त्योहारी सीजन में खाद्य तेलों पर मुनाफाखोरी पर सरकार और संगठनों की सख्ती

0
11

नई दिल्ली। Edible oil: सीमा शुल्क में बढ़ोतरी के बाद खाद्य तेलों के दाम बढ़ाए जाने की खबरों के बीच कारोबारी संगठनों ने मुनाफाखोरी करने वालों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। सरकार पहले ही कारोबारी संगठनों को निर्देश दे चुकी है कि त्योहारी सीजन में कीमतों में बढ़ोतरी न की जाए।

क्योंकि देश में करीब दो महीने का खाद्य तेलों का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है। सरकार और कारोबारी संगठनों की सख्ती की वजह से त्योहारी सीजन में खाद्य तेलों के दाम स्थिर रहने की उम्मीद की जा रही है।

उद्योग जगत के लोगों को कहना है कि आगामी त्योहारी मौसम के दौरान खाद्य तेलों के दाम में कोई उछाल आने की आशंका नहीं है। नंदिनी ब्रांड से खाद्य तेल उत्पादक कंपनी एनके प्रोटेनिस प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक निमेश पटेल कहते हैं कि आयात शुल्क में बढ़ोतरी का असर त्योहारी सीजन में नहीं पड़ने वाला है क्योंकि करीब 45 दिनों का स्टॉक पोर्ट में पड़ा है। इसके अलावा करीब 20 दिन का माल कारोबारियों के पास जमा है। इस तरह डेढ़ दो महीने का स्टॉक देश में मौजूद है।

अगले महीने से नई फसल आना शुरू हो जाएगी जिससे इसका असर कम होगा। फिलहाल त्योहारी सीजन में कीमतें नहीं बढ़ने वाली है और इसके बाद भी खाद्य तेलों के दाम 10 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ेगे। इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा, जब किसानों को फायदा होगा तो घरेलू उत्पादन बढ़ेगा। आयात कम होगा जो देश के लिए फायदेमंद होगा। यानी सरकार का यह फैसला किसान और देश हित में है।

कारोबारी संगठनों का कहना है कि आयात शुल्क में बढ़ोतरी के नाम पर कुछ आयातकों द्वारा अधिक दाम वसूलने की शिकायतें मिल रही है। अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि खाद्य तेलों में आयात शुल्क बढ़ने के बाद देशभर में आयातकों द्वारा पुराने स्टॉक में मुनाफाखोरी का जमकर खेला शुरू कर दिया गया है।

कुछ आयातकों खासकर पाम तेल और सोया तेल की डिलीवरी जानबूझ कर कम कर दी, ताकि कुछ दिन बाद ग्राहकों से आयात शुल्क जोड़कर माल लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जबकि इस विषय पर सरकार आयातकों को चेतावनी दे चुकी है।

ठक्कर कहते हैं कि संघ की तरफ से कारोबारियों से अपील की गई है कि जो आयातक पुराने सौदे देने से इनकार कर रहे हैं उनके खिलाफ संगठन में शिकायत दर्ज कराएं, उन आयातकों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। जिन तेलों का उत्पादन घरेलू है जैसे- सरसों, राइस ब्रांड रिफाइंड, मूंगफली तेल का आयात शुल्क से दूर-दूर तक कोई लेना- देना नहीं है, लेकिन इसके बाद भी मौके का फायदा उठाते हुए कारोबारियों ने इसकी कीमत में भी इजाफा करना शुरू कर दिया। ऐसे मुनाफाखोरों पर सरकार के साथ संगठन की भी नजर है।

खाद्य तेल व्यापारियों का संगठन एसईए कहते हैं कि देश में खाने के तेल की कोई कमी नहीं है। शुल्क बढ़ोतरी का तुरंत असर नहीं होने वाला है। हर महीने 12-15 लाख टन खाने का तेल आयात हो रहा है। अगले 15 दिनों के बाद पता चलेगा कि दाम किधर जाने वाले हैं क्योंकि वैश्विक बाजार में तेल के दाम गिरते हैं तो भारत में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी।

सरकार ने कच्चे सोयाबीन तेल, पाम तेल और सूरजमुखी तेल पर मूल सीमा शुल्क शून्य से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है। रिफाइंड वेरिएंट पर शुल्क 12.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 32.5 प्रतिशत कर दिया गया जो 14 सितंबर से प्रभावी है। खाद्य तेलों के दाम बढ़ाए जाने की खबरों के बीच सरकार की तरफ से उद्योग को निर्देश दिया गया है कि वे इस स्टॉक को मौजूदा कीमतों पर तब तक बेचें जब तक यह खत्म न हो जाए।

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक शून्य शुल्क पर आयातित 13 लाख टन खाद्य तेल अब भी स्टॉक में जमा हैं। इस स्टॉक के खत्म होने के बाद भी, शुल्क में वृद्धि के साथ कीमतों में 20 फीसदी की वृद्धि की आवश्यकता नहीं है। अंतरराष्ट्रीय कीमतों में थोड़ी कमी आएगी।