सरसों का रकबा बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर, भाव एमएसपी से नीचे रहने का अनुमान

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नई दिल्ली। चालू रबी सीजन के दौरान सबसे प्रमुख तिलहन फसल-सरसों का बिजाई क्षेत्र बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है जिससे एक बार फिर इसके शानदार उत्पादन होने की उम्मीद है। अन्य तिलहनों एवं खाद्य तेलों का भाव नरम रहने से सरसों का दाम भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है जिससे किसानों को लाभप्रद वापसी हासिल नहीं हो रही है।

अगले महीने से सरसों की अगैती बिजाई वाली फसल की छिटपुट कटाई-तैयारी शुरू होने की संभावना है जबकि मार्च-अप्रैल में इसकी जोरदार आवक होने लगेगी।

किसान संगठनों के साथ-साथ उद्योग-व्यापार क्षेत्र के विश्लेषकों का भी मानना है कि सरसों का भाव आगामी महीनों में सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे रह सकता है।

हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में अगैती मैच्योरिंग किस्मों की सरसों की नई फसल छिटपुट रूप से कटने लगी है और वहां इसका भाव घटकर 4000-4300 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गया है।

उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने 2023-24 के सीजन हेतु सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 5650 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जो 2022-23 सीजन के समर्थन मूल्य 5450 रुपए प्रति क्विंटल से 200 रुपए ज्यादा है। नई फसल की सरसों का भाव इस समर्थन मूल्य से करीब 30 प्रतिशत नीचे चल रहा है।

चूंकि सरकारी एजेंसियां- नैफेड तथा हैफेड अभी मंडियों में सक्रिय नहीं हैं इसलिए किसानों को सस्ते दाम पर अपनी सरसों की बिक्री करने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

समीक्षकों के अनुसार व्यापारी तथा मिलर्स भारी मात्रा में किसानों से ऊंचे दाम पर सरसों खरीदने से हिचक रहे हैं क्योंकि पिछले कई महीनों से सरसों तेल एवं खल का भाव नरमी की चपेट में है।

विदेशों से विशाल मात्रा में खाद्य तेलों का आयात होने से कीमतों पर भारी दबाव बना हुआ है। किसानों का कहना है कि जब समर्थन मूल्य पर कोई खरीदने वाला ही नहीं है तब एमएसपी का निर्धारण करने से क्या फायदा ?

पिछले स्टॉक की सरसों का दाम भी घटकर 4800 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास रह गया है जो 5450 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे है। देश में पाम तेल, सोया तेल एवं सूरजमुखी तेल का बेतहाशा आयात हो रहा है जिससे सोयाबीन के दाम भी नरम पड़ गए हैं।