नई दिल्ली। इस बार फरवरी से ही गर्मी बढ़ने लगी और ऊंचे तापमान के कारण चना की फसल के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। महत्वपूर्ण उत्पादक इलाकों में फसल की औसत उपज दर तथा दाने की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका है। सिंचित क्षेत्रों में फसल की हालत लगभग सामान्य या संतोषजनक है मगर वर्षा पर आश्रित इलाकों में खेतों की मिटटी में नमी का अभाव होने लगा है। इससे न केवल पौधों में फलियां कम लगेंगी बल्कि फलियों में दाने की संख्या भी घट जाएगी और उसका आकार छोटा पड़ सकता है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि रबी सीजन के सबसे महत्वपूर्ण दलहन-चना का उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के 107.30 लाख हेक्टेयर से बढ़कर इस 112 लाख हेक्टेयर के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया जो पंचवर्षीय औसत क्षेत्रफल 92.77 लाख हेक्टेयर से भी काफी अधिक रहा। मंत्रालय ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में चना का घरेलू उत्पादन 2019-20 के 110.80 लाख टन से बढ़कर 2020-21 के सीजन में 116.20 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना व्यक्त की है जो नियत लक्ष्य 110 लाख टन से काफी अधिक है। मंत्रालय के अनुसार इससे पूर्व 2017-18 के रबी सीजन में 113.80 लाख टन चना का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था जबकि 2018-19 में यह घटकर 99.40 लाख टन रह गया।
चना का वास्तविक बिजाई क्षेत्र कितना रहा- इस पर अब तक संदेह बना हुआ है लेकिन इतना निश्चित है कि इस दलहन का वास्तविक उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम होगा। उद्योग- व्यापार क्षेत्र के महारथियों से ली गई जानकारी के आधार पर चना का वास्तविक उत्पादन अधिकतम 85-90 लाख टन बैठ रहा है। महाराष्ट्र में चना की फसल में पोल निकलने की आशंका है, मध्य प्रदेश में बिजाई गत वर्ष से कम हुई है और मौसम भी फसल के लिए पूरी तरह उपयुक्त या अनुकूल नहीं है।
महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान में बिजाई बढ़ी है लेकिन यदि मौसम ठीक नहीं रहा तो फसल को काफी नुकसान होना निश्चित है। चना के तीन शीर्ष उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र शामिल है। एक अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक प्रान्त-कर्नाटक में चना के बिजाई क्षेत्र में कमी आई है।
फसल को हो रहे नुकसान का घरेलू बाजार पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ना शुरू हो गया है। हाजिर तथा वायदा बाजार में चना का भाव तेज होने लगा है। बेंचमार्क इंदौर मंडी में चना का दाम पहले ही 5000 रुपए प्रति क्विंटल को पार कर चुका है। वायदा में भी मई अनुबंध के लिए भाव 5100 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2019-20 के 4875 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2020-21 सीजन के लिए 5100 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। पिछले कुछ दिनों से इसमें तेजी का नया दौर देखा जा रहा है।
नए माल की आवक पहले ही शुरू हो चुकी है। आपूर्ति जोरदार होने पर भी कीमतों में ज्यादा नरमी आना मुश्किल लगता है क्योंकि बकाया स्टॉक का ठोस सहारा नहीं है। व्यापारिक फर्मों तथा बड़ी-बड़ी कंपनियों की नजर चना की खरीद पर केन्द्रित है। बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचा रहा तो चना की सरकारी खरीद संभव नहीं हो पायेगी। अरहर के मामले में अभी ऐसे ही हालात हैं। नैफेड को उसकी खरीद में मामूली सफलता मिली है।
चालू वर्ष के दौरान आपूर्ति का जोर थमने के बाद चना की कीमतों में और भी तेजी आने की संभावना है और यदि इसका भाव उछलका 5800-6000 रुपए प्रति क्विंटल के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी। अक्टूबर 2020 में एक समय यह 5600 रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंचा था। देसी चना पर 60 प्रतिशत का ऊंचा सीमा शुल्क लगा हुआ है इसलिए विदेशों से नगण्य आयात हो रहा है। देश में औसतन 90 लाख टन चना की वार्षिक खपत होती है। आगामी महीनों में मांग एवं आपूर्ति का समीकरण जटिल बना रहेगा