नई दिल्ली। ग्लोबल एग्री कमोडिटी मार्केट में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग बढ़ी है। भारत के लिए बढ़ती संभावनाओं का लाभ उठाने को ‘लैब टू लैंड स्कीम’ को मिली सफलता को और विस्तारित करने पर जोर दिया गया है। सरकार ने इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिए हैं।
इसके तहत छोटी और मझोली जोत के किसानों को कृषि की आधुनिक टेक्नोलाजी से जुड़ने और सामूहिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। घरेलू कृषि निर्यात पौने चार लाख करोड़ रुपये पर पहुंच रहा है। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में ही इसके साढ़े चार लाख करोड़ को पार कर जाने का अनुमान है।
पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को पाने में कृषि क्षेत्र की भूमिका अहम साबित होगी। पड़ोसी एशियाई देशों के साथ अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग बढ़ी है। युद्ध की वजह से विश्व बाजार में यूक्रेन और रूस से होने वाली खाद्य उत्पादों की परंपरागत सप्लाई लाइन के टूटने का फायदा भारत उठा रहा है। साख मजबूत करने में देश की स्थिर आयात-निर्यात नीति भी सहायक साबित हुई है।
घरेलू जरूरतों को पूरा करने साथ निर्यात को बढ़ाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए कई नीतिगत सुधार किए गए हैं। कुल 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन (एफपीओ) की अनुमति दी गई है, जिसमें छोटे किसानों को एक साथ जुड़कर खेती करने की छूट है। कृषि उपज की प्रोसेसिंग को बढ़ाकर इसके मूल्यवर्धन पर भी जोर दिया जा रहा है।
खाद्यान्न पैदावार में दुनिया के प्रमुख देशों में शुमार भारत कृषि निर्यात के मामले में अभी पीछे है। इसे बढ़ाने के लिए वर्ष 2018 में कृषि निर्यात नीति लागू करते हुए अगले चार वर्षों के भीतर कृषि उत्पादों के निर्यात को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया गया।
इस वित्त वर्ष तक निर्यात का लक्ष्य 60 अरब डालर (साढ़े चार लाख करोड़ रुपये) करना है। यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय एग्री कमोडिटी मार्केट में कदम रखने का मौका भारत को मिला है। यहां चावल, गेहूं और चीनी जैसी बल्क कमोडिटी के निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं है।
चालू चीनी वर्ष में रिकार्ड 90 लाख टन का निर्यात होने का अनुमान है। दुनिया के अन्य गन्ना उत्पादक देशों में चीनी का उत्पादन प्रभावित होने से कीमतें बढ़ी हैं, जिसका फायदा भारत उठा रहा है। एथनाल उत्पादन और चीनी उत्पादन में भारत नई ऊंचाइयों को छूने लगा है। गेहूं और चावल निर्यात में भी भारत नए मुकाम पर पहुंचने की ओर है।
गेहूं का निर्यात
चालू रबी मार्केटिंग सीजन में गेहूं का निर्यात एक करोड़ टन से ऊपर पहुंच जाने का अनुमान है। यही वजह है कि घरेलू बाजार में गेहूं की कीमतें सीजन के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले अधिक बोली जा रही हैं। निर्यातकों की आक्रामक खरीद के आगे सरकारी खरीद केंद्र फीके पड़ गए हैं। गुणवत्तायुक्त खाद्य वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने पर ज्यादा जोर है।
चावल निर्यात मांग बढ़ी
बासमती और गैर बासमती चावलों की निर्यात मांग में वृद्धि दर्ज की गई है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार गैर बासमती चावल सभी कृषि वस्तुओं के बीच सबसे अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला रहा। आने वाले दिनों में भी इसमें पर्याप्त संभावनाएं हैं।
आयातकों में ये देश शामिल
भारत से बासमती चावल आयातकों में खाड़ी देश ईरान, सऊदी अरब, इराक, यूएई, कुवैत , यमन रिपब्लिक के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, ओमान और जार्डन प्रमुख हैं। गैर बासमती चावल के आयातकों में नेपाल, बांग्लादेश, चीन, टोगो, सेनेगल, गिनी, वियतनाम, जिबोटी, मेडागास्कर, कैमरून, सोमालिया, मलेशिया व लाइबेरिया प्रमुख हैं।
कपास, फल-सब्जी की भी मांग
विश्व बाजार में भारत के बफैलो मीट, कपास, ताजा फल और सब्जियों की जबर्दस्त मांग है। भारत से फ्लोरीकल्चर के साथ शहद और मशरूम जैसे उत्पादों की निर्यात मांग है। जड़ी बूटियों और मसालों के निर्यात की संभावनाओं को भी भुनाया जा रहा है। मत्स्य और समुद्री उत्पादों के निर्यात में भारत की बहुत अच्छी साख है। मत्स्य व समुद्री उत्पादों के निर्यात में भारत का दूसरा स्थान है, लेकिन इसकी अपार संभावनाओं को देखते हुए सरकार ने इसके लिए नए मंत्रालय का गठन किया है।