रेसलर्स का आंदोलन है या नौटंकी, जानिए इसके पीछे का सच

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आशीष मेहता, कोटा
खिलाड़ी निसंदेह एक देश की शान होता है, आन होता हैं। विश्व में अपने दम ख़म पर वो मेडल लाता है – सबसे बड़ी स्पर्धा है ओलिंपिक- कितने ट्रायल कितने प्रतिस्पर्धा और कितने टूट फूट उसे वहां पहुंचाते हैं।

मैं खिलाडियों पर लिखना नहीं चाहता था लेकिन अगर खिलाड़ी बदतमीजी और नखरों पर आ जाए और भूल जाता है कि एक खिलाड़ी की सबसे बड़ी उपलब्धि उसका अनुशासन होता है – वो नियम, वो आचरण उस खिलाड़ी की आन में चार चांद लगा देता है।

बात करता हू जंतर-मंतर पर बैठे जीजा साली की…तुम पर्सनल कोच मांगते हो – विदेशों में ट्रैनिंग मांगते हो। तुम्हारे ही साथ ऐसी ढेरों wrestlers थीं जो तुम्हारे आचरण से दुखी थी और कुश्ती संघ भी – कितने मेडल लाई हो तुम? लेकिन सुविधा और नखरे तुम्हारे पीटी उषा, मैरीकॉम जैसे खिलाडियों से भी ज्यादा हैं। अनुशासन और खेल क्या होता है ये इन बड़े खिलाडियों से पूछो।

पहले पर्सनल फीजिओ की माँग – फेडरेशन की मर्जी के खिलाफ हंगरी मे पति -पत्नी कोच के साथ अकेले ट्रैनिंग। फिर भारतीय कुश्ती दल के साथ रूकने से इंकार – भारत सरकार की Official kit पहने से इंकार।

टोक्यो में तो पहले ही राउंड में बाहर..
..और नखरे तेरे सुपरस्टारों वाले थे- किसी दूसरे देश में ऐसे नखरे या स्टारडम दिखाने की कोशिश भी की होती तो आजीवन प्रतिबंध लग जाता। पीटी ऊषा, मैरीकाॅम और योगेश्वर दत्त के सामने क्या उपलब्धियां है तुम्हारी? उनका एक बयान दिखा दो कि हम मैड्डल लाते है।

जब सरकार ने खिलाडी के मेडल जीतने पर कोचों को दस लाख रुपए देने शुरू किए थे तो एक फौगाट ने तो दस लाख रुपए घर में लाने के लिए बोल्या था कि “मेरा कोच तो मेरा बाप्पू सै”। साक्षी मलिक ने भी अपना कोच “अपने ससुर “सत्यवान कादियान” को ही बता दिया था। ये तो ईमानदारी है तुम्हारी। शायद कट्टर ईमानदारी..

मैड्डल लाने वालों की एक पूरी नस्ल मैट और अखाडे में पसीना बहा रही है और फुंक चुके कारतूस जो 30-30 साल के हो चुके हैं – वही नेताओं, खापों, दलित, शोषित वंचित, ऐक्टिविस्टो, धरनाजीवियों और टूल किट वालों के साथ नौटंकी में बिजी है।

अच्छी जबरदस्ती है यार..कमेटी हमारे मुताबिक हो। कमेटी का निर्णय भी हमारे पक्ष में आए। ओवर साईट कमेटी नेशनल क्यों आयोजित करा रही है। WFI अध्यक्ष का चुनाव भी रद्द करो, कुश्ती महासंघ को तत्काल भंग करो, ब्रजभूषण को जेल भेजो, अभी के अभी उसका “नार्को टेस्ट” करो, हम सूबूत नही देंगें, उल्टा ब्रजभूषण सूबूत दे कि उसने शोषण नहीं किया।

महिला फीजियो का शोषण हुआ था जी, जाँच कमेटी के सामने फीजियो ने उल्टा इनके मुँह पे नौ नंबर का जूता धर दिया। पहले चीख चीख कर बोल रहे थे कि हमारा यौन शोषण नहीं हुआ दूसरी लडकियों का हुआ है। कमेटी के सामने विनेश फोगाट और साक्षी मलिक ने ऐफेडेविट दिया कि अध्यक्ष ने हमारा शोषण किया है।

इस प्रकरण में इनकी नौटंकियां, ड्रामे और विरोधाभाषी बकवास सुन ले तो केजरीवाल भी शर्म से पानी पानी हो जाए। जबरदस्ती की भी हद होती है। मेडलिस्ट एमसी मैरीकॉम की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय कमेटी ने पाया कि कोई यौन शोषण की घटना कभी नहीं हुई। तो अब कह रहे, पुलिस का सब इंस्पेक्टर जाँच करे और ब्रजभूषण को अरेस्ट करे। अजीब तमाशा है यार!

जांच कमेटी मेंबर मेडलिस्ट एमसी मैरीकाॅम, डोला बैनर्जी, योगेश्वर दत्त झूठ बोल रहे हैं। अकेले फोगाट फेमिली सच्ची है। सब कुछ इसके मुताबिक होना चाहिए। जाँच हुई थी आरोप साबित नहीं हुए, फिर भी जबरदस्ती पर उतारू है ये। अब राजनैतिक पार्टियों को बुला रहे है – खापों का आह्वान किया जा रहा है।
इससे क्या जनता नहीं समझती क्या हो रहा हैं ?

सच यह है कि इन्हें चाहिए थी ओलंपिक में direct entry.. जो बंद कर दी गई। नेशनल खेलने से मना कर देते हैं। हजारों खिलाड़ी लड़कर आए ओलिंपिक के लिए लेकिन इनको VIP रास्ते से सीधे ओलिंपिक भेजो- क्यूँ भाई? बाकी आप जितने मेडल लाई, आपको उसका सम्मान भी मिला। उन मेडल के दम पर इतना नहीं की तुम किसी का भी मान मर्दन करोगे?

ब्रजभूषण का पक्ष नहीं ले रहे, गलत कौन हैं, सही कौन.. ये निर्णय न्यायालय करेगा। न्यायालय जाओ, सबूत रखो और दिलवा दो फांसी! जिसको कुछ करना होता है, वो विकटम कार्ड नहीं खेलते, ये नहीं कह्ते की हम मेडल लाए हैं जी। इस देश मे पुरुषों की मान मर्यादा और इज्जत इस हद से सस्ती है कि सरे बाजार एक औरत दो आँसू बहाकर नीलाम करवा सकती है।

हमारे यहाँ एक कहावत है- ऐसे सोने की जरुरत नहीं जो कानों को तोड़े। बस अब यही समझो। और हाँ.. कुछ आंदोलनजीवियों, टूलकिट गैंग, जातिवादियों के लिए डोला बनर्जी, मेरीकॉम, योगेश्वर दत्त, पीटी उषा खिलाड़ी नहीं हैं- केवल ये फॉगट परिवार ही खिलाडियों में आता है।