हौसले की जीत: कैंसर से लड़कर अनीशा ने पढ़ाई की, बनी डॉक्टर

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कोटा। ‘वाकिफ कहां जमाना हमारी उड़ान से, वे और थे जो हार गए आसमान से…‘ वाकई में असली उड़ान हौसले से ही उड़ी जाती है। एक बार फिर यह बात सिद्ध की है अनीशा अग्रवाल ने, जिसने कोटा में रहकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग की। वर्तमान में वह जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज अजमेर में एमबीबीएस फाइनल ईयर की स्टूडेंट है। अनीशा ने पीजी के लिए यूएस-एमएलई के प्रथम चरण को क्वालीफाई कर लिया है।

अनीशा की सफलता उनकी हिम्मत है, जिसकी कहानी कोटा से शुरू होती है। वर्ष 2014 में अनीशा यहां एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में कक्षा 12 के साथ एआईपीएमटी की तैयारी कर रही थी। कोटा में यह दूसरा साल था। करीब तीन महीने की पढ़ाई हो चुकी थी। कोचिंग टेस्ट में अनीशा टाॅपर्स में शामिल रहती थी। 90 प्रतिशत से अधिक अंक आते थे।

जुलाई 2018 में अचानक अनीशा की तबियत खराब रहने लगी। कमजोरी महसूस होने लगी, पेट दर्द रहने लगा, अत्यधिक नींद आने लगी। डाॅक्टर्स से जांच करवाई तो कोई बीमारी पकड़ नहीं आई। क्लास में सबसे आगे की कतार में बैठने वाली अनीशा पीछे बैठने लग गई। मम्मी-पापा कोटा आए और जांच करवाई तो पीलिया सामने आया। घर अजमेर ले गए और वहीं पर इलाज चला। ठीक होने के बाद फिर कोटा लौटे और पढ़ाई शुरू की लेकिन नींद आना और पेट दर्द बरकरार रहे।

ज्यादा दर्द होने पर कोटा में ही एक रात पेट की जांच की गई तो ट्यूमर सामने आया। कोटा के चिकित्सकों ने ऑपरेशन की सलाह दी। इसके बाद उदयपुर जानकार चिकित्सकों से जांच करवाई तो वहां भी यही कहा गया और उदयपुर में अनीशा के पेट से डेढ़ किलो का ट्यूमर निकाला गया। बायोप्सी जांच में ट्यूमर कैंसर का होना पाया गया। यह सुनने के बाद परिवार सकते में आ गया और सबकुछ थम सा गया।

थर्ड स्टेज का कैंसर
कैंसर विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने थर्ड स्टेज का कैंसर बताया। इसके बाद बेहतर उपचार व जांच के लिए अनीशा को अहमदाबाद ले गए। यहां आइसोटाॅप से पेट स्केन किया गया तो पता चला कि शरीर में अभी भी कैंसर के कोशिकाएं हैं। इसके लिए कीमोथैरेपी देनी होगी। एक के बाद एक 4 कीमोथैरेपी दी गई। 18 घंटे की कीमोथैरेपी के बाद अनीशा की तबियत बहुत बिगड़ गई, बहुत कमजोर हो गई, सारे बाल उड़ गए, भूख नहीं लगती, शरीर कमजोर हो गया।

फिर शुरू की पढ़ाई
कमजोर अवस्था के चलते अनीशा और परिजन परेशान रहने लगे। इसी दौरान अनीशा ने कहा कि मैं कोटा जाकर पढ़ना चाहती हूं। माता-पिता उसे कोटा ले आए और मां साथ रहने लगी। दुबारा क्लास अटैंड करना शुरू किया। सितम्बर से जनवरी तक के पांच माह के ब्रेक के बाद फरवरी में फिर से शुरू हुई, क्लासेज के टेस्ट में अब अनीशा की परफोरमेंस डाउन हो गई। पहले जहां 96 प्रतिशत अंक आते थे, अब 40 से 50 प्रतिशत अंक ही आने लगे। अनीशा ने पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया और तीन महीने में खुद को परीक्षा के लिए तैयार किया।

कोचिंग संस्थान ने की स्पेशल ट्यूटर की व्यवस्था
अनीशा का हौसला बढ़ाने में कोचिंग संस्थान ने कोई कमी नहीं छोड़ी। फेकल्टीज लगातार उसे बेहतर करने के लिए प्रेरित करते रहे। इंस्टीट्यूट के टीचर्स ने उसका कोर्स पूरा करवाया। स्पेशल ट्यूटर की व्यवस्था की गई। मां साये की तरह साथ रही। अनीशा ने परीक्षा दी और एआईपीएमटी में 73 प्रतिशत बनी, अखिल भारतीय स्तर पर 3862 तथा राजस्थान स्तर पर 721 रैंक प्राप्त की। पहली काउंसलिंग में झालावाड़, दूसरी में कोटा तथा तीसरी में मेडिकल काॅलेज अजमेर मिला। यहीं एमबीबीएस में प्रवेश लिया।

दर्द ने दिखाई जीवन की राह
बीमारी के दौरान कीमो के बाद अनीशा के बाल उड़ गए, शरीर कमजोर हो गया तो परिवार बहुत व्यथित रहता। ऐसे में अनीशा इसे भी पाॅजीटिव लेती और कहती कोई बात नहीं बाल संवारने नहीं पड़ेंगे समय बचेगा। जब कीमो होती तो शरीर में नसें दिखना बंद हो जाता, ऐसे में कई जगह इंजेक्शन लगाकर देखना पड़ता। इन तकलीफों से गुजरते हुए ही अनीशा ने अपने जीवन का लक्ष्य भी तय किया।

उसने कैंसर विशेषज्ञता में ही जाने का फैसला किया और इलाज के दौरान नसों के सिकुड़ने पर ही शोध करने का मन बनाया। अनीशा वर्तमान में एमबीबीएस फाइनल में है और पीजी के लिए यूएस-एमएलई का एग्जाम दिया है, जिसके प्रथम चरण में क्वालीफाई हो चुकी है। अभी भी अनीशा के कैंसर के फोलोअप चल रहे हैं।

छोटा भाई मार्गदर्शक
अनीशा का छोटा भाई हर्षित अग्रवाल अब इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कोटा में एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट से कर रहा है। हर्षित का कहना है कि अनीशा मेरे लिए मार्गदर्शक है, मैं उनसे हर समस्या पर चर्चा करता हूं, वो मुझे समझाती हैं। अनीशा की मां अंजु अग्रवाल गृहिणी हैं तथा पिता मुकेश अग्रवाल अजमेर में व्यवसायी हैं।