अब मजदूर नहीं, नीट में सफल जोधाराम बनेगा डॉक्टर

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कोटा। राजस्थान के बाड़मेर में गुढ़ामालानी तहसील के डेडावास गांव निवासी जोधाराम पटेल ने हालातों के आगे बेबस होकर मजदूरी के लिए मुम्बई जाने का मन बनाया, लेकिन जब शिक्षकों ने प्रेरित किया तो नीट की परीक्षा दी। चार बार असफलता के बाद पांचवें प्रयास में मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में सफलता हासिल की।

बड़ी बात यह कि पांचवे प्रयास से पहले जोधाराम को कॅरियर सिटी कोटा और एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट का साथ मिला और नीट में ऑल इंडिया 3886 एवं ओबीसी कैटेगिरी में 1209 रैंक प्राप्त की है। जोधाराम के गांव डेडावास में करीब 400 घर हैं और वो अपने गांव का पहला युवा है जो डॉक्टर बनने जा रहा है।

जोधाराम का कहना है कि हमारे गांव और आस-पास के इलाकों के अधिकतर युवा 10वीं तक पढ़ने के बाद मजदूरी करने अन्य राज्यों में चले जाते हैं। उनमें जागरूकता का अभाव भी है। एमबीबीएस करने के बाद गांव के युवाओं का पलायन रोकना चाहता हूं। निर्धन परिवारों के प्रतिभावान विद्यार्थियों की हरसंभव मदद करने का प्रयास करूंगा ताकि वे भी अपना भविष्य उज्जवल बना सकें।

निरक्षर माता-पिता हैं नरेगा मजदूर
जोधाराम का परिवार आर्थिक दृष्टि से कमजोर है। घर में करीब 6 बीघा जमीन है लेकिन, सूखाग्रस्त इलाका होने के कारण ज्यादा फसल नहीं हो पाती। कभी-कभी जीरा या बाजरा की फसल होती है लेकिन उससे पेट भरने जितना इंतजाम हो पाता है। जोधाराम के दो बहिनें एवं एक बड़ा भाई है। भाई पढ़ाई में होशियार था लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण 8वीं के आगे नहीं पढ़ सका।

पिता नरिगाराम एवं मां सुगनी देवी दोनों निरक्षर है और नरेगा में मजदूरी कर जैसे-तैसे बच्चों का पेट पाल रहे है। घर भी कच्चा बना हुआ है। पढ़ाई में होनहार जोधाराम ने 10वीं 64 प्रतिशत अंक से सरकारी विद्यालय से उत्तीर्ण की। घर की आर्थिक स्थिति देखते हुए मुम्बई जाकर मजदूरी करने का निर्णय लिया। ऐसे में उसके मामा आगे आए और उन्होने मदद कर जोधाराम को 12वीं तक पढ़ाया-लिखाया।

असफलता से सफलता तक
जोधाराम ने नीट परीक्षा में चयनित होने के लिए मन लगाकर पढ़ाई की लेकिन, उसे लगातार चार बार असफलता मिली। सफलता प्राप्त करना मानो उसका जुनून बन गया था। 12वीं कक्षा उत्त्तीर्ण करने के बाद जोधाराम ने एक वर्ष जोधपुर रहकर नीट की तैयारी की लेकिन असफलता मिली। पहली बार में उसकी रैंक डेढ़ लाख तक आई।

फिर उसने घर पर रहकर तैयारी की लेकिन असफलता हाथ लगी। इस बार 35 हजार रैक आई। तीसरे साल 17500 एवं चौथे साल में 12000 के आस-पास रैंक प्राप्त की। जोधाराम के इन मजबूत इरादों और लगातार परिणामों में आ रहे सुधार को देखकर उसके मामा ने मदद का हाथ बढ़ाया और उसे पढ़ने के लिए कोटा भेजा। यहां एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट पहुंचे और अपनी बात रखी, जोधाराम की प्रतिभा और परिवार की परिस्थितियों को देखते हुए एलन द्वारा फीस में रियायत दी गई।