राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने फैसला सुनाते हुए कहा कि म.प्र. शासन के निर्देशानुसार लोक सेवकों के ग्रामों में रात्रि विश्राम कर जन समस्याओं का निपटारा करने से जुड़ी जानकारी लोक क्रियाकलाप व व्यापक लोक हित से संबंधित है, जिसे प्राप्त करने का नागरिकों को अधिकार है
भोपाल। गांवों में रात्रि विश्राम कर जनता की समस्याएं सुनने, उनका निराकरण करने और इस बारे में शासन को रपट पेष करने के राज्य सरकार के निर्देष का पालन न करना एक प्रषासनिक अधिकारी को महंगा पड़ गया ।
इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत एक नागरिक द्वारा चाही गई जानकारी न देने पर म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने नगर निगम, इंदौर के अपर आयुक्त संतोष टैगोर को पच्चीस हजार रू. के जुर्माने की सजा सुनाई है ।
साथ ही अपीलार्थी को वांछित जानकारी 7 दिन में निःषुल्क देने का आदेश देते हुए अल्टीमेटम दिया है कि ऐसा न करने पर अपर आयुक्त के खिलाफ सेवा नियमों के तहत अनुषासनात्मक/विभागीय कार्यवाही पर भी गौर किया जा सकता है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पत्रकार कैलाश सनोलिया की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि म.प्र. शासन के निर्देशानुसार लोक सेवकों (अधिकारियों) के ग्रामों में रात्रि विश्राम कर जन समस्याओं का निपटारा करने से जुड़ी जानकारी लोक क्रियाकलाप व व्यापक लोक हित से संबंधित है जिसे प्राप्त करने का नागरिकों को अधिकार है ।
राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी टैगोर ने लोक सूचना अधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ), नागदा के पद पर रहते हुए यह जानकारी नियत समय सीमा में नहीं दी । समस्त वांछित जानकारी 15 दिन में मुफ्त देने के अपीलीय अधिकारी, कलेक्टर उज्जैन के आदेष के बाद भी जानकारी देने में हीलहवाला किया ।
50 दिन से अधिक के विलंब से भी जानकारी देने के नाम पर अवांछित, भ्रामक व गलत सूचना दी । वांछित जानकारी 7 दिन में निशुल्क देने के सूचना आयोग के आदेश की भी अवहेलना की । यही नहीं, सजा से बचने की गरज से आयोग के शो काज नोटिस का विरोधाभासी, असत्य व अस्वीकार्य जवाब पेश किया ।
इस पर सूचना आयुक्त ने टैगोर को जानबूझकर बदनियती से वास्तविक जानकारी छुपाने, सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित पदेन दायित्व के निर्वहन में विफल रहने, कर्त्तव्यविमुखता प्रदर्षित करते हुए विधि से असंगत व गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने, प्रथम अपीलीय कार्यवाही के प्रति उदासीनता बरतने, आयोग व अपीलीय अधिकारी के आदेष का पालन न करने और धारा 7 के उल्लंघन का दोषी करार देते हुए दंडित किया है।
आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा है कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी टैगोर एक माह में जुर्माने की रकम अदा करें। अन्यथा संबंधित अनुशासनिक प्राधिकारी के माध्यम से उनके विरूध्द अनुषासनात्मक कार्यवाही करने और जुर्माना वसूलने के लिए जरूरी कार्यवाही की जाएगी । आवश्यक होने पर आयोग को प्राप्त सिविल न्यायालय की शक्तियों का भी इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
यह है मामला: अपीलार्थी ने इस आषय की जानकारी मांगी थी कि शासन ने सभी एस.डी.ओ. को गांवोें में रात बिताकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनने, उनका निराकरण करने और इस बाबत कलेक्टर को रपट पेश करने के दिशा – निर्देश जारी किए हैं ।
उन्हें इन निर्देष की प्रति, इनके पालन में गांवों में किए गए रात्रि विश्राम व ग्रामीणों की समस्याओं के निपटारे के लिए की गई कार्यवाही के विवरण की प्रति और कलेक्टर को पेश की गई रपट की जानकारी दी जाए ।
जानकारी न मिलने पर अपीलार्थी ने आयोग में द्वितीय अपील की । जिसकी सुनवाई में टैगोर ने भरोसा दिया कि वे उपलब्ध जानकारी जल्द दे देंगे और अनुपलब्ध जानकारी के बारे में भी अवगत करा देंगे ।
पर उन्होने न तो यह आष्वासन पूरा किया और न ही आयोग के आदेष पर अमल किया । इस पर आयोग ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया । टैगोर ने इसका जवाब पेष किया जिसे आयोग ने अस्वीकार्य करार देते हुए अपील मंजूर कर दंडादेश पारित कर दिया ।