खतरनाक स्तर पर पहुंचा चंबल नदी का प्रदूषण: जल बिरादरी

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कोटा। राष्ट्रीय जल बिरादरी की चम्बल संसद ने चम्बल में खतरनाक प्रदूषण के कारण निरन्तर मछलियों व मगरमच्छों की मौत पर चिंता जताते हुए केंद्रीय एवं राज्य के पर्यावरण मंत्री को ज्ञापन देकर गंदे नालों को चम्बल नदी में जाने से रोकने की मांग की है।

चम्बल संसद के सभापति जीडी पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष बृजेश विजयवर्गीय,अध्यक्ष सीकेएस परमार तथा महासचिव संजय शर्मा व तपेश्वर सिंह ने ज्ञापन के माध्यम से कहा कि दुर्भाग्य से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल,प्रदूषण नियंत्रण मंडल तथा पर्यावरणविदों की चेतावनियां बेअसर हो रही है तथा चम्बल में निरंतर गिरते गंदे नालों के कारण जलीय जीवों मछलियां, मगरमच्छ आदि की समय समय पर बड़ी संख्या में मौतें हो रही है जो कि जन जीवन के लिए भी खतरा है।

सरकार रिवर फ्रंट तो बना रही है लेकिन गंदे नालों को लेकर बनाई चम्बल शुद्धिकरण योजनाऐं दम तोड़ चुकी है। डाउन स्ट्रीम चम्बल तो एक तरीके से नाले में ही बदल गई। उसके किनारे बसने वाले लोगों के लिए चम्बल का पानी जानलेवा हो सकता है। वर्षा काल में यही गंदगी बैराज से पानी छोड़ने पर आगे की बस्तियों के लिए खतरनाक है।

चम्बल के पानी को लेकर कई बार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की जांचें फाईलों में दफन हो जाती है। केईएसएस की अध्यक्ष डाॅ. सुसेन राज ने कहा कि चम्बल को नहीं बचाया तो विकास की सारी योजनाऐं धरी रह जाऐगी।

डाॅ. कृष्णेंद्र सिंह ने कहा कि चम्बल को बचाना है तो सरकार को सौंदर्यकरण के पहले चम्बल को बचाने के उपाय करने होंगे। गत रात्रि को भी सदस्यों ने चम्बल में ताजा प्रदूषण का जायजा लिया। चम्बल शुद्धिकरण योजनाओं के प्रति नगर निगम प्रशासन की संवेदनहीनता पर चिंता जताते हुए कहा कि इच्छा शक्ति और दिशाहीनता के कारण नगर निगम चम्बल को लगातार प्रदूषण की अनदेखी कर रहा है। नदी खुद आईसीयू में है,गंभीर व बीमार नदी को मेकअप कर सूट बूट पहनाने की तैयारी चल रही है।

समाज सेवी डाॅ. गोपाल धाकड़ तथा राजेंद्र जैन व ने संयुक्त बयान में कहा कि 200 करोड़ की तीन योजनाएं फेल कर देने के पीछे सही सोच का अभाव है। नगर निगम की प्राथमिकता में ही चम्बल नहीं है। केवल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दबाव में आनन फानन में फाईलों के लिए फेल होने वाली योजनाऐं बनाई जाती है।

नगर विकास न्यास की नेशनल रिवर कंजर्वेशन योजना के सीवरेज ट्रीटमेंट संयंत्र सफेद हाथी साबित हुए जबकि विशेषज्ञों ने समय समय पर अनेक सुझाव नेगर निगम की सेमीनारों में दिए है। यूआईटी भी रिवर फ्रंट पर तो योजना बना रहा है लेकिन अभी तक गंदे नालों को रोकने की कोई ठोस कार्ययोजना को जनता के सामने नहीं रखा गया है। चम्बल नदी कोटा की केवल नदी न होकर पेयजल स्त्रोत भी है।

चम्बल संसद ने कहा कि चम्बल हाड़ौती के विकास की मुख्य धमनियों की तरह है,उसमें जल प्रदूषण होने पर जनता स्वस्थ नही रह सकती। अमीर लोग तो पैक्ड ड्रिंकिंग वाटर से काम चला रहे है। कोटा में पानी का व्यापार खूब चल रहा है। क्यों नहीं लोग सीधे चम्बल का पानी पीने की हिम्मत करते?