न दुख में अधिक दुखी होना चाहिए, न ही सुख में अत्याधिक प्रसन्न: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में शुक्रवार को चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन सुनाते हुए कहा कि सुख व दुख इस संसार की मात्र कल्पना है। संसार में सुख व दुख नहीं है। मन को अच्छा लगे वह सुख और जो पसन्द न हो वह दुख बन जाता है। संसार रूपी खेल मैदान में आप दर्शक बनकर रहें। खिलाडी बनने की जरूरत नहीं है।

उन्होंने कहा जो दुख जीवन में आता है, वह एक आयु व समय के बाद चला जाता है, जिसमें निरंतर का अभाव है, वह वास्तविक नहीं है। उन्होंने कहा कि सुख के ज्यादा पास जाने जरूरत नहीं है। मनुष्य दुख से दूर रहता है, सुख से भी निश्चित दूरी बनाए रखें। जब आप कांच के समीप आ जाते तो प्रतिबिम्ब नजर नही आता है। कुछ दूरी बनाने पर ही अश्क नजर आता है।

ऐसे ही सांसारिक सुखों में भी मनुष्य संयमित रहे, तभी वह दुख में अपने आपको संयमित रख सकेगा। दुनिया में दुख का कारण मनुष्य की मैं की भावना है। न दुख में अधिक दुखी होना चाहिए, न ही सुख में अत्याधिक प्रसन्नता व्यक्त करनी चाहिए। यह मात्र इस सांसारिक जगत में मन के उद्गगार है। इसलिए इनमें उलझे नहीं।