कोटा। श्री पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के षष्ठम प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव (पाटोत्सव) के तहत श्री भक्तमाल कथा में बुधवार को वृंदावन धाम के संत चिन्मय दास महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि हमें ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
हमें इतना दुर्लभ शरीर दिया, जिससे हम ईश्वर को याद कर सकते हैं। अन्य किसी योनी में हम ईश्वर वंदना नहीं कर सकते हैं। इसलिए जीवन में हर पल हम ईश्वर को याद करें । उन्होंने कहा कि किसी के पानी पिलाने, वस्तु देने या काम करने पर हम उसे धन्यवाद देते हैं।
परन्तु जिस ईश्वर ने आपको दुर्लभ शरीर दिया उसका आभार प्रकट करना भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि जो आपके मन को संसार से हटाकर प्रभु भक्ति में लगा दे वह संत है। संत हमेशा ईश्वर के प्रति आभारी रहते हैं। यदि भोजन मिले तो बांट कर खाएं और न मिले तो ईश्वर की कृपा का आभारी रहें। भोजन बिना नींद न आने तक प्रभु स्मरण में समय व्यतीत करें। उन्होंने कहा कि संत बुरों का संग और बुरा व्यक्ति संतो का संग कर ले तो उनका चरित्र परिवर्तित हो जाएगा।
किराग के जाल में फंसे बनवारी
एक संत जंगल में कुटिया बना कर रहते थे और भगवान श्रीकृष्ण का भजन करते थे। संत के दर्शन मात्र से किराग शिकारी को उनकी सेवा की अनुभूति हुई और व उनके लिए हिरण पकड़ कर लाया। संत ने तुरंत उस हिरण को मुक्त कराया और समझ गए कि किराग अज्ञानी है। उन्होंने कहा कि में कृष्ण मृग की तलाश में बैठा हूं, जिसके सिर पर मोर मुकुट है, हाथो में बांसुरी है उसका शिकार करके लाओ।
अब वह शिकारी घने जंगल के अंदर गया और जाल बिछा कर एक पेड़ पर बैठ गया। वहां पर इंतजार करने लगा। भूखा प्यासा बैठा हुआ है। एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन। भूखे प्यासे किरात को नींद भी आने लगी। बांके बिहारी को उन पर दया आ गई। भगवान उसके भाव पर रीझ गए। भगवान मंद-मंद स्वर से बांसुरी बजाते आये और उस जाल में खुद फंस गए। संत किरात के चरणों में गिर पड़े। संत आज फूट-फूट कर रोने लगे।
संत कहते हैं, मैंने आज तक आपको पाने के लिए अनेक प्रयास किये प्रभु लेकिन आज आप मुझे इस किरात के कारण मिले हो। भगवान बोले, इस शिकारी का प्रेम तुमसे ज्यादा है। इसका भाव तुम्हारे भाव से ज्यादा है। इसका विश्वास तुम्हारे विश्वास से ज्यादा है। इसलिए आज जब तीन दिन बीत गए तो मैं आये बिना नहीं रह पाया। मैं तो अपने भक्तों के अधीन हूँ।