टेलेंटेड भारतीय इंजीनियरों की दुनिया दीवानी, जानिए क्यों

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बेंगलुरु। भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) के इंजीनियरिंग एवं आरऐंडडी (रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट यानी अनुसंधान एवं विकास) केंद्रों की संख्या 2016 में 943 के मुकाबले 2017 में बढ़कर 976 हो गई। इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 1,005 तक पहुंचने का अनुमान है।

ये आंकड़े कंसल्टिंग फर्म जिनोव (Zinnov) के एक अध्ययन में सामने आए हैं। खास बात यह है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की टेढ़ी नजर के बावजूद इनमें 60 प्रतिशत से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां अमेरिका की हैं।

भारतीय इंजीनियरों की मांग
चूंकि टेक्नॉलजी हरेक प्रकार के उद्योग की धुरी बन रही है, इसलिए इंजीनियर सभी कंपनियों के प्रमुख अंग बनते जा रहे हैं। ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने भारत ही ऐसा देश है जहां अनिवार्य कौशल वाले इंजिनियर पर्याप्त संख्या में मिल सकते हैं।

GICs की संख्या में 10% की वृद्धि
इन MNCs के सेंटर्स में एंप्लॉयीज की संख्या 2016 में 3 लाख 43 हजार थी जो अगले वर्ष 2017 में बढ़कर 3 लाख 96 हजार पर पहुंच गई और इस वर्ष इसके 4 लाख 45 हजार तक पहुंचने का अनुमान है। यानी, इन सेंटर्स में, जिन्हें ग्लोबल इनहाउस सेंटर्स (GICs) कहा जाता है, कर्मचारियों की संख्या में सालाना करीब 10 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।

गौरतलब है कि इनमें MNCs की आईटी एवं बीपीएम (बिजनस प्रोसेस मैनेजमेंट) ऑपरेशंस शामिल नहीं हैं। जिनोव का आकलन है कि इन्हें मिलाकर 2016 में कुल 1,571 सेंटर्स और 8 लाख 15 हजार एंप्लॉयीज थे।

कहा जा सकता है कि जब भारत में नौकरियों का अभाव है, तब यह ऐसा क्षेत्र है जहां अच्छी-खासी संख्या में रोजगार मिल रहे हैं। इतना ही नहीं, ये सेंटर्स भारत की टेक इंडस्ट्री में बेहतरीन पगार देने वाले संस्थानों के तौर पर उभर रहे हैं।

15% बढ़ा भारत में MNCs का खर्च
वर्ष 2017 का ही आंकड़ा ले लें तो इन MNCs ने अपनी-अपनी GICs में इन्फ्रास्ट्रक्चर और सैलरीज पर वर्ष 2016 में 13 अरब डॉलर (करीब 9.33 खरब रुपये) जबकि 2017 में 15 अरब डॉलर (करीब 10.76 खरब रुपये) खर्च किए। यह सालाना आधार पर 15 प्रतिशत की वृद्धि है। जिनोव के सीईओ परी नटराजन ने कहा, यह ‘आईटी सर्विसेज के मुकाबले ज्यादा ग्रोथ है।’

एशियाई देशों की कंपनियां भी आकर्षित
नटराजन ने कहा कि भारत में GICs स्थापित करने वाले एशियाई देशों की कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है। 2017 में सिंगापुर की कंपनी ग्रैब टैक्सी और चीन की कंपनी ग्रेट वॉल मोटर ने भारत में अपने-अपने सेंटर्स बनाए। 2016 में भारत आई इंडोनेशिया की कंपनी गो-जेक की मौजूदगी अब बढ़ गई है।

ग्लोबल डिसिजन-मेकिंग हेडक्वार्टर बन रहा भारत
नटराजन ने बताया कि भारत ऑटोमेशन के क्षेत्र में काम करने वाली दुनियाभर की कंपनियों का डिसिजिन मेकिंग हेडक्वॉर्टर्स बन रहा है। उन्होंने कहा, ‘ऑटोमेशन आरऐंडडी के लिए सेंटर ऑफ एक्सेलंस है।’

दरअसल, MNCs का भारत की ओर आकर्षित होने का बड़ा कारण यहां का सॉफ्टवेयर टैलंट है। नटराजन कहते हैं कि डेलॉयट और अंर्स्ट ऐंड यंग जैसी प्रफेशनल सर्विसेज कंपनियां आज आंतरिक छानबीन के लिए ऐनालिटिक्स प्रॉडक्ट्स बना रही हैं। यही कारण है कि वे भारत के सॉफ्टवेयर टैंलट्स की सबसे बड़ी कद्रदान बन गई हैं।

बंपर भर्तियां करेंगी नेटफ्लिक्स, डिजनी जैसी कंपनियां
उनके मुताबिक, टेलिकॉम एवं मीडिया तथा एंटरटेनमेंट के क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी भारत में अपने GICs बढ़ाएंगी क्योंकि भारत इनके लिए बड़ा मार्केट है। नेटफ्लिक्स और डिजनी जैसी कंपनियों को बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर टैलंट्स की जरूरत पड़ने वाली है।