Doctors Day पर विशेष: डाॅक्टर एवं मरीज के बीच विश्वास का रिश्ता जरूरी

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डाॅ. सुरेश पाण्डेय
पूर्व उपाध्यक्ष, इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन, कोटा (राज.)

कोविड 19 (Covid 19) वैश्विक महामारी के दौरान डाॅक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ फ्रंट लाइन कोरोना वाॅरियर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है। देशभर में 1000 से अधिक चिकित्सा कर्मी कोविड 19 से संक्रमित होकर अपनी प्राणों की आहुति दे चुके है।

डाॅक्टर्स-डे (1 जुलाई ) के अवसर पर आज समुचा विश्व इस समय कोरोना वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल, मई माह में देशभर में आक्सीजन, बेड एवं जीवन रक्षक दवाओं की कमी के कारण अनेकों देशवासी असमय ही काल कल्वित होकर अनन्त यात्रा पर निकल चुके है । देश के कुछ राज्यों में डेल्टा प्लस वैरिएंट के शुरु होने के समाचार पढ़ने में मिलें हैं।

डाॅक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सिंग कर्मचारी, सफाई कर्मचारी एवं पुलिस प्रशासन कोरोना वाॅरियर्स के रूप में इस महामारी का अग्रिम पंक्ति में खडे होकर डटकर मुकाबला कर रहे है। कोविड 19 वैश्विक महामारी से लडते हुए देशभर में 1000 से अधिक चिकित्सक कोविड 19 से संक्रमित होकर अपनी प्राणों की आहुति दे चुके है।

कोविड 19 वैश्विक महामारी ने समूचे विश्व में चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता एवं उपयोगिता के महत्व को जन-जन को अवगत करवाया है। एक अदृश्य विषाणु के प्रकोप से दुनियाभर के 220 से अधिक देश बेबस एवं लाचार दिखाई दे रहे है।

कोविड 19 महामारी के बचाव हेतु देशभर में 18 वर्ष की आयु से अधिक व्यक्तियों को कोविड वैक्सीन लगाने हेतु सरकारी मशीनरी एवं देशभर के चिकित्साकर्मी दिन-रात एक कर रहे है।

1 जुलाई को समूर्च भारतवर्ष में डाॅक्टर्स-डे मनाया जा रहा है। एक जुलाई को भारत में डाॅ. बीसी राय के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ‘डाॅक्टर्स-डे’ के रूप में मनाया जाता है। 1 जुलाई, 1882 को पटना (बिहार) में जन्में डाॅक्टर बीसी राय ने पहले कलकत्ता और फिर लंदन (इंग्लैंड) में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई की और फिर भारत लौटकर ना केवल एक बेहतरीन डाॅक्टर के रूप में अपनी पहचान बनाई, बल्कि गाँधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया।

कांग्रेस के नेता रहने के बाद वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी बने और 1 जुलाई, 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया। आज दुनिया भर और खास तौर से भारतवर्ष में डाॅक्टरों और मरीजों के बीच विश्वास का रिश्ता काफी कमजोर होता जा रहा है। जिसकी परिणीति अस्पतालों में चिकित्सकों के साथ आये दिन होने वाली मारपीट तोड़फोड़ के रूप में हो रही है।

मरीजों को शिकायत है कि डाॅक्टर अक्सर अभिमानी, बेरूखे व स्वकेन्द्रित होते हैं, जटिल मेडिकल शब्दों प्रयोग कर मरीज को भ्रमित (कन्फ्यूज़) करते हैं, मरीजों की तकलीफ सुनने के लिए उचित समय नहीं देते एवं उपचार हेतु मोटी फीस लेते हैं। वहीं डाॅक्टरों को लगता है कि मरीज बीमारी व इलाज के बारे में पूरी तरह नहीं समझते हुए भी डाॅक्टरों को बात-बात पर दोष देते हैं, कम्प्यूटर-इंटरनेट, मित्रों के माध्यम से प्राप्त की आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर डाॅक्टर पर हावी होने का प्रयास करते हैं, अपनी बीमारी के प्रति अपनी जिम्मेदारी को न समझते हुए डाॅक्टरों को शक व अविश्वास से देखते है।

हालांकि विश्वास की कमी, संदेहपूर्ण रवैया व गिरते स्तर समाज के हर हिस्से को प्रभावित कर रहें, परन्तु अक्सर ऐसी घटनायें अविश्वास एवं गलतफहमी के कारण होती है। आज भी अन्य पेशी की तुलना में लोग डाॅक्टरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं और इर इंसान को डाॅक्टरों की जरूरत भी पड़ती है इसलिए यह बहुत जरूरी है कि डाॅक्टरों और मरीजों के बीच परस्पर विश्वास का रिश्ता हो।

डाॅक्टरों पर आरोप लगाने से पहले मरीजों को सोचना होगा कि:
अच्छे से अच्छा डाॅक्टर भी संसार में ईश्वर का नाम लेकर लोगों की तकलीफ कम कर सकता है, पर कभी भगवान नहीं बन सकता कि जीवन और मृत्यु का फैसला उसके हाथों में आ जाए। यदि ऐसा होता तो कोरोनाकाल खण्ड के दौरान एक भी चिकित्सक शहीद नहीं होता। डाॅक्टर अपनी पढ़ाई व अनुभव के आधार पर चिकित्सा विज्ञान में उपलब्ध अच्छे से अच्छा इलाज कर सकता है, पर इस इलाज का परिणाम हमेंशा उसके हाथ में नहीं होता। सदियों से गीता के ज्ञान पर चलने वाले हमारे देश में यह समझना कठिन बात नहीं है।

अनेक डाॅक्टर दिन-रात कड़ी मेहनत कर असंख्य मरीजों को अपने इलाज से ठीक करते हैं व जानलेवा बीमारियों से निजात दिलाते हैं। परन्तु एक गंभीर रोगी के उपचार या आपरेशन में परिणाम अनुकूल न आने पर उत्तेजित परिजन डाॅक्टरों पर आरोप लगाते हैं व कभी-कभी दुर्व्यवहार पर उतारू हो जाते हैं। यह नकारात्मक सोच केवल डाॅक्टरों तक ही सीमित नहीं है, हम समाज में हर बुरे और गलत काम को ही देखते हैं, प्रमुखता से मीडिया में दिखाते हैं, पर अच्छे काम के प्रति उदासीन रहते हैं।

एक आम आरोप जो डाॅक्टरों पर लगाया जाता है कि वे उपचार, आपरेशन करने हेतु पैसे बहुत लेते है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की गरीब जनता महंगे होते जा रहे निजी चिकित्सकों से उपचार नहीं करवा पाती, परन्तु जो मेडिकल टेक्नाॅलोजी, मशीनें या जीवन रक्षक दवाईयाँ विदेश में निर्मित होती है। उनका मूल्य स्वभाविक रूप से भारत में अत्यधिक लगता है। इसके लिए समाज को स्वास्थ्य बीमा और वैकल्पिक चिकित्सा जैसे आयुर्वेद आदि को विकसित करना होगा।

अस्पताल में भर्ती अपने किसी आत्मज की मौत होने पर दुख होना स्वाभाविक है। पर क्या यह दुख अस्पतालों में तोड़-फोड़ करने, या डाॅक्टरों के साथ दुर्व्यवहार करने से ही शांत होगा? आज हालत यह होती जा रही है कि निजी अस्पताल गंभीर केस को सरकारी अस्पताल में भेज देते है। यह सिर्फ सुविधाओं के अभाव में नहीं, बल्कि इसलिए कि महंगे इलाज जैसे गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) आदि में भर्ती करने के बाद भी मरीज का बचना मुश्किल हो तो मुसीबत कौन लें? जरा सोचिए आईसीयू में मरीज तभी भर्ती होता है जब उसकी हालत नाजुक हो। यदि इसी तरह सरकारी चिकित्सक भी दुर्व्यवहार मारपीट के डर से गंभीर मरीजों का इलाज करने से कतराने लगे तो इन रोगियों का क्या होगा?

अक्सर सरकारी अस्पतालों व यहाँ कार्यरत् सरकारी चिकित्सकों की भरपूर निंदा की जाती है। परन्तु क्या चरमराती हुई व्यवस्था, चारों तरफ फैली गंदगी, उदासीन कर्मचारी, खराब पड़ी मशीनें, मरीजों का सैलाब, निजी चिकित्सालयों द्वारा ठुकराए गए गंभीर मरीज, राजनीतिक दखल, सुविधाओं का अभाव, सीमित बजट, क्या इन सब के लिए डाॅक्टर जिम्मेदार है या ऐसी परिस्थितियों में भी यथासंभव काम करने के लिए सरकारी चिकित्सकों की प्रशंसा की जानी चाहिए। कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान सरकारी चिकित्सकों, पैरामेडिकल नर्सिग स्टाफ एवं सरकारी मशीनरी में जिस प्रकार से अपनी प्राणों की बाज़ी लगाकर रोगियों की सेवा की है, उसकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए।

साथ ही डाॅक्टरों को भी सोचना होगा कि:
चिकित्सा केवल बीमारी की दवा लिखना या आपरेशन करना नहीं, बल्कि इंसान को उसकी तकलीफ से राहत देना है। इसलिए मरीजों से संवेदना रखना, उनकी पूरी बात ध्यान देकर सुनना और मधुर बोलना भी डाॅक्टरी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।

हो सकता है आप सरकारी चिकित्सक है और आप पूरी व्यवस्था से परेशान है, उस पर आपको लगता है कि आपसे कम योग्य कोई निजी चिकित्सक आपसे कहीं अधिक पैसा व नाम कमा रहा है, परन्तु याद रखें कि आपके पास आने वाला गरीब मरीज आप से कहीं अधिक परेशान और बदकिस्मत है।

अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए कुछ डाॅक्टर दूसरे डाॅक्टरों द्वारा किये गये उपचार, आपरेशन में कमियाँ निकालने लगते हैं। याद रखें दूसरों की बुराई करने वाले डाॅक्टर अपना ही नहीं, बल्कि सारे डाॅक्टरी समाज का नाम बदनाम करते हैं और मरीजों से सभी डाॅक्टरों के प्रति संदेह जगाते है। डाॅक्टर समाज को साथ बैठकर कुछ ऐसा नुस्खा निकालना होगा कि डाॅक्टरों के बीच बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा कहीं पूरे पेश के लिए मुसीबत न बन जाए।

आज जरूरत है कि डाॅक्टर आत्म-विश्लेषण करें और स्वयं को मरीज की जगह रख कर देखें। साथ ही मरीज व समाज डाॅक्टरों की मजबूरियों को समझे और ऐसे लोगों से दूर रहे जो हर चीज़ को शक व संदेह के चश्में से देखते हों। कहते है कि अच्छा डाॅक्टर वह है जिसे देखकर बातचीत कर मरीज की आधी बीमारी से दूर हो जाए और इसके लिए परस्पर विश्वास को बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।

डाॅ. सुरेश पाण्डेय, कोटा के नेत्र चिकित्सक एवं लेखक है
विगत् 3 वर्षो में उनके द्वारा लिखित पुस्तकें – सीक्रेट्स आफ सक्सेजफुल डाॅक्टर्स, ए हिप्पोक्रेटिक आडिसी एवं एन्टरप्रिन्योरशिप फाॅर डाॅक्टर्स नामक पुस्तकें चिकित्सकों एवं रोगियों के बीच लोकप्रिय हुई है।