नई दिल्ली । 1 जुलाई से देशभर में लागू हुए वस्तु एवं सेवा कर कानून के बाद खराब वेंडर का चयन करना आपको भारी पड़ सकता है। किताबों (खाता-बही) के रखरखाव में एक मौलिक बदलाव देखने को मिलेगा। अब तक की कर व्यवस्था में सच्चाई का एकमात्र संस्करण यह था कि आपने अपनी किताबें कैसे बनाए रखीं हैं, क्योंकि आपकी सभी फाइलिंग इसी पर निर्भर रहती हैं।
जीएसटी कार्यकाल में एक तरीका यह कि आप किसी को बता दें कि आप क्या कर रहे हैं, वहीं दूसरे तरीके में काफी सारे लोग आपको यह बताएंगे कि उनके आपके साथ ट्रांजेक्शन क्या हैं। जीएसटीएन एक सामान्य डाटाबेस का समेकित और आपके व्यवसाय का एक एकीकृत रुप है। इसका सीमा शुल्क, बैंकिंग चैनल्स, आयकर और अन्य के साथ कनेक्शन भी है।
यह कर अधिकारी के समक्ष वह पूरी जानकारी सामने रखता है, जो आपकी ओर से अलग अलग एंटिटि को दी गईं हैं।आखिरकार इसका अर्थ यह है कि पहले गैर-अनुपालन करने में आसान था। मैं अपने चार्जेट अकाउंटेंट पर भरोसा कर सकता हूं और उसे बता सकता हूं कि, ओके, इस साल मैं इतने कर का भुगतान करना चाहता हूं, आप कृपया इसके अनुसार ही मेरी किताब तैयार कर दें।
लेकिन अब (जीएसटी लागू होने के बाद) यह काफी मुश्किल होगा क्योंकि बाकी के लोग भी जीएसटीएन में रिपोर्ट करेंगे और टैक्स अधिकारी के पास सारी जानकारियां होंगी।आईटी पार्ट और फाइलिंग के अलावा एक और अहम चीज जो आपको मालूम होनी चाहिए वो ये हैं कि आपको अपने सप्लायर और कस्टमर के बारे में भली भांति जानकारी होनी चाहिए। अगर आपका सप्लायर टैक्स का भुगतान नहीं करता है तो आपको इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा।