खाद्य तेलों ने बिगाड़ा रसोई का बजट, दामों में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी

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नई दिल्ली। खाद्य तेलों ने बिगाड़ा कभी दालें तो कभी एलपीजी आपकी रसोई पर भारी पड़ रही है। अब पिछले चार महीने से खाद्य तेलों के बेलगाम बढ़ते दाम रसोई का बजट बिगाड़ रहे हैं। इस दौरान दाम में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। कारोबारियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के रेट बढ़ रहे हैं। इसकी वजह से घरेलू बाजार में भी यह महंगा हुआ है। अपने यहां कुल खपत का करीब 75 फीसदी तेल विदेशी बाजारों से आता है।

महिलाओं का कहना है कि तीन-चार महीने पहले ही एक लीटर सरसों का तेल 110 रुपये के करीब आता था। अब इसका दाम 150 रुपये के पास आ गया है। बाबा रामदेव के पतंजली सरसों तेल का एक लीटर वाला बोतल भी डेढ़ सौ रुपये से ज्यादा में बिक रहा है। यही हालत सोयाबीन और सूर्यमुखी के तेलों की भी है। समझ में नहीं आ रहा है कौन से तेल का उपयोग करें ताकि रसोई का बजट नहीं बिगड़े।

डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं
कारोबारियों का कहना है कि इस समय वैश्विक बाजार में डिमांड के अनुरूप सप्लाई नहीं हो पाने से वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों के रेट बढ़े हैं। दुनिया भर में सूर्यमुखी का उत्पादन निचले स्तर पर है। रेपसीड का उत्पादन भी कम है। मलेशिया में भी उम्मीद के मुताबिक पाम ऑयल का उत्पादन नहीं हुआ है। खराब मौसम की वजह से अर्जेंटीना और ब्राजील में नई फसल में नुकसान हुआ। साथ ही वहां से खाद्य तेल आने में देर हो गई। अर्जेंटीना में पिछले दिनों लंबे वक्त तक पोर्ट पर हड़ताल रही, जिसकी वजह से सप्लाई प्रभावित हुई।

खाद्य तेलों के मामले में विदेशों पर आश्रित
दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स असोसिएशन (DVOTA) के महासचिव हेमंत गुप्ता का कहना है कि भारत में खाद्य तेलों की सालाना खपत 200 लाख टन से भी अधिक है। इसमें 150 लाख टन तेल इंपोर्ट करते हैं। यानी 75 प्रतिशत तेल विदेशों से आता है। इससे इंटरनेशनल मार्केट की तेजी और मंदी का असर हमें झेलना पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमत बढ़ने की मुख्य वजह चीन की बहुत अधिक डिमांड आना है। चीन ऊंचे रेटों पर लगातार अपनी खपत से कहीं ज्यादा खरीदारी कर रहा है। खाद्य तेलों में तेजी की वजह मलेशिया और इंडोनेशिया में भी स्टॉक कम ही है, जहां से पाम ऑयल आता है। हालांकि, इस बार भारत में सरसों की फसल अच्छी है। लिहाजा, हम उम्मीद कर सकते हैं कि सरसों के तेलों में नरमी आ सकती है।

10 से 15 फीसदी घटी खाद्य तेलों की सेल
डीवीओटीए के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सुरेश नागपाल का कहना है कि भारत में सोयाबीन तेल 15 से 18 लाख टन, सरसों का तेल 25 से 28 लाख टन, तिल का तेल 1 लाख टन, मूंगफली का तेल 7 लाख टन और अन्य तरह (राइस ब्रान, कपासिया) का 10 लाख टन का उत्पादन होता है। बाकि का तेल बाहर से आता है। विदेशों से करीब 40 लाख टन सोयाबीन का तेल और 90 लाख टन पाम ऑयल आता है। कोरोना से पहले के मुकाबले अभी डिमांड कम हुई है। क्योंकि बाहर का खाना कम हो गया है। बाहर के खाने में तेल ज्यादा लगता है। घर में कम खपत होती है। इसलिए खाद्य तेलों की सेल 10 से 15 फीसदी घटी है।

देश में ही खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने का प्रयास
नीति आयोग की 6वीं गवर्निंग काउंसिल की पिछले दिनों हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य तेलों की कम पैदावार पर पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भारत को सालाना करीब 65,000 से 70,000 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। पीएम ने कहा था कि देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ना चाहिए। इससे किसानों को लाभ पहुंचेगा। देश का पैसा यहीं रहेगा।