शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ को कोरिडोर की तरह विकसित कर सकते हैं धार्मिक पर्यटन

0
9

कोटा। देश में वल्लभ संप्रदाय की सप्तपीठ में से शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ कोटा में श्री बड़े मथुराधीश मंदिर के रूप में मौजूद हैं। यदि मन्दिर के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए पाटनपोल को नंदग्राम और मथुराधीश मंदिर को काशी विश्वनाथ की तर्ज पर विकसित किया जाए तो धार्मिक पर्यटन को पंख लग सकते हैं। प्रथम पीठ के युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए यह बात कही।

उन्होंने कहा कि श्री मथुराधीश मंदिर तकरीबन 550 साल पुराना है और यहां पर तकरीबन 350 साल से मथुराधीश प्रभु विराजमान हैं। इस प्राचीन मंदिर के मूल स्वरुप को यथावत रखते हुए श्री बड़े मथुराधीश मंदिर के जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। मौजूदा मंदिर की हवेली ठाकुर जी के विराजने से भी पहले की है। जो अब जीर्णशीर्ण हो रही है। प्राचीन हवेली की नींव कमजोर हो रही है। चिंता है कि ठाकुर जी ही खतरे में ना पड़ जाएं। दर्शनार्थियों की सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। यहां समग्र रूप से ढांचा मजबूत करने की जरुरत है।

उन्होंने बताया कि ठाकुर जी के उत्सव करने के लिए भव्य प्रांगण में ऑडिटोरियम बनाया जा सकता है। यहां मौजूद विट्ठलनाथ पाठशाला को मंदिर में मर्ज कराकर प्रशासन की मदद कर सकते हैं। श्री विट्ठलनाथ जी की पाठशाला पर धर्मशाला का निर्माण कार्य कराया जा सकता है। बृजेश्वर जी के मन्दिर पर पार्किंग बन सकती है। मंदिर के परिक्रमा मार्ग में दर्शनार्थियों को कोई असुविधा न हो, इसके लिए परिक्रमा मार्ग बनाने की जरूरत है। इस बीच में केवल एक मकान आ रहा है। जिसे सरकार को अधिगृहित करना चाहिए।

इन सब निर्माण के दौरान मंदिर का मूल स्वरूप खंडित नहीं होना चाहिए। क्योंकि मूल स्वरूप खंडित होने से भक्तों की भावनाएं भी खंडित होती हैं। इसलिए सरकार और टेंपल बोर्ड मिलकर भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखकर मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए नई प्लानिंग कर रहा है।

टेंपल बोर्ड की ओर से भी शनिवार को विशेषज्ञों की टीम बुलाई गई है। जो स्थान को देखकर विस्तृत रिपोर्ट देगी। जिस पर व्यापक चर्चा की जाएगी। मिलन बावा ने बताया कि अभी राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से विकास के लिए 6.5 करोड रुपए मिले हैं। जो आशा के अनुरूप नहीं हैं। सरकार की ओर से अभी दूसरे चरण में अधिक घोषणा होने की संभावना है। सरकार की ओर से घोषित बजट से जल्दी ही यहां काम शुरू होने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि जब तक होटल और धर्मशाला नहीं बनेंगे तब तक दूसरे प्रदेशों के पर्यटक नहीं आ पाएंगे। बाहर के दर्शनार्थी, भक्त और पर्यटक आएंगे तो आर्थिक समृद्धि भी आएगी। इसके लिए पाटनपोल के बाजार का फ्रंट लिफ्ट एक जैसा बना सकते हैं। अभी मंदिर के पास केवल 100 से कम दर्शनार्थियों के लायक ढांचा विकसित है। इसे 500 से 1000 दर्शनार्थी, भक्त और पर्यटकों के हिसाब से विकसित किए जाने की आवश्यकता है।

काशी विश्वनाथ कोरिडोर की तर्ज पर हो विकास
मिलन बावा ने बताया कि यदि काशी विश्वनाथ की तर्ज पर नंदग्राम के नाम से प्रसिद्ध कोटा के पाटनपोल को रिवर फ्रंट से जोड़ा जाए तो हाडोती में धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। श्री मथुराधीश मंदिर की रिवर फ्रंट से पैदल दूरी केवल 5 मिनट की है। मंदिर के पीछे का कॉरिडोर रिवर फ्रंट को टच करता है। रिवर फ्रंट से दर्शनार्थी सीधे मन्दिर पहुंचे।

ठाकुर जी संभाल सकते हैं कोटा की अर्थव्यवस्था
उन्होंने कहा कि नाथद्वारा और कांकरोली कोटा से बहुत छोटे शहर हैं, लेकिन वहां कोटा से अधिक धार्मिक पर्यटक पहुंचते हैं। वहां की पूरी इकोनामी मंदिर के आसपास ही घूमती है। कोटा में स्टूडेंट्स की कमी से अर्थव्यवस्था में जो कमी आई है। उसकी पूर्ति ठाकुर जी कर सकते हैं। इसके लिए कोटा में पर्यटन के अनुरूप समुचित विकास की जरूरत है।

वैष्णव सर्किट बने तो बढ़ेंगे धार्मिक पर्यटक
प्रधान पीठ नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में दर्शनार्थी पहुंचते हैं। वे सभी प्रथम पीठ मथुराधीश प्रभु के दर्शन करने के लिए कोटा आना चाहते हैं, लेकिन आधारभूत ढांचा विकसित नहीं होने के कारण कोटा में पर्यटकों का अभाव रहता है। वल्लभ संप्रदाय की सभी सप्तपीठों को जोड़कर वैष्णव कॉरिडोर बनाया जा सकता है। आधारभूत सुविधाएं विकसित होने पर सभी सप्तपीठों पर पर्यटक भक्त आसानी से आज जा सकते हैं।

ये हैं बल्लभ संप्रदाय की सप्तपीठ
वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ श्रीनाथजी (नाथद्वारा) में है। वहीं प्रथम पीठ मथुराधीश जी (कोटा), द्वितीय पीठ विट्ठलनाथ जी (नाथद्वारा), तृतीय पीठ द्वारकाधीश जी (कांकरोली), चतुर्थ पीठ गोकुलनाथ जी (गोकुल), पंचम पीठ गोकुलचंद्र जी (कामवन), षष्ठम पीठ बालकृष्ण लाल जी (सूरत गुजरात) तथा सप्तम पीठ मदनमोहन जी (कामवन) में मौजूद है। इसके अलावा कोटा में चरण चौकी जैसे स्थान भी हैं। इन सभी स्थानों को आपस में जोड़कर वैष्णव सर्किट बनाया जा सकता है।