इसे राजस्थान सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा समझा जाए या प्रदेश में संचालित तीनों बिजली कंपनियों जयपुर,अजमेर और जोधपुर डिस्कॉम की तयशुदा साजिश का हिस्सा कि वह राज्य सरकार की आम उपभोक्ताओं को राहत देने की हर कोशिश को नाकाम कर रही है। लेकिन ऐसे किसी षड्यंत्र की आशंका कम ही है। क्योंकि यह बिजली कंपनियां अंतत सरकार की मातहत है।
तीनों बिजली कंपनियों का मुखिया भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राज्य सरकार का वेतन भोगी कारिंदा है तो वह या बिजली कंपनियां राज्य सरकार की नीतियों-भावनाओं के खिलाफ कैसे जा सकते हैं?
राजस्थान सरकार की ओर से वर्तमान में प्रदेश भर में महंगाई राहत शिविर आयोजित करके कम से कम हर घरेलू विद्युत उपभोक्ता को 100 यूनिट मुफ्त बिजली देने के वायदे के साथ कार्ड बांटे जा रहे हो, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसी सरकार की मातहत तीनों बिजली कंपनियों ने मौजूदा सरकार के शासनकाल के दौरान पिछले मात्र चार साल में 1.35 करोड़ उपभोक्ताओं से फ़्यूल सरचार्ज के रूप में 16 बार अतिरिक्त राशि का बिल पेश कर चार हजार करोड़ रुपए से भी अधिक वसूल कर चुकी है।
हालांकि इसके लिए केंद्र सरकार राज्य से कहीं अधिक जिम्मेदार है, क्योंकि कोयले-डीजल की बढ़ी हुई दरों की एवज में यह फ़्यूल सरचार्ज वसूला जाता है। यह सर्वविदित है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम लगातार गिरते रहने के बावजूद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार लगातार देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाती जा रही है।
यही नहीं, निजी क्षेत्र के अपने ‘मित्रों-सहयोगियों’ को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए राज्यों को हर स्थिति में अपनी बिजली घरों के उपयोग के लिए एक निश्चित मात्रा में महंगे विदेशी कोयले को खरीदने को मजबूर किया जाता है और यह कोयला न केवल महंगा होता है बल्कि घटिया गुणवत्ता का भी होता है। इसके बावजूद इसे खरीदने के लिए राज्यों को केंद्र सरकार मजबूर कर रही है।
पहले राज्यों के लिए चार प्रतिशत विदेशी कोयला खरीदना ही जरूरी था। लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद इसे 10 प्रतिशत तक कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी देश में कोयला आयात करने वाले प्रमुख कंपनियों में से एक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के बीच के रिश्ते पर आज सबसे अधिक सवालिया निशान खड़े किए जाते हैं।