नई दिल्ली। एजुकेशन लोन (Education loan) नहीं चुकाने के मामले में नर्सेज और इंजीनियर्स सबसे आगे हैं। दिसंबर के अंत तक देश में एजुकेशन लोन का कुल बकाया 84,965 करोड़ रुपये था जिसमें से 9.7 फीसदी (8,263 करोड़ रुपये) फंसा कर्ज (NPA) था। सभी स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटीज द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में यह बात सामने आई है।
कुल बकाया एजुकेशन लोन में से मेडिकल स्टूडेंट्स का हिस्सा 10,147 करोड़ रुपये (11.9 फीसदी), इंजीनियरिंग के छात्रों का 33,316 करोड़ रुपये (39.2 फीसदी), नर्सिंग छात्रों का 3,675 करोड़ रुपये (4.3 फीसदी), एमबीए के छात्रों का 9,541 करोड़ रुपये (11.2 फीसदी) और अन्य का 28,286 करोड़ रुपये (33.2 फीसदी) है। एनपीए के मामले में नर्सिंग के छात्रों का योगदान सबसे अधिक 14 फीसदी है। इंजीनियरिंग के छात्र (12.1 फीसदी) दूसरे, एमबीए के छात्र (7.1 फीसदी) तीसरे और मेडिकल के छात्र (6.2 फीसदी) चौथे स्थान पर हैं। एजुकेशन लोन के कुल बकाये में से 8263 करोड़ रुपये को एनपीए के तौर पर क्लासीफाई किया गया है जो 3.5 लाख खातों से संबंधित है।
बिहार और तमिलनाडु सबसे आगे
एजुकेशन लोन एनपीए के मामले में पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र का प्रदर्शन सबसे खराब है जबकि उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा है। पूर्वी क्षेत्र में बिहार और दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु का प्रदर्शन सबसे खराब है। एजुकेशन लोन के मामले में एनपीए का राष्ट्रीय औसत 9.7 फीसदी है जबकि पूर्वी क्षेत्र में यह 14.2 फीसदी और दक्षिणी क्षेत्र में 11.9 फीसदी है। इसी तरह उत्तरी क्षेत्र में यह 3.3 फीसदी और पश्चिमी क्षेत्र में 3.9 फीसदी है। मध्य क्षेत्र में यह 6.1 फीसदी और पूर्वोत्तर राज्यों में 6.8 फीसदी है।
एनपीए में किस सेक्टर की कितनी हिस्सेदारी
यह डेटा इस वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों का है लेकिन पिछले सालों के आंकड़ों के मुताबिक एनपीए में इंडस्ट्री और एग्रीकल्चर के बाद एजुकेशन सेक्टर की सबसे अधिक भूमिका रही है। 2018, 2019 और 2020 में देश के कुल एनपीए में इंडस्ट्री का हिस्सा क्रमशः 21 फीसदी, 16.7 फीसदी और 13.6 फीसदी रहा था। एग्रीकल्चर सेक्टर का योगदान 7.8 फीसदी, 8.9 फीसदी और 10.3 फीसदी रहा था। इसी तरह एजुकेशन सेक्टर का हिस्सा 8.1 फीसदी, 8.3 फीसदी और 7.6 फीसदी रहा था। इस दौरान हाउसिंग और ऑटोमोबाइल सेक्टर में एनपीए 2 फीसदी से कम रहा था जबकि रीटेल सेक्टर के लिए यह क्रमशः 2.1 फीसदी, 2 फीसदी और 1.5 फीसदी रहा था।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
एजुकेशन एक्सपर्ट एएस सीतारामू के मुताबिक इंजीनियरिंग के छात्र को नौकरी ढूंढने में मेडिकल स्टूडेंट से ज्यादा समय लगता है। सालाना करीब 30 फीसदी इंजीनियरिंग स्टूडेंट ड्रॉप आउट हो रहे हैं और कैंपस प्लेसमेंट में कमी आ रही है। जहां तक नर्सेज का मामला है तो अधिकांश देश से बाहर चली जाती हैं और बैंक उन्हें खोज नहीं पाते हैं। वीजा को एजुकेशन लोन के साथ जोड़ने की जरूरत है। देश में वे एक जगह लोन लेती हैं और दूसरी जगह काम करती हैं।
आंध्र प्रदेश एसएलबीसी के पूर्व संयोजक दुरईस्वामी सी ने कहा कि एजुकेशन प्रायोरिटी लेंडिंग सेक्टर है और लोन लेने वालों को पैसा चुकाने के बारे में गंभीरता दिखानी चाहिए। लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं होता है। इसके कई कारण हैं। केंद्र द्वारा इंट्रेस्ट सब्सिडी के पेमेंट में देरी और दूसरी सिस्टेमैटिक समस्याओं के कारण भी ईमानदार कर्जदारों को समस्या होती है।