28 फीसदी जीएसटी स्लैब में वस्तुओं की संख्या कम की जाएंगी :अढिया

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नई दिल्ली। जीएसटी के 28% स्लैब में वस्तुओं की संख्या कम की जाएगी। लेकिन इससे पहले टैक्स रेवेन्यू का आकलन किया जाएगा। इसके लिए अफसरों की समिति बनाई गई है। रेवेन्यू के आकलन में तीन-चार महीने लग सकते हैं। यह बात राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने कही है। वह सोमवार को एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि जीएसटी में एक्साइज और वैट दोनों को शामिल किया गया है, जबकि पहले बहुत से प्रोडक्ट्स एमएसएमई द्वारा बनाए जाने के कारण उन पर एक्साइज से छूट थी।  1 जुलाई से लागू जीएसटी में वस्तुओं और सेवाओं को छह कैटेगरी में रखा गया है- 0%, 5%, 12%, 18% और 28% टैक्स।

एक कैटेगरी उन वस्तुओं की है जिन पर सेस लगता है। राजस्व सचिव ने बताया, फिटमेंट कमेटी देखेगी कि इन वस्तुओं पर एक्साइज और वैट से कितना कलेक्शन होता था। अगर अंतर ज्यादा रहा तो 28% स्लैब में चरणबद्ध तरीके से वस्तुओं को कम किया जाएगा। अढिया ने इस बात से इनकार किया कि रिटर्न फाइलिंग में देरी पर सरकार पेनाल्टी से छूट देने की सोच रही है।

उन्होंने कहा, जैसे ही हम कहेंगे कि मार्च 2018 तक जुर्माना नहीं लगेगा, वैसे ही कम्प्लाइंस रेट कम हो जाएगा। सरकार यह कैसे कह सकती है कि आप जब चाहें रिटर्न फाइल कर सकते हैं। छूट देना भी हुआ तो उस पर बाद में विचार होगा, अभी नहीं। अभी हमारा जोर बिजनेस में अनुशासन लाने पर है।

जुलाई के लिए 55 लाख, अगस्त के लिए 48 लाख और सितंबर के लिए अभी तक 10 लाख कारोबारियों ने शुरूआती रिटर्न जीएसटीआर-3बी फाइल किया है। लेकिन जुलाई का अंतिम रिटर्न जीएसटीआर-1 सिर्फ 46 लाख ने भरा है।

जीएसटीएन पोर्टल पर तकनीकी दिक्कतों की वजह से सरकार ने जुलाई के जीएसटीआर-3बी रिटर्न की फाइलिंग में देरी पर लेट फीस से छूट दी थी।

एमएसएमई के प्रोडक्ट पर टैक्स काफी बढ़ गया है : अभी जो रेट तय किए गए हैं, वह एक्साइज और वैट के आधार पर हैं। लेकिन कई इंडस्ट्रीज ऐसी हैं जिनमें 95% प्रोडक्शन छोटी-मझोली कंपनियां (एमएसएमई) करती हैं। जीएसटी से पहले उन्हें एक्साइज ड्यूटी नहीं देनी पड़ती थी।

उनके प्रोडक्ट पर सिर्फ वैट लगता था। जीएसटी रेट तय करने में एक्साइज और वैट दोनों को जोड़ा गया है। इससे उन प्रोडक्ट्स पर टैक्स रेट पहले की तुलना में काफी अधिक हो गया है। इक्का-दुक्का आइटम्स पर रेट घटाने के बजाय पूरे 28% स्लैब की समीक्षा करने की जरूरत है।

जमीन को भी जीएसटी के दायरे में लाना पड़ेगा: अढियाने कहा- रियल्टी को तभी जीएसटी में शामिल किया जा सकता है जब कंपनियों को सभी टैक्स का क्रेडिट लेने की सहूलियत मिले। इसके लिए जमीन को भी जीएसटी के दायरे में लाना पड़ेगा। यह स्टांप ड्यूटी के साथ होगा या अलग, यह बड़ा मुद्दा है। अभी स्टांप ड्यूटी से राज्यों को काफी राजस्व मिलता है।