नई दिल्ली। दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के मामलों के बीच कोरोना वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस बीच कोरोना की नकली वैक्सीन की खबरों ने एक्सपर्ट्स के साथ ही आम लोगों के मन में भी सवाल पैदा कर दिया है। लोगों को डर सता रहा है कि कहीं उन्हें भी तो नकली कोरोना वैक्सीन तो नहीं लग गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से कहा गया है कि साउथ ईस्ट एशिया और अफ्रीका में मिली एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफर्ड की तरफ से मिलकर बनाई गई कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के नकली वर्जन मिले हैं।
वैक्सीनेशन को टार्गेट को लग सकता है झटका
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि बाजार में नकली कोरोना वैक्सीन आने से वैक्सीनेशन के तय लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्यों को झटका लग सकता है। इन सब चिंताओं के बीच केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए बाजार में मौजूद नकली कोरोना वैक्सीन की पहचान को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हैं। देश में वर्तमान में तीन कोरोना वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से तैयार की जा रही कोविशील्ड, भारत बायोटेक निर्मित कोवैक्सीन और रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी बाजार में उपलब्ध है।
वैक्सीन असली है या नकली इसकी पहचान को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से निम्नलिखित क्राइटेरिया तय किया गया है।
- कोविशील्ड
- बोतल पर निम्नलिखिल डिटेल होगी
- एसआईआई का प्रोडक्ट लेबल
- ट्रेडमार्क के साथ ब्रांड (कोविशील्ड) का नाम होगा
- जेनरिक नाम का अक्षर बोल्ड नहीं होगा
- लेबल का गहरे हरे रंग का होगा और इस पर एल्यूमिनियम की फ्लिप ऑफ सील लगी होगी
- सीजीएस नॉल फॉर सेल की मुहर लगी होगी
- शीशी पर यूवी हेलिक्स (डीएनए जैसा स्ट्रक्चर) बना होगा जिसे अल्ट्रा वॉयलेट रोशनी में देखा जा सकेगा।
- कोवैक्सिन की एक्स स्पैलिंग में X का ग्रीन फॉइल इफेक्ट दिखेगा।
- कोवैक्सिन की स्पेलिंग में होलोग्राफिक इफेक्ट भी दिखेगा।
स्पूतनिक वी
भारत में आने वाली रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी को दो अलग-अलग प्लांटों से आयात किया गया है। ऐसे में दोनों के लेवल में मैन्युफैक्चरिंग करने वाली कंपनी का नाम अलग-अलग होगा। इसके अलावा बाकी सभी जानकारी समान ही रहेगी।