कोटा। आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज ने अपने प्रवचन में क्षमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साधु का स्वभाव क्षमा करना और शत्रु का स्वभाव गलतियां करना होता है। उन्होंने एक सार्थक उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार बिच्छू पानी में गिरने पर भी बार-बार काटता है, फिर भी साधु उसकी जान बचाता है। यह साधु के क्षमाशील स्वभाव का प्रतीक है।
आचार्य ने श्रावकों और गृहस्थों को संबोधित करते हुए कहा कि क्रोध मनुष्य की सुंदरता को नष्ट कर देता है। व्यक्ति क्रोध रहित होकर ही समाज में सम्मान का पात्र बनता है। इस अवसर पर भक्तामर विधान का विशेष आयोजन किया गया, जिसमें विश्व शांति और सर्वजन हिताय के लिए 56 जोड़ों द्वारा 2688 दीपकों से महा अनुष्ठान संपन्न हुआ। कार्यक्रम में एक नवीन प्रयोग करते हुए सभी लाइटें बंद कर विशेष अनुष्ठान कराया गया। इसके पश्चात भक्तामर विधान की आरती की गई।
कार्यक्रम के पुण्यार्जक कमला देवी, राजेंद्र, लोकेश जैन एवं दीप्ति का परिवार रहे। भक्तामर विधान के पुण्यार्जक सुरेंद्र, अनिल एवं दीपक लुहाड़िया परिवार रहे। इस अवसर पर सकल समाज अध्यक्ष विमल जैन नांता, महामंत्री विनोद टोरडी, कार्याध्यक्ष जेके जैन, महामंत्री प्रकाश जैन, सुरेश हरसौरा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।